उत्तराखंड त्रासदी को आज एक साल हो गया है। पिछले साल आज ही के दिन यानी 16 जून की रात को राज्य में भारी बारिश के बीच नदी ऐसी बाढ़ लेकर आई, जिसे भूलना किसी के लिए मुमकिन नहीं। राज्य सरकार की मानें तो इस हादसे में 42 सौ से अधिक लोगों की मौत हुई।
मरने वालों में 1 हजार से ज्यादा लोग स्थानीय निवासी थे जबकि बाकी तीर्थयात्रा के लिए यहां आए हुए थे। केदारनाथ, गौरीकुंड और रामबाड़ा में नुकसान काफी अधिक हुआ। जहां बड़ी संख्या में तीर्थयात्री रुके हुए थे। आपदा के दौरान राहत और बचाव कर्मियों के सामने करीब यहां फंसे एक लाख लोगों को निकालने की चुनौती थी। इस काम में सेना, एयरफोर्स, नेवी के साथ−साथ तमाम टीमों को लगाया गया। करीब दस हजार जवान इसमें दिन रात जुटे रहे। बचाव के दौरान 25 जून को एयरफोर्स का एमआई 17 हेलीकॉप्टर दुघर्टनाग्रस्त हो गया। इस हादसे में एयरफोर्स के पांच एनडीआरएफ के नौ और इंडो तिब्बत पुलिस फोर्स के छह जवान थे।
हादसे के बाद तबाह हुए राज्य के पुनर्निर्माण के लिए केन्द्र सरकार की तरफ से सात हजार तीन सौ छियालिस करोड़, प्रधानमंत्री राहत कोष से 154 करोड़ और राज्य सरकार की तरफ से सौ करोड़ के राहत पैकेज का ऐलान किया गया, लेकिन यह राहत लोगों तक कितनी पहुंच पाई यह सवाल अब भी बना हुआ है।
एक साल बीत जाने के बावजूद हादसे में लापता हुए लोगों को लेकर स्थिति अब तक साफ नहीं हो पाई है। जगह−जगह लाशों और कंकालों का मिलना जारी है। हादसे के बाद पूरी तरह से चरमराई परिवहन व्यवस्था को अब तक दुरुस्त नहीं किया जा सका है।
हादसे के एक साल बाद भी राज्य और राज्य के लोग खुद को फिर से खड़ा करने की कोशिश कर रहे है। नजर डालते हैं राज्य में त्रासदी के कुछ आंकड़ों पर।
-एनडीएमए का अनुमान 10000 लोगों की मौत
-सरकारी आंकड़ा 4251 मौत और 1497 लापता
-10 हज़ार मवेशी बहे
-लापता लोगों के परिजनों को 133 करोड़ रुपये बांटे गए
-उत्तराखंड के मृतकों के परिजनों को 5−5 लाख रुपये का मुआवज़ा
-दूसरे राज्यों के मृत लोगों के परिजनों को 3.5−3.5 लाख मुआवज़ा
-हादसे में करीब 9000 किलोमीटर सड़क तबाह
-85 बड़े पुल और 140 छोटे पुल तबाह
-114 स्कूलों की इमारत बरबाद
-आपदा से 4200 गांव प्रभावित
-राज्य के 4 हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को नुक़सान
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