Pegasus स्पाइवेयर बनाने और बेचने वाली इजरायली कंपनी एनएसओ ग्रुप ने मंगलवार को एनडीटीवी को बताया कि इनके सॉफ्टवेयर के जरिए कथित तौर पर निगरानी के लिए टारगेट बनाए गए लोगों की लिस्ट 'ना उनकी है और ना ही कभी थी.' NSO के एक प्रवक्ता ने NDTV को बताया कि ''फॉरबिडेन स्टोरीज द्वारा पब्लिश की गई लिस्ट से कंपनी का कोई संबंध नहीं है.'' (फॉरबिडेन स्टोरीज पेरिस स्थित गैर-लाभकारी समूह है जिसने 50,000 फ़ोन नंबरों का डेटाबेस हासिल कर लिया है.)
प्रवक्ता ने बताया, 'यह लिस्ट ना तो एनएसओ की है और ना ही कभी थी. यह मनगढ़ंत जानकारी है. यह एनएसओ के क्लाइंट्स के टारगेट या संभावित टारगेट की लिस्ट नहीं है.' साथ ही उन्होंने कहा, इस लिस्ट पर भरोसा करना और इससे जुड़े लोगों को संभावित सर्विलांस टारगेट के रूप में देखना गलत और भ्रामक है.
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साथ ही उन्होंने कहा, 'कंपनी के पास अपने क्लाइंट्स के डेटा का एक्सेस नहीं होता है.' हालांकि, उन्होंने यह जरूर बताया कि क्लाइंट्स "हमें जांच के तहत ऐसी जानकारी प्रदान करने के लिए बाध्य हैं. अगर हमें एनएसओ की तकनीक के दुरुपयोग के मजबूत सबूत मिलते हैं तो पूरी तरह से जांच की जाएगी, जैसा कि हमेशा होता था और हमेशा होता रहेगा.'
द वायर की रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया था कि 300 से ज्यादा भारतीय फोन नंबरों को संभावित जासूसी के लिए टारगेट बनाया गया है. इस लिस्ट में कांग्रेस नेता राहुल गांधी और वरिष्ठ पत्रकारों के नंबर शामिल हैं. इसके बाद कंपनी की ओर से सभी आरोपों का खंडन करते हुए एक सार्वजनिक बयान जारी किया था. कंपनी ने कहा था कि वे अपने स्पाइवेयर की सर्विस अपराध और आतंकी गतिविधियों से लोगों की जान बचाने के मकसद के लिए जांची-परखी सरकारों को देती हैं. और कंपनी "मानहानि के मुकदमे पर भी विचार" कर रही है.
पिछले 2 दिनों में द वायर और द वाशिंगटन पोस्ट जैसे मीडिया संस्थानों ने अपनी रिपोर्ट्स में दावा किया है कि एनएसओ ग्रुप के किसी क्लाइंट ने Pegasus का इस्तेमाल करते हुए विपक्षी नेताओं, पत्रकारों और अन्यों का फोन हैक किया है.
द वायर ने रिपोर्ट में बताया कि भारत में इन नंबरों के साथ साल 2017-2019 के बीच लोकसभा चुनाव से पहले छेड़छाड़ की गई थी. इस लिस्ट में कांग्रेस नेता राहुल गांधी, चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर, पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा का नाम भी शामिल है. रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि फोरेंसिक विश्लेषण के मुताबिक प्रशांत किशोर के फोन के साथ हालही 14 जुलाई को छेड़छाड़ की गई थी.
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वहीं, द वायर ने यह बात भी कहा कि इस बात के पर्याप्त सबूत नहीं हैं कि लिस्ट में मौजूद सभी फोन नंबर हैक किए गए थे, लेकिन फोरेंसिक विश्लेषण में कुछ फोन नंबर पर पेगासस गतिविधि के संकेत दिखाई दिए हैं.
सरकार ने भी मजबूती से अपना पक्ष रखते हुए कहा कि इन दावों में कोई मजबूत आधार नहीं है. आईटी मंत्रालय से जुड़े एक सूत्र ने एनडीटीवी को बताया था कि सरकार के पास डरने और छुपाने के लिए कुछ नहीं है.
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