प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली:
1965 में भारत-पाक युद्ध के पचास साल हो रहे हैं और अभी भी ये सवाल उठाया जाता रहा है कि ये युद्ध बराबरी पर छूटा या नहीं। पाकिस्तान तो इसमें अपनी जीत बताता रहा है और खास विक्ट्री डे भी मनाता है। लेकिन सच्चाई क्या थी, सच्चाई ये थी कि जंग भले ही युद्धविराम पर खत्म हुई हो, लेकिन 1965 में जीत भारत की हुई थी। तो कौन सी ऐसी जानकारियां और सबूत हैं जिस पर ये सच्चाई और पुख्ता हो रही है। सेना 1965 की भारत-पाक की जंग की 50वीं सालगिरह मना रही है।
अमृतसर का इलाका काटना चाहता था पाक :
कश्मीर के मोर्चे पर पाकिस्तानी हमले की धार कमजोर करने के लिए भारत ने पंजाब की अंतरराष्ट्रीय सीमा पर जवाबी हमला किया, लेकिन असल उत्तर में टैंक युद्ध ने दुश्मन के हौसले पस्त कर दिए। पाकिस्तनी सेना ने 8 सितंबर 1965 की सुबह खेमकरण सेक्टर में सबसे बड़ा हमला बोला। दुश्मन का पहला मकसद खेमकरण पर कब्जा कर वहां अपना मोर्चा बनाकर व्यास और सतलुज नदी पर बने पुलों को ध्वस्त करना था ताकि अमृतसर का इलाका भारत से कट जाए। पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने यहीं से जालंधर के रास्ते दिल्ली पहुंचने का ख्वाब देखा था और उनके हौसले की बुनियाद थे अमेरिकी पैटन टैंक।
पाक के पास आधुनिक पैटन टैंक थे :
भारतीय सेना के कमांडरों ने तरनतारन के असल उत्तर में ही पाकिस्तानी फौज को घेरने के लिए व्यूह की रचना की। तीन दिन टैंकों के बीच जबरदस्त घमासान हुआ था। पाकिस्तान के पास आधुनिक पैटन टैंकों का दस्ता था, जबकि हमारी सेना के पास दूसरे विश्वयुद्ध के जमाने के टैंक थे लेकिन फिर जांबाज़ जवानों ने मुंहतोड़ जवाब दिया।
बहुत काम आई थी अब्दुल हमीद की शहादत :
1965 के जांबाज़ सिपाही दया सिंह बताते हैं कि हमारे कमांडर ने आदेश दिया था कि पैटन टैंक से कम से कम दो किलोमीटर दूर रहना लेकिन भगवान ने हमारे अंदर इतना जोश भर दिया था कि किसी तरह की परवाह किए बिना हम उनके 300-400 मीटर नजदीक जाकर उनके टैंकों को बरबाद कर दिए। इस युद्ध में तीन पाक टैंकों को ध्वस्त करने वाले अब्दुल हमीद शहीद हो गए थे।
लाहौर तक पहुंच गई थी भारतीय सेना :
इस जंग के चश्मदीद तारा सिंह बताते हैं कि तब इनके टैंको को अब्दुल हमीद ने गोला मारकर ध्वस्त किया। तो इनकी हिम्मत टूट गई और वो टैंक छोड़ कर भाग गए। फिर पैदल फौज हमारे गांव की तरफ बढ़ी और उनका पीछा किया और दुश्मन से दो-दो हाथ किए। असल उत्तर की जीत से भारतीय सेना के हौंसले बुलंद हो गए। इसका असर लाहौर सेक्टर में भी दिखा। हमारी सेना लाहौर शहर के बरकी तक पहुंच गई।
पाकिस्तान के 97 टैंक हुए थे बरबाद :
असल उत्तर की जंग में पाकिस्तान के 97 टैंक बरबाद हुए जिनमें 72 पैटन टैंक थे, जबकि दुश्मन भारतीय सेना के सिर्फ 5 टैंक तबाह कर पाया। असल उत्तर की जंग को दूसरे विश्व युद्ध के बाद अब तक का सबसे भयंकर टैंक युद्ध माना जाता है। सेना के लड़ाकों ने ना सिर्फ पैटन टैंक के हमले को खुद रोका बल्कि अमृतसर को दुश्मनों के हाथों में पड़ने से बचाया और देश की लाज रखी। इस शानदार जीत और बेहतरीन रणनीति के लिए सेना की इस फतह को इतिहास के पन्नों में जगह मिली।
मौके का फायदा उठाना चाहता था पाकिस्तान :
चीन से 1962 की जंग हारने के बाद भारत किसी लड़ाई के लिए तैयार नहीं था। 1962 की जंग के बाद भारतीय सेना भी कई तब्दीलियां कर खुद को तैयार करने की प्रक्रिया में थी और पाकिस्तान की अयूब खान सरकार ने इस मौके का फायदा उठाने की सोची। भारत से कश्मीर छीनने के मकसद से उसने लड़ाई की तैयारी शुरू कर दी।
टैंकों के मामले में भारत से बीस था पाक :
ये वो वक्त था जब पाकिस्तानी सेना हथियारों के मामले में मजबूत मानी जा रही थी। पाकिस्तान ने अमेरिका से टैंक खरीदे और टैंकों के मामले में वो भारत से बीस था। जानकार बताते हैं कि उस वक्त पाकिस्तान के पास 765 टैंक तो भारत के पास 720 टैंक मौजूद थे। पाकिस्तान को अमेरिका से मिले पैटन टैंक की 9 रेजीमेंट थीं। हथियारों में भी पाक मजबूत स्थिति में था, लेकिन बावजूद इसके 1965 के कहानी अलग लिखी जानी थी।
स्थानीय लोगों की वेशभूषा में भारत घुसे थे पाक सैनिक :
पाकिस्तान ने अप्रैल 1965 में कच्छ के रन के इलाके में गश्त शुरू कर दी जिसकी सीमा को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद था और फिर 5 अगस्त को करीब 30 हजार पाकिस्तानी सैनिक स्थानीय लोगों की वेशभूषा में भारत के कश्मीर में घुस गए। स्थानीय लोगों ने इसकी जानकारी भारतीय सेना को दी और फिर भारतीय सेना ने कार्रवाई शुरू की। भारतीय सेना ने उरी और पुंछ इलाकों को फिर से अपने कब्ज़े में किया और पीओके की हाजी पीर पर भी कब्जा कर लिया। इसके बाद पाकिस्तान कमज़ोर पड़ रहा था और उसने अखनूर सेक्टर पर क़ब्जे के लिए ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम शुरू किया, ताकि बाकी भारत को कश्मीर से काटा जा सके।
लेकिन, बाद में संयुक्त राष्ट्र के दखल के बाद युद्ध विराम हुआ और फिर जनवरी 1966 में ताशकंद समझौता हुआ। भारत ने इस युद्ध को जीता, लेकिन पाकिस्तान आज भी इस जंग को जीतने का दावा करता है।
किताब 'टर्निंग द टाइड' में है युद्ध की सच्चाई :
डिफ़ेंस एक्सपर्ट नितिन गोखले ने अपनी किताब टर्निंग द टाइड 'How India Won the War' में भी बताया है कि 1965 में भारत पाकिस्तान पर भारी पड़ा था और उस जंग में भारत की जीत हुई है। किताब में उस वक्त के रक्षा मंत्री वाई बी चव्हाण के राज्यसभा में दिए बयान का भी जिक्र है, जिसमें उन्होंने बताया था कि पाकिस्तान के 5800 सैनिक मारे गए जबकि हमारे 2,862 सैनिक शहीद हुए। जबकि पाकिस्तान ये कहता रहा है कि लड़ाई में उसने सिर्फ 1033 सैनिकों को खोया है। नितिन गोखले की किताब 1965 के युद्ध के पचासवीं सालगिरह पर आ रही है।
अमृतसर का इलाका काटना चाहता था पाक :
कश्मीर के मोर्चे पर पाकिस्तानी हमले की धार कमजोर करने के लिए भारत ने पंजाब की अंतरराष्ट्रीय सीमा पर जवाबी हमला किया, लेकिन असल उत्तर में टैंक युद्ध ने दुश्मन के हौसले पस्त कर दिए। पाकिस्तनी सेना ने 8 सितंबर 1965 की सुबह खेमकरण सेक्टर में सबसे बड़ा हमला बोला। दुश्मन का पहला मकसद खेमकरण पर कब्जा कर वहां अपना मोर्चा बनाकर व्यास और सतलुज नदी पर बने पुलों को ध्वस्त करना था ताकि अमृतसर का इलाका भारत से कट जाए। पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने यहीं से जालंधर के रास्ते दिल्ली पहुंचने का ख्वाब देखा था और उनके हौसले की बुनियाद थे अमेरिकी पैटन टैंक।
पाक के पास आधुनिक पैटन टैंक थे :
भारतीय सेना के कमांडरों ने तरनतारन के असल उत्तर में ही पाकिस्तानी फौज को घेरने के लिए व्यूह की रचना की। तीन दिन टैंकों के बीच जबरदस्त घमासान हुआ था। पाकिस्तान के पास आधुनिक पैटन टैंकों का दस्ता था, जबकि हमारी सेना के पास दूसरे विश्वयुद्ध के जमाने के टैंक थे लेकिन फिर जांबाज़ जवानों ने मुंहतोड़ जवाब दिया।
बहुत काम आई थी अब्दुल हमीद की शहादत :
1965 के जांबाज़ सिपाही दया सिंह बताते हैं कि हमारे कमांडर ने आदेश दिया था कि पैटन टैंक से कम से कम दो किलोमीटर दूर रहना लेकिन भगवान ने हमारे अंदर इतना जोश भर दिया था कि किसी तरह की परवाह किए बिना हम उनके 300-400 मीटर नजदीक जाकर उनके टैंकों को बरबाद कर दिए। इस युद्ध में तीन पाक टैंकों को ध्वस्त करने वाले अब्दुल हमीद शहीद हो गए थे।
लाहौर तक पहुंच गई थी भारतीय सेना :
इस जंग के चश्मदीद तारा सिंह बताते हैं कि तब इनके टैंको को अब्दुल हमीद ने गोला मारकर ध्वस्त किया। तो इनकी हिम्मत टूट गई और वो टैंक छोड़ कर भाग गए। फिर पैदल फौज हमारे गांव की तरफ बढ़ी और उनका पीछा किया और दुश्मन से दो-दो हाथ किए। असल उत्तर की जीत से भारतीय सेना के हौंसले बुलंद हो गए। इसका असर लाहौर सेक्टर में भी दिखा। हमारी सेना लाहौर शहर के बरकी तक पहुंच गई।
पाकिस्तान के 97 टैंक हुए थे बरबाद :
असल उत्तर की जंग में पाकिस्तान के 97 टैंक बरबाद हुए जिनमें 72 पैटन टैंक थे, जबकि दुश्मन भारतीय सेना के सिर्फ 5 टैंक तबाह कर पाया। असल उत्तर की जंग को दूसरे विश्व युद्ध के बाद अब तक का सबसे भयंकर टैंक युद्ध माना जाता है। सेना के लड़ाकों ने ना सिर्फ पैटन टैंक के हमले को खुद रोका बल्कि अमृतसर को दुश्मनों के हाथों में पड़ने से बचाया और देश की लाज रखी। इस शानदार जीत और बेहतरीन रणनीति के लिए सेना की इस फतह को इतिहास के पन्नों में जगह मिली।
मौके का फायदा उठाना चाहता था पाकिस्तान :
चीन से 1962 की जंग हारने के बाद भारत किसी लड़ाई के लिए तैयार नहीं था। 1962 की जंग के बाद भारतीय सेना भी कई तब्दीलियां कर खुद को तैयार करने की प्रक्रिया में थी और पाकिस्तान की अयूब खान सरकार ने इस मौके का फायदा उठाने की सोची। भारत से कश्मीर छीनने के मकसद से उसने लड़ाई की तैयारी शुरू कर दी।
टैंकों के मामले में भारत से बीस था पाक :
ये वो वक्त था जब पाकिस्तानी सेना हथियारों के मामले में मजबूत मानी जा रही थी। पाकिस्तान ने अमेरिका से टैंक खरीदे और टैंकों के मामले में वो भारत से बीस था। जानकार बताते हैं कि उस वक्त पाकिस्तान के पास 765 टैंक तो भारत के पास 720 टैंक मौजूद थे। पाकिस्तान को अमेरिका से मिले पैटन टैंक की 9 रेजीमेंट थीं। हथियारों में भी पाक मजबूत स्थिति में था, लेकिन बावजूद इसके 1965 के कहानी अलग लिखी जानी थी।
स्थानीय लोगों की वेशभूषा में भारत घुसे थे पाक सैनिक :
पाकिस्तान ने अप्रैल 1965 में कच्छ के रन के इलाके में गश्त शुरू कर दी जिसकी सीमा को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद था और फिर 5 अगस्त को करीब 30 हजार पाकिस्तानी सैनिक स्थानीय लोगों की वेशभूषा में भारत के कश्मीर में घुस गए। स्थानीय लोगों ने इसकी जानकारी भारतीय सेना को दी और फिर भारतीय सेना ने कार्रवाई शुरू की। भारतीय सेना ने उरी और पुंछ इलाकों को फिर से अपने कब्ज़े में किया और पीओके की हाजी पीर पर भी कब्जा कर लिया। इसके बाद पाकिस्तान कमज़ोर पड़ रहा था और उसने अखनूर सेक्टर पर क़ब्जे के लिए ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम शुरू किया, ताकि बाकी भारत को कश्मीर से काटा जा सके।
लेकिन, बाद में संयुक्त राष्ट्र के दखल के बाद युद्ध विराम हुआ और फिर जनवरी 1966 में ताशकंद समझौता हुआ। भारत ने इस युद्ध को जीता, लेकिन पाकिस्तान आज भी इस जंग को जीतने का दावा करता है।
किताब 'टर्निंग द टाइड' में है युद्ध की सच्चाई :
डिफ़ेंस एक्सपर्ट नितिन गोखले ने अपनी किताब टर्निंग द टाइड 'How India Won the War' में भी बताया है कि 1965 में भारत पाकिस्तान पर भारी पड़ा था और उस जंग में भारत की जीत हुई है। किताब में उस वक्त के रक्षा मंत्री वाई बी चव्हाण के राज्यसभा में दिए बयान का भी जिक्र है, जिसमें उन्होंने बताया था कि पाकिस्तान के 5800 सैनिक मारे गए जबकि हमारे 2,862 सैनिक शहीद हुए। जबकि पाकिस्तान ये कहता रहा है कि लड़ाई में उसने सिर्फ 1033 सैनिकों को खोया है। नितिन गोखले की किताब 1965 के युद्ध के पचासवीं सालगिरह पर आ रही है।
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