मौजूदा एनडीए सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में पिछली यूपीए सरकार का ही रुख अपनाने के बाद वित्तमंत्री अरुण जेटली ने आज कहा कि विदेशों में जमा कालेधन के ब्यौरे का खुलासा करने में 1995 में तत्कालीन सरकार द्वारा जर्मनी के साथ किया गया समझौता बाधक है।
उन्होंने यह आरोप खारिज किया कि मोदी सरकार विदेशों में कालाधन जमा करने वालों की सूचना देना नहीं चाहती। जेटली ने कहा, 'अगर सवाल यह है कि क्या मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार किसी कारण से कुछ नामों को सार्वजनिक करने की इच्छुक नहीं है तो जवाब है कि कतई नहीं.. हमें नामों को सार्वजनिक करने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन उन्हें विधिवत कानूनी प्रक्रिया के तहत ही सार्वजनिक किया जा सकता है।'
उन्होंने संवाददाताओं को बताया, 'और कानून की इस विधिवत प्रक्रिया में डीटीएए (दोहरे कराधान से बचाव की संधि) बाधा बन रही है जिस पर जर्मनी और तत्कालीन कांग्रेस पार्टी की सरकार के बीच 19 जून, 1995 को हस्ताक्षर किया गया था।'
आज दिन में इससे पहले कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विदेशों में कालाधन रखने वालों के नाम का खुलासा करने से मना करने के लिए मोदी सरकार की आलोचना की थी।
इस पर कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने पार्टी की ब्रिफिंग में कहा, 'काले धन के बारे में जो हो-हल्ला किया जाता रहा, क्या वह केवल चुनाव के दौरान भाषण सुनने वालों के लिए ही था।'
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने भारतीय द्वारा विदेशी बैंक खातों में रखे कालेधन को वापस लाने का वादा किया है, लेकिन आज उसने उच्चतम न्यायालय में संप्रग सरकार वाला रख ही अपनाते हुये कहा कि वह उन देशों प्राप्त सूचनाओं का ब्यौरा नहीं दे सकती जिनके साथ भारत की दोहरे कराधान से बचाव की संधि है।
जेटली ने इसकी और व्याख्या करते हुए कहा, 'डीटीएए के मुताबिक, संबंधित नामों को तभी सार्वजनिक किया जा सकता है जब उनकी जांच के बाद अदालत के सामने रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी गई हो और आरोप पत्र दाखिल कर दिए गए हों। उस समय तक जब जांच चल रही हो, महज प्रचार के लिए उन्हें सार्वजनिक नहीं किया जा सकता।
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