पी चिदंबरम (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के प्रधानमंत्री के प्रस्ताव पर राजनीतिक बहस तेज हो गई है. मंगलवार को एनडीए के तीन घटक दल इसके समर्थन में सामने आए लेकिन कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों के बाद समाजवादी पार्टी भी इसका विरोध कर रही है. वहीं, कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने मंगलवार को इसे जुमला क़रार दिया.
पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने दिल्ली में अपनी किताब पर हो रहे एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि 'संसदीय राजनीति में मौजूदा संविधान के तहत आप एक साथ चुनाव नहीं करा सकते. आप बस नकली तौर पर साथ चुनावों का दिखावा भर कर सकते हैं- कुछ चुनाव पहले और कुछ बाद में करा कर. मगर तीस राज्यों में आप ये कैसे कर सकते हैं? ये एक और चुनावी जुमला है- एक देश एक टैक्स एक जुमला था और अब एक देश एक चुनाव एक जुमला है'.
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मंगलवार को ही समाजवादी पार्टी ने भी इस पर सवाल खड़े कर दिए. समाजवादी पार्टी के नेता नरेश अग्रवाल ने कहा, 'जिन राज्यों में 2 से तीन साल तक का टर्म बचा है विधानसभा का, क्या वहां के सीएम इसके लिए तैयार होंगे? यूपी के सीएम इसे लागू करने के लिए तैयार नहीं होंगे. पता कीजिए कि हमाचल के सीएम क्या कहते हैं वहां विधानसभा भंग करने के बारे में ?'
दरअसल साथ चुनाव कराने के रास्ते में कई संवैधानिक सवाल हैं. क्या कोई विधानसभा पांच साल तक भंग नहीं होगी? अगर कोई राज्य सरकार बहुमत न होने पर गिर गई तो क्या होगा?
क्या वहां राष्ट्रपति शासन लगा रहेगा? लेकिन टीडीपी का कहना है कि इस पर आम राय बनानी चाहिए केंद्रीय मंत्री और टीडीपी सांसद वाई एस चौधरी ने कहा, "ये अच्छी पहल है. कई विकसित देशों में व्यवस्था बहाल है. लेकिन इसके लिए राजनीतिक सहमति बनाना बेहद ज़रूरी होगा.'
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एनडीए के साथ खड़ा अकाली दल भी इस प्रस्ताव के हक़ में है. शिरोमणी अकाली दल के संसदीय दल के नेता प्रेमसिंह चंदूमाजरा ने कहा, वन नेशन, वन इलेक्शन को लागू करने के लिए कठिन कदम उठाने होंगे. कुछ को तकलीफ भी होगी. लेकिन राष्ट्रहित में ऐसे फैसले कई राज्यों के सीएम को लेने होंगे.
जबकि तेलंगाना राष्ट्र समिति के नेता और सांसद विनोद कुमार ने एनडीटीवी से कहा, "भारत सरकार को गंभीरता के साथ इस प्रस्ताव पर आगे बढ़ना चाहिये. हम इसका समर्थन करते हैं".
VIDEO: एक देश-एक चुनाव जुमला!
पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने दिल्ली में अपनी किताब पर हो रहे एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि 'संसदीय राजनीति में मौजूदा संविधान के तहत आप एक साथ चुनाव नहीं करा सकते. आप बस नकली तौर पर साथ चुनावों का दिखावा भर कर सकते हैं- कुछ चुनाव पहले और कुछ बाद में करा कर. मगर तीस राज्यों में आप ये कैसे कर सकते हैं? ये एक और चुनावी जुमला है- एक देश एक टैक्स एक जुमला था और अब एक देश एक चुनाव एक जुमला है'.
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मंगलवार को ही समाजवादी पार्टी ने भी इस पर सवाल खड़े कर दिए. समाजवादी पार्टी के नेता नरेश अग्रवाल ने कहा, 'जिन राज्यों में 2 से तीन साल तक का टर्म बचा है विधानसभा का, क्या वहां के सीएम इसके लिए तैयार होंगे? यूपी के सीएम इसे लागू करने के लिए तैयार नहीं होंगे. पता कीजिए कि हमाचल के सीएम क्या कहते हैं वहां विधानसभा भंग करने के बारे में ?'
दरअसल साथ चुनाव कराने के रास्ते में कई संवैधानिक सवाल हैं. क्या कोई विधानसभा पांच साल तक भंग नहीं होगी? अगर कोई राज्य सरकार बहुमत न होने पर गिर गई तो क्या होगा?
क्या वहां राष्ट्रपति शासन लगा रहेगा? लेकिन टीडीपी का कहना है कि इस पर आम राय बनानी चाहिए केंद्रीय मंत्री और टीडीपी सांसद वाई एस चौधरी ने कहा, "ये अच्छी पहल है. कई विकसित देशों में व्यवस्था बहाल है. लेकिन इसके लिए राजनीतिक सहमति बनाना बेहद ज़रूरी होगा.'
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एनडीए के साथ खड़ा अकाली दल भी इस प्रस्ताव के हक़ में है. शिरोमणी अकाली दल के संसदीय दल के नेता प्रेमसिंह चंदूमाजरा ने कहा, वन नेशन, वन इलेक्शन को लागू करने के लिए कठिन कदम उठाने होंगे. कुछ को तकलीफ भी होगी. लेकिन राष्ट्रहित में ऐसे फैसले कई राज्यों के सीएम को लेने होंगे.
जबकि तेलंगाना राष्ट्र समिति के नेता और सांसद विनोद कुमार ने एनडीटीवी से कहा, "भारत सरकार को गंभीरता के साथ इस प्रस्ताव पर आगे बढ़ना चाहिये. हम इसका समर्थन करते हैं".
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