
फाइल फोटो
नई दिल्ली:
दिल्ली के जंतर-मंतर पर पूर्व सैनिकों के अनिश्चितकालीन भुख हड़ताल का तीसरा दिन। ऐसा ही अनशन देश के अलग शहरों के 50 से ज्यादा जगहों पर चल रहा है। सरकार की ओर से अनशन तुड़वाने के लिए अभी तक कोई पहल नहीं हुई है। धरने पर बैठे पूर्व सैनिकों ने राष्ट्रपति से समय मांगा है और साथ में उनसे अपनी अनुरोध किया है वे इस मामले में दखल दें।
वन रैंक वन पेंशन की 33 साल पुरानी मांग को लेकर देशभर में पूर्व सैनिक आंदोलन कर रहे हैं। इससे पहले रविवार को इन पूर्व फौजियों ने जंतर-मंतर में रैली कर सरकार पर दवाब बनाया था। उस रैली के दौरान मोदी सरकार को बहुत ही खरी-खोटी सुनाई। वक्ताओं ने सीधे पीएम नरेन्द्र मोदी और रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर को निशाने पर लिया। इससे सरकार और कई वरिष्ठ सेना के पूर्व अधिकारी नाराज हो गए हैं। बावजूद इसके संभावना है कि बिहार चुनाव से पहले सरकार वन रैंक वन पेंशन को लागू करने का ऐलान कर दे ताकि इसका फायदा उसे सितंबर अक्टूबर में होने वाले बिहार चुनावों में मिल सके।
पूर्व सैनिक क्यों कर रहे हैं प्रदर्शन
पूर्व सैनिकों की नाराजगी इस बात से भी है कि 15 सिंतबर 2013 को हरियाणा के रेवाड़ी में लोकसभा चुनाव प्रचार की शुरुआत करते हुए उस वक्त बीजेपी के पीएम इन वेटिंग नरेन्द्र मोदी ने पूर्व सैनिकों से सत्ता आने पर वन रैंक वन पेंशन देने का वादा किया था। इसके बाद यूपीए सरकार ने चुनाव से कुछ महीने पहले 17 फरवरी 2014 को केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने 2014-15 के अंतिम बजट में इस योजना को मंजूरी देकर पूर्व सैनिकों की उम्मीदों को जिंदा कर दिया। अब जबकि मोदी सरकार का एक साल पूरा हो गया और खुद प्रधानमंत्री मोदी मन की बात में इसे लागू करना जटिल बात कह चुके हैं और पूर्व सैनिकों को भरोसा दिया है सरकार इनकी मांग मान लेगी, लेकिन पूर्व सैनिक अब इसे लागू करने का पक्का डेड लाइन चाहते हैं, इसके बिना वह हथियार डालने को तैयार नहीं हैं।
क्या है मामला
1983 में चौथा पे कमीशन लागू हुआ तो उसमें दो कैटेगरी बना दी गईं। पहली प्री पे दूसरी पोस्ट पे कमीशन। यानी 1983 से पहले रिटायर हुए सैनिकों को पेंशन उनकी सैलरी के हिसाब से मिलेगी, जबकि चौथा पे कमीशन लागू होने के बाद बढ़ी सैलरी के साथ रिटायर हुए सैनिकों को पेंशन बढ़ी हुई मिलेगी। सैनिक 1983 में रिटायर हुआ तो उसे 300 रुपये पेंशन मिलती है और दूसरा सैनिक 2006 में उसी समान सर्विस व पद के हिसाब से रिटायर होता है और उसे 5 हजार रुपये पेंशन मिलेगी। आज हालत ये है अगर 1983 से पहले कोई लेफ्टिनेंट जनरल रिटायर हुआ है तो उसे आज के रिटायर हुए कर्नल से कम पेंशन मिलती है जबकि लेफ्टिनेंट जनरल एक कर्नल से दो रैंक ऊपर है। जब इसको लेकर विवाद बढ़ा तो 1984 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वादा किया उनकी मांगों पर सरकार गंभीरता से विचार करेगी। वैसे अब देश के पांच प्रधानमंत्री वन रैंक वन पेंशन को लेकर अपनी रजामंदी दे चुके हैं, लेकिन अब तक इसे लागू नहीं किया जा सका है। एक सरकार को लग रहा है इससे खजाने पर अनावश्यक भार पड़ेगा, वहीं ये मुद्दा पैरामिलिट्री फोर्सेज में भी उठ सकता है।
वन रैंक वन पेंशन की 33 साल पुरानी मांग को लेकर देशभर में पूर्व सैनिक आंदोलन कर रहे हैं। इससे पहले रविवार को इन पूर्व फौजियों ने जंतर-मंतर में रैली कर सरकार पर दवाब बनाया था। उस रैली के दौरान मोदी सरकार को बहुत ही खरी-खोटी सुनाई। वक्ताओं ने सीधे पीएम नरेन्द्र मोदी और रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर को निशाने पर लिया। इससे सरकार और कई वरिष्ठ सेना के पूर्व अधिकारी नाराज हो गए हैं। बावजूद इसके संभावना है कि बिहार चुनाव से पहले सरकार वन रैंक वन पेंशन को लागू करने का ऐलान कर दे ताकि इसका फायदा उसे सितंबर अक्टूबर में होने वाले बिहार चुनावों में मिल सके।
पूर्व सैनिक क्यों कर रहे हैं प्रदर्शन
पूर्व सैनिकों की नाराजगी इस बात से भी है कि 15 सिंतबर 2013 को हरियाणा के रेवाड़ी में लोकसभा चुनाव प्रचार की शुरुआत करते हुए उस वक्त बीजेपी के पीएम इन वेटिंग नरेन्द्र मोदी ने पूर्व सैनिकों से सत्ता आने पर वन रैंक वन पेंशन देने का वादा किया था। इसके बाद यूपीए सरकार ने चुनाव से कुछ महीने पहले 17 फरवरी 2014 को केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने 2014-15 के अंतिम बजट में इस योजना को मंजूरी देकर पूर्व सैनिकों की उम्मीदों को जिंदा कर दिया। अब जबकि मोदी सरकार का एक साल पूरा हो गया और खुद प्रधानमंत्री मोदी मन की बात में इसे लागू करना जटिल बात कह चुके हैं और पूर्व सैनिकों को भरोसा दिया है सरकार इनकी मांग मान लेगी, लेकिन पूर्व सैनिक अब इसे लागू करने का पक्का डेड लाइन चाहते हैं, इसके बिना वह हथियार डालने को तैयार नहीं हैं।
क्या है मामला
1983 में चौथा पे कमीशन लागू हुआ तो उसमें दो कैटेगरी बना दी गईं। पहली प्री पे दूसरी पोस्ट पे कमीशन। यानी 1983 से पहले रिटायर हुए सैनिकों को पेंशन उनकी सैलरी के हिसाब से मिलेगी, जबकि चौथा पे कमीशन लागू होने के बाद बढ़ी सैलरी के साथ रिटायर हुए सैनिकों को पेंशन बढ़ी हुई मिलेगी। सैनिक 1983 में रिटायर हुआ तो उसे 300 रुपये पेंशन मिलती है और दूसरा सैनिक 2006 में उसी समान सर्विस व पद के हिसाब से रिटायर होता है और उसे 5 हजार रुपये पेंशन मिलेगी। आज हालत ये है अगर 1983 से पहले कोई लेफ्टिनेंट जनरल रिटायर हुआ है तो उसे आज के रिटायर हुए कर्नल से कम पेंशन मिलती है जबकि लेफ्टिनेंट जनरल एक कर्नल से दो रैंक ऊपर है। जब इसको लेकर विवाद बढ़ा तो 1984 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वादा किया उनकी मांगों पर सरकार गंभीरता से विचार करेगी। वैसे अब देश के पांच प्रधानमंत्री वन रैंक वन पेंशन को लेकर अपनी रजामंदी दे चुके हैं, लेकिन अब तक इसे लागू नहीं किया जा सका है। एक सरकार को लग रहा है इससे खजाने पर अनावश्यक भार पड़ेगा, वहीं ये मुद्दा पैरामिलिट्री फोर्सेज में भी उठ सकता है।
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