अस्पताल में पाकिस्तानी गोलाबारी में घायल लोग
नई दिल्ली:
पाकिस्तान से लगी अंतरराष्ट्रीय सीमा पर भले ही पिछले दो दिन से फायरिंग नहीं हो रही हो लेकिन सरहद पर रहने वाले लोग अभी भी डरे हुए हैं। पाक गोलाबारी से घायल हुए लोग सरकार को कोस रहे हैं कि एक तो उनकी कोई मदद नहीं कर रहा है और उन्हें लगता है उनका सबसे बड़ा कसूर सरहद पर रहना है।
जम्मू के सरकारी अस्पताल में इलाज करा रहे बलविंदर सिंह कहते है कि अब मेरे हाथ तो रहे नहीं, हाथ तो खत्म हो गए, अब तो कुछ भी नहीं कर पाएंगे। पाकिस्तान से लगे सरहदी गांव बरसाल पुरा के हैं बलविंदर सिंह। 16 जुलाई को पाक की ओर से हुई गोलाबारी में दोनों हाथ बेकार हो गए। शायद ही इनकी उंगलियां अब काम कर पाएं। तभी तो घर पर बेटी और पत्नी को लग रहा है अब कैसे गुजारा होगा। बलविंदर की बेटी सुजाता कहती है, अब हमारा गुजारा कैसे होगा। कौन देख रेख करेगा। एक मात्र कमाने वाला पापा हैं जो अब शायद ही खेती कर पाएंगे।'
यही हाल रूपलाल का भी है जो अभी जख्मी हालत में अस्पताल में भर्ती है। रुपलाल कहते है कि सब मिलने के लिये आ रहे हैं पर कोई कुछ मदद का आश्वासन नहीं दे रहा है। इससे हमरा क्या होगा।' यही हाल आरएसपुरा सेक्टर में रहने वाले करीब सारे लगों का है। सब डरे हुए हैं। पता नहीं फिर कब गोलाबारी शुरू हो जाए। गोलाबारी शुरू होने पर छुपने के लिये 6-7 गांवों में बस एक नागरिक बंकर है जिसमें सिर्फ 50-60 लोग आ सकते हैं।
गांव के सरपंच बचनलाल कहते है, 'यहां पर लोग भगवान भरोसे हैं, पता नही कब क्या किसके साथ हो जाए।' भारत और पाकिस्तान के बीच जब भी तनाव होता है तो इन गांववालों की सांसे रुक जाती हैं। फिछले साल इसी वक्त गांव में पाक की ओर से गोलाबीरी हुई थी और तब यहां को लोगों को महीने भर अपना गांव छोड़कर कैंप में रहना पड़ा था। फिलहाल अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बंदूकों की आवाज भले ही थम गई हो लेकिन दहशत अभी भी कायम है कि पता नहीं कब कोई गोलियों का निशाना बन जाए।
जम्मू के सरकारी अस्पताल में इलाज करा रहे बलविंदर सिंह कहते है कि अब मेरे हाथ तो रहे नहीं, हाथ तो खत्म हो गए, अब तो कुछ भी नहीं कर पाएंगे। पाकिस्तान से लगे सरहदी गांव बरसाल पुरा के हैं बलविंदर सिंह। 16 जुलाई को पाक की ओर से हुई गोलाबारी में दोनों हाथ बेकार हो गए। शायद ही इनकी उंगलियां अब काम कर पाएं। तभी तो घर पर बेटी और पत्नी को लग रहा है अब कैसे गुजारा होगा। बलविंदर की बेटी सुजाता कहती है, अब हमारा गुजारा कैसे होगा। कौन देख रेख करेगा। एक मात्र कमाने वाला पापा हैं जो अब शायद ही खेती कर पाएंगे।'
यही हाल रूपलाल का भी है जो अभी जख्मी हालत में अस्पताल में भर्ती है। रुपलाल कहते है कि सब मिलने के लिये आ रहे हैं पर कोई कुछ मदद का आश्वासन नहीं दे रहा है। इससे हमरा क्या होगा।' यही हाल आरएसपुरा सेक्टर में रहने वाले करीब सारे लगों का है। सब डरे हुए हैं। पता नहीं फिर कब गोलाबारी शुरू हो जाए। गोलाबारी शुरू होने पर छुपने के लिये 6-7 गांवों में बस एक नागरिक बंकर है जिसमें सिर्फ 50-60 लोग आ सकते हैं।
गांव के सरपंच बचनलाल कहते है, 'यहां पर लोग भगवान भरोसे हैं, पता नही कब क्या किसके साथ हो जाए।' भारत और पाकिस्तान के बीच जब भी तनाव होता है तो इन गांववालों की सांसे रुक जाती हैं। फिछले साल इसी वक्त गांव में पाक की ओर से गोलाबीरी हुई थी और तब यहां को लोगों को महीने भर अपना गांव छोड़कर कैंप में रहना पड़ा था। फिलहाल अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बंदूकों की आवाज भले ही थम गई हो लेकिन दहशत अभी भी कायम है कि पता नहीं कब कोई गोलियों का निशाना बन जाए।
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