प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली:
हर साल चुपके से आपके घर में घुस आने वाला डेंगू का वाइरस मच्छरों की एडीज़ प्रजाति में पनपता है। किसी मरीज को डेंगू है या नहीं इसका पता करने के लिए होने वाले टेस्ट का खर्च प्राइवेट अस्पतालों में एक से डेढ़ हजार रुपये है।
सिर्फ 10 प्रतिशत मरीजों में दिखते हैं गंभीर लक्षण
देश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एम्स में माइक्रोबायोलॉजी विभाग के प्रोफेसर ललित दर हर साल बीसियों बीमारियों पर रिसर्च करते हैं। उनका कहना है कि डेंगू के वाइरस की गंभीरता को लेकर बड़ी गलतफहमियां हैं। उनका कहना है कि ‘जिन लोगों को डेंगू होता है, उनमें से करीब 50 प्रतिशत लोगों को कोई लक्षण ही दिखाई नहीं देते और वे इसके वाइरस के खिलाफ अपने भीतर प्रतिरक्षा पैदा कर लेते हैं। बाकी 50 प्रतिशत लोगों में से भी ज्यादातर लोगों को इसके लक्षण दिखाई देते हैं लेकिन वे आसानी से ठीक हो जाते हैं। केवल दस प्रतिशत लोगों में ही इसके गंभीर लक्षण दिखते हैं लेकिन उनको भी डरने की जरूरत नहीं है। हम यही सलाह देते हैं कि शरीर में खूब पानी होना चाहिए। इसलिए शिकंजी, शरबत, सूप और पानी लेते रहना चाहिए।’
डेंगू का वाइरस एडीज़ मच्छर के भीतर ही पनपता है। डॉ दर बताते हैं कि डेंगू के वाइरस के अध्ययन के लिए मादा एडीज़ मच्छर की कोशिकाओं की श्रृंखला पर मरीज के खून का सैंपल डाला जाता है। कोशिकाओं पर संक्रमित खून का नमूना गिरते ही उसका रंग और संरचना बदलती है और अगर खून में डेंगू का वाइरस है, तो वह पनपने लगता है।
वाइरस नंबर 2 कर रहा परेशान
अपने कंप्यूटर में डॉ ललित दर हमें डेंगू वाइरस की ग्रोथ दिखाते हैं, जिसे मेडिकल भाषा में 'कल्चर' कहा जाता है। वह कहते हैं कि, ‘डेंगू के वाइरस चार प्रकार के हैं। हम इस कल्चर में चारों को अलग-अलग पहचान सकते हैं। इस बार जो बुखार फैल रहा है उसमें 2 नंबर का वाइरस सबसे अधिक परेशान कर रहा है।’
चार किस्म के विषाणुओं के लिए एक टीका कैसे बने
सवाल यह है कि क्या इस बीमारी से लड़ने के लिए कोई वैक्सीन यानी टीका बनाना मुमकिन नहीं है। सच तो यह है कि आज करीब आधा दर्जन टीकों का ट्रायल चल रहा है, लेकिन समस्या यह है कि डेंगू का वाइरस एक प्रकार का नहीं चार तरह का है। कोई भी कारगर टीका वही होगा जो किसी एक वाइरस के लिए नहीं बल्कि चारों प्रकार के विषाणुओं से बचाव करने वाला हो। डॉ ललित दर कहते हैं कि ‘अगर किसी व्यक्ति को पहले एक तरह के वाइरस से डेंगू हो चुका है तो उसके भीतर उसकी प्रतिरोधकता पहले से होगी। ऐसे में कोई ऐसा टीका नहीं दिया जा सकता जिससे चारों वाइरसों के खिलाफ प्रतिरोधकता हो।’
गरीब देशों की बीमारी, टीके का बाजार नहीं
शोधकर्ता कहते हैं कि डेंगू असल में गरीब देशों या विकासशील देशों में होने वाली बीमारी है। शायद इसलिए भी इसके टीके के लिए बाजार उस तरह कोशिश नहीं कर रहा जैसे अमीर और विकसित देशों के लिए होती है। शोध बताते हैं कि भारत में डेंगू का अगर एक मामला पकड़ा जाता है तो 300 मामलों के बारे में पता ही नहीं चलता। यानी जितने मामले पकड़े जाते हैं असल में मामले उससे तीन सौ गुना अधिक होते हैं।
दिल्ली डेंगू के लिए अनुकूल शहर
हर साल अगस्त से अक्टूबर के बीच कहर बरपाने वाला यह वाइरस क्या दिल्ली जैसे बड़े शहरों में ही पैदा होता है? जानकार कहते हैं कि डेंगू का वाइरस शहरी इलाकों में फैलने वाला वाइरस है क्योंकि यह मच्छरों के भीतर पनपता है। यहां निर्माण कार्य और खराब सफाई प्रबंधन की वजह से इसके फैलने के लिए अनुकूल परिस्थितियां हैं। लेकिन हर साल होने वाली बीमारी से निबटने के लिए जिस तरह की सफाई की जरूरत है, अक्सर उसके लिए न तो हमारे शहरी समाज में कोई आदत है और न सरकार की एजेंसियां इसके लिए जिम्मेदारी समझती हैं। डेंगू हर साल जुलाई से अक्टूबर तक हमारा मेहमान बन जाता है, जिसका 'स्वागत' करना हम अपना राष्ट्रीय कर्तव्य समझते हैं।
सिर्फ 10 प्रतिशत मरीजों में दिखते हैं गंभीर लक्षण
देश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एम्स में माइक्रोबायोलॉजी विभाग के प्रोफेसर ललित दर हर साल बीसियों बीमारियों पर रिसर्च करते हैं। उनका कहना है कि डेंगू के वाइरस की गंभीरता को लेकर बड़ी गलतफहमियां हैं। उनका कहना है कि ‘जिन लोगों को डेंगू होता है, उनमें से करीब 50 प्रतिशत लोगों को कोई लक्षण ही दिखाई नहीं देते और वे इसके वाइरस के खिलाफ अपने भीतर प्रतिरक्षा पैदा कर लेते हैं। बाकी 50 प्रतिशत लोगों में से भी ज्यादातर लोगों को इसके लक्षण दिखाई देते हैं लेकिन वे आसानी से ठीक हो जाते हैं। केवल दस प्रतिशत लोगों में ही इसके गंभीर लक्षण दिखते हैं लेकिन उनको भी डरने की जरूरत नहीं है। हम यही सलाह देते हैं कि शरीर में खूब पानी होना चाहिए। इसलिए शिकंजी, शरबत, सूप और पानी लेते रहना चाहिए।’
डेंगू का वाइरस एडीज़ मच्छर के भीतर ही पनपता है। डॉ दर बताते हैं कि डेंगू के वाइरस के अध्ययन के लिए मादा एडीज़ मच्छर की कोशिकाओं की श्रृंखला पर मरीज के खून का सैंपल डाला जाता है। कोशिकाओं पर संक्रमित खून का नमूना गिरते ही उसका रंग और संरचना बदलती है और अगर खून में डेंगू का वाइरस है, तो वह पनपने लगता है।
वाइरस नंबर 2 कर रहा परेशान
अपने कंप्यूटर में डॉ ललित दर हमें डेंगू वाइरस की ग्रोथ दिखाते हैं, जिसे मेडिकल भाषा में 'कल्चर' कहा जाता है। वह कहते हैं कि, ‘डेंगू के वाइरस चार प्रकार के हैं। हम इस कल्चर में चारों को अलग-अलग पहचान सकते हैं। इस बार जो बुखार फैल रहा है उसमें 2 नंबर का वाइरस सबसे अधिक परेशान कर रहा है।’
चार किस्म के विषाणुओं के लिए एक टीका कैसे बने
सवाल यह है कि क्या इस बीमारी से लड़ने के लिए कोई वैक्सीन यानी टीका बनाना मुमकिन नहीं है। सच तो यह है कि आज करीब आधा दर्जन टीकों का ट्रायल चल रहा है, लेकिन समस्या यह है कि डेंगू का वाइरस एक प्रकार का नहीं चार तरह का है। कोई भी कारगर टीका वही होगा जो किसी एक वाइरस के लिए नहीं बल्कि चारों प्रकार के विषाणुओं से बचाव करने वाला हो। डॉ ललित दर कहते हैं कि ‘अगर किसी व्यक्ति को पहले एक तरह के वाइरस से डेंगू हो चुका है तो उसके भीतर उसकी प्रतिरोधकता पहले से होगी। ऐसे में कोई ऐसा टीका नहीं दिया जा सकता जिससे चारों वाइरसों के खिलाफ प्रतिरोधकता हो।’
गरीब देशों की बीमारी, टीके का बाजार नहीं
शोधकर्ता कहते हैं कि डेंगू असल में गरीब देशों या विकासशील देशों में होने वाली बीमारी है। शायद इसलिए भी इसके टीके के लिए बाजार उस तरह कोशिश नहीं कर रहा जैसे अमीर और विकसित देशों के लिए होती है। शोध बताते हैं कि भारत में डेंगू का अगर एक मामला पकड़ा जाता है तो 300 मामलों के बारे में पता ही नहीं चलता। यानी जितने मामले पकड़े जाते हैं असल में मामले उससे तीन सौ गुना अधिक होते हैं।
दिल्ली डेंगू के लिए अनुकूल शहर
हर साल अगस्त से अक्टूबर के बीच कहर बरपाने वाला यह वाइरस क्या दिल्ली जैसे बड़े शहरों में ही पैदा होता है? जानकार कहते हैं कि डेंगू का वाइरस शहरी इलाकों में फैलने वाला वाइरस है क्योंकि यह मच्छरों के भीतर पनपता है। यहां निर्माण कार्य और खराब सफाई प्रबंधन की वजह से इसके फैलने के लिए अनुकूल परिस्थितियां हैं। लेकिन हर साल होने वाली बीमारी से निबटने के लिए जिस तरह की सफाई की जरूरत है, अक्सर उसके लिए न तो हमारे शहरी समाज में कोई आदत है और न सरकार की एजेंसियां इसके लिए जिम्मेदारी समझती हैं। डेंगू हर साल जुलाई से अक्टूबर तक हमारा मेहमान बन जाता है, जिसका 'स्वागत' करना हम अपना राष्ट्रीय कर्तव्य समझते हैं।