फाइल फोटो
गुवाहाटी:
उल्फा (स्वतंत्र) के 'कमांडर-इन-चीफ' परेश बरुआ ने कहा है कि आमंत्रित किए जाने पर उनका धड़ा शांति वार्ता में शामिल हो सकता है, लेकिन असम के लिए संप्रभुता के मूल मुद्दे पर वह अपने रुख पर यह कायम रहेगा।
हमारा सिर्फ एक ही मूल मुद्दा
कभी अपने साथी रहे अनूप चेतिया की ओर से उसे वार्ता की मेज पर लाने की खातिर मध्यस्थता की कवायद पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए बरुआ ने कहा, 'वह इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या उसका आमंत्रण सिद्धांत पर आधारित है और वह स्वतंत्र रूप से सोचने के लिए जेल से रिहा हो।' कुछ स्थानीय न्यूज चैनलों से बातचीत में बरुआ ने कहा, 'हमने यह नहीं कहा है कि हम वार्ता में हिस्सा नहीं लेंगे । यदि आदर के साथ आमंत्रित किया गया तो हम आएंगे। लेकिन हम अपने पुराने रुख पर कायम रहेंगे क्योंकि हमारा सिर्फ एक ही मूल मुद्दा (असम के लिए संप्रभुता) है।' उसने कहा, 'हम अपने मूल मुद्दे से अलग नहीं हट सकते क्योंकि कई लोगों ने कुर्बानी दी है...15,000 लोग मारे गए हैं । हमें अपना जन्मसिद्ध अधिकार चाहिए । बगैर निष्ठा के वार्ता नहीं हो सकती, खासकर तब जब हमने अपने कई सदस्यों को मौत के मुंह में झोंक दिया हो।'
मैं रहूं या न रहूं, क्रांति जारी रहेगी
यह पूछे जाने पर कि क्या चेतिया को बांग्लादेश की जेल से भारत लाए जाने से उसकी मूल मांग कमजोर पड़ेगी, इस पर उसने कहा, 'यह मायने नहीं रखता कि संगठन में मैं या अनूप चेतिया हैं या नहीं । इससे संगठन कमजोर नहीं पड़ता। चाहे वह और मैं रहूं या न रहूं, क्रांति तो जारी रहेगी। यह विचारधारा पर आधारित है।' चेतिया के शांति वार्ता प्रक्रिया के हिस्सा बनने की संभावना पर बरुआ ने कहा, 'मैं इस पर टिप्पणी नहीं करूंगा।'
चेतिया के योगदान को नहीं भूल सकते
बरुआ ने कहा, 'बांग्लादेश की जेल में 18 साल बिताने के बाद यदि उसे फिर भारत की जेल में रहना है तो यह उसके लिए और असम के लोगो के लिए दुर्भाग्यपूर्ण होगा। ऐसी स्थिति में सरकार असम के लोगों की भावनाओं का आदर नहीं कर रही होगी।' उसने कहा,'हम उल्फा में अनूप चेतिया के योगदान को नहीं भूल सकते और उस बात के लिए उसका आदर करते हैं । मैं उसके अच्छे स्वास्थ्य और जेल से रिहा होने की कामना करता हूं।' उल्फा नेता गोलप बरआ उर्फ अनूप चेतिया को बांग्लादेश ने 11 नवंबर को भारत को सौंपा था।
हमारा सिर्फ एक ही मूल मुद्दा
कभी अपने साथी रहे अनूप चेतिया की ओर से उसे वार्ता की मेज पर लाने की खातिर मध्यस्थता की कवायद पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए बरुआ ने कहा, 'वह इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या उसका आमंत्रण सिद्धांत पर आधारित है और वह स्वतंत्र रूप से सोचने के लिए जेल से रिहा हो।' कुछ स्थानीय न्यूज चैनलों से बातचीत में बरुआ ने कहा, 'हमने यह नहीं कहा है कि हम वार्ता में हिस्सा नहीं लेंगे । यदि आदर के साथ आमंत्रित किया गया तो हम आएंगे। लेकिन हम अपने पुराने रुख पर कायम रहेंगे क्योंकि हमारा सिर्फ एक ही मूल मुद्दा (असम के लिए संप्रभुता) है।' उसने कहा, 'हम अपने मूल मुद्दे से अलग नहीं हट सकते क्योंकि कई लोगों ने कुर्बानी दी है...15,000 लोग मारे गए हैं । हमें अपना जन्मसिद्ध अधिकार चाहिए । बगैर निष्ठा के वार्ता नहीं हो सकती, खासकर तब जब हमने अपने कई सदस्यों को मौत के मुंह में झोंक दिया हो।'
मैं रहूं या न रहूं, क्रांति जारी रहेगी
यह पूछे जाने पर कि क्या चेतिया को बांग्लादेश की जेल से भारत लाए जाने से उसकी मूल मांग कमजोर पड़ेगी, इस पर उसने कहा, 'यह मायने नहीं रखता कि संगठन में मैं या अनूप चेतिया हैं या नहीं । इससे संगठन कमजोर नहीं पड़ता। चाहे वह और मैं रहूं या न रहूं, क्रांति तो जारी रहेगी। यह विचारधारा पर आधारित है।' चेतिया के शांति वार्ता प्रक्रिया के हिस्सा बनने की संभावना पर बरुआ ने कहा, 'मैं इस पर टिप्पणी नहीं करूंगा।'
चेतिया के योगदान को नहीं भूल सकते
बरुआ ने कहा, 'बांग्लादेश की जेल में 18 साल बिताने के बाद यदि उसे फिर भारत की जेल में रहना है तो यह उसके लिए और असम के लोगो के लिए दुर्भाग्यपूर्ण होगा। ऐसी स्थिति में सरकार असम के लोगों की भावनाओं का आदर नहीं कर रही होगी।' उसने कहा,'हम उल्फा में अनूप चेतिया के योगदान को नहीं भूल सकते और उस बात के लिए उसका आदर करते हैं । मैं उसके अच्छे स्वास्थ्य और जेल से रिहा होने की कामना करता हूं।' उल्फा नेता गोलप बरआ उर्फ अनूप चेतिया को बांग्लादेश ने 11 नवंबर को भारत को सौंपा था।
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