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लोकसभा की मुहर के साथ ही संसद ने शुक्रवार को भारतीय जन प्रतिनिधित्व (संशोधन) विधेयक 2013 को पारित कर दिया।
संसद का सत्र शुरू होने के साथ ही सभी पार्टियों ने एक सुर से सरकार से शीर्ष अदालत के फैसले को निष्प्रभावी करने के लिए विधेयक लाने की मांग की थी।
पार्टियों को इस बात का डर था कि शीर्ष अदालत के फैसले की आड़ में चुनाव के मौके पर झूठे मुकदमे का सहारा लेकर विरोधी किसी प्रत्याशी को चुनाव लड़ने से अयोग्य ठहरा सकते हैं।
यह विधेयक सर्वोच्च न्यायालय के 10 जुलाई के उस फैसले को निष्प्रभावी करेगा जिसमें अदालत ने कहा था कि जो लोग जेल में बंद हैं वे चुनाव संबंधी कानून के मुताबिक मतदान में हिस्सा नहीं ले सकते इसलिए वे संसद या राज्य विधानसभाओं का चुनाव भी लड़ने के योग्य नहीं हैं। कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने यह विधेयक पेश किया। उन्होंने सदन से कहा, "कई बार हम चूक करते हैं और कई बार अदालतें चूक जाती हैं। इस मामले में अदालत ने चूक की है और आज हम उसे दुरुस्त कर रहे हैं।"
सिब्बल ने इससे पहले कहा था कि देश में एक आम 'नकारात्मक धारणा' बन गई है कि नेता अपराधी होते हैं।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्य कीर्ति आजाद और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के सदस्य दारा सिंह चौहान ने कहा कि कई बार नेता सामाजिक मुद्दों को लेकर आंदोलन में हिस्सा लेते हुए जेल जाते हैं और ऐसी गिरफ्तारी को आपराधिक मामलों में गिरफ्तारी के समतुल्य नहीं माना जा सकता।
सरकार ने शीर्ष अदालत में पुनर्विचार याचिका दायर की थी, लेकिन वहां से राहत नहीं मिलने के बाद संशोधन विधेयक पेश किया।
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