जयपुर:
एक ओर कांग्रेस वर्ष 2017 में भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जन्मशती मनाने की तैयारियों में जुटी हुई है, वहीं राजस्थान में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने 'पलटवार' के रूप में भूतपूर्व पीएम के कार्यकाल के सबसे विवादास्पद हिस्से - वर्ष 1975 की एमरजेंसी - को स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल करने की घोषणा कर दी है. एमरजेंसी से जुड़ा अध्याय 10वीं और 12वीं कक्षा के समाजविज्ञान पाठ्यक्रम का हिस्सा होगा.
राज्य के शिक्षामंत्री वासुदेव देवनानी ने अपने विधानसभा क्षेत्र अजमेर में एक सरकारी स्कूल में रविवार को आयोजित कार्यक्रम के दौरान यह घोषणा की. इस फैसले के पीछे का कारण बताते हुए शिक्षामंत्री ने कहा, "वर्ष 1975 में एमरजेंसी लागू की गई थी... लोगों को जेल में डाल दिया गया था... राजनैतिक स्तर पर खलबली मच गई थी, और राजनीति का स्वरूप बदल गया था... सो, हमारे युवाओं को जानना ही चाहिए कि लोकतंत्र की रक्षा कैसे करनी है..."
इस फैसले से कांग्रेस काफी नाराज़ है, खासतौर से इस साल की शुरुआत से, जब राज्य के शिक्षा विभाग ने देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का नाम कक्षा आठ की पाठ्यपुस्तकों से हटवा दिया था, और महात्मा गांधी की नाथूराम गोडसे द्वारा हत्या किया जाना भी किताबों में शामिल नहीं किया गया.
कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने कहा, "उन्होंने वे हिस्से हटाने की कोशिश की, जिनमें पंडित नेहरू का ज़िक्र आता है..." देश में कहीं भी एमरजेंसी के बारे में नहीं पढ़ाया जाता, इस बात की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा, "इंदिरा गांधी हमारी सबसे मजबूत नेताओं में से एक थीं... अगर हम उनकी बात कर रहे हैं, तो हमें उस युद्ध का भी ज़िक्र करना चाहिए, जो उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ लड़ा था..."
वैसे, राजस्थान का स्कूली पाठ्यक्रम इससे पहले भी विवादों के घेरे में रहा है. वर्ष 2014 में राजस्थान देश का पहला राज्य बना था, जिसने योगमुद्रा 'सूर्यनमस्कार' को सरकारी स्कूलों में अनिवार्य कर दिया था. यह फैसला राज्य के मुस्लिमों को पसंद नहीं आया था, क्योंकि उनमें से कुछ का मानना है कि यह हिन्दुओं में देवता माने जाने वाले सूर्य की आराधना है.
वर्ष 2015 में भी राज्य के शिक्षा बोर्ड ने मुगल बादशाह अकबर के नाम से 'महान' शब्द को हटाने और राजस्थान के राणा प्रताप का बखान करने का फैसला किया था. हालांकि शिक्षामंत्री वासुदेव देवनानी ने इस बात से इंकार किया था कि किताबों को 'विचारधारा' को ध्यान में रखकर लिखा गया है, लेकिन इन दोनों फैसलों पर काफी विवाद हुआ था.
राज्य के शिक्षामंत्री वासुदेव देवनानी ने अपने विधानसभा क्षेत्र अजमेर में एक सरकारी स्कूल में रविवार को आयोजित कार्यक्रम के दौरान यह घोषणा की. इस फैसले के पीछे का कारण बताते हुए शिक्षामंत्री ने कहा, "वर्ष 1975 में एमरजेंसी लागू की गई थी... लोगों को जेल में डाल दिया गया था... राजनैतिक स्तर पर खलबली मच गई थी, और राजनीति का स्वरूप बदल गया था... सो, हमारे युवाओं को जानना ही चाहिए कि लोकतंत्र की रक्षा कैसे करनी है..."
इस फैसले से कांग्रेस काफी नाराज़ है, खासतौर से इस साल की शुरुआत से, जब राज्य के शिक्षा विभाग ने देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का नाम कक्षा आठ की पाठ्यपुस्तकों से हटवा दिया था, और महात्मा गांधी की नाथूराम गोडसे द्वारा हत्या किया जाना भी किताबों में शामिल नहीं किया गया.
कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने कहा, "उन्होंने वे हिस्से हटाने की कोशिश की, जिनमें पंडित नेहरू का ज़िक्र आता है..." देश में कहीं भी एमरजेंसी के बारे में नहीं पढ़ाया जाता, इस बात की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा, "इंदिरा गांधी हमारी सबसे मजबूत नेताओं में से एक थीं... अगर हम उनकी बात कर रहे हैं, तो हमें उस युद्ध का भी ज़िक्र करना चाहिए, जो उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ लड़ा था..."
वैसे, राजस्थान का स्कूली पाठ्यक्रम इससे पहले भी विवादों के घेरे में रहा है. वर्ष 2014 में राजस्थान देश का पहला राज्य बना था, जिसने योगमुद्रा 'सूर्यनमस्कार' को सरकारी स्कूलों में अनिवार्य कर दिया था. यह फैसला राज्य के मुस्लिमों को पसंद नहीं आया था, क्योंकि उनमें से कुछ का मानना है कि यह हिन्दुओं में देवता माने जाने वाले सूर्य की आराधना है.
वर्ष 2015 में भी राज्य के शिक्षा बोर्ड ने मुगल बादशाह अकबर के नाम से 'महान' शब्द को हटाने और राजस्थान के राणा प्रताप का बखान करने का फैसला किया था. हालांकि शिक्षामंत्री वासुदेव देवनानी ने इस बात से इंकार किया था कि किताबों को 'विचारधारा' को ध्यान में रखकर लिखा गया है, लेकिन इन दोनों फैसलों पर काफी विवाद हुआ था.
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