भारतीय एनएसए अजित डोभाल और उनके पाकिस्तान समकक्ष सरताज अजीज
नई दिल्ली:
पाकिस्तानी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सरताज अज़ीज़ से मुलाक़ात के लिए हुर्रियत को न्योता जाने के बाद भी भारत ने अपनी तरफ़ से न तो बातचीत तोड़ने की बात की है और ना ही कोई तल्ख़ टिप्पणी की है। लेकिन सूत्र बताते हैं कि भारत इसे इतनी आसानी से जाने भी नहीं देगा। उसकी इस बात पर ख़ास निगाह होगी कि अज़ीज़ हुर्रियत से मुलाक़ात का वक़्त कब रखते हैं। अगर एनएसए स्तर की द्विपक्षीय बातचीत के बाद शाम को दावत के तौर पर रखते हैं तो भारत कोई कड़ा क़दम नहीं उठाएगा। लेकिन अगर अज़ीज़ पहले हुर्रियत से मिलने का वक़्त रखते हैं तो भारत इस बातचीत को रद्द कर देगा।
इसके पीछे दलील ये है कि पिछले साल अगस्त में हुर्रियत से पाक उच्चायुक्त की मुलाक़ात के बाद ही भारत ने विदेश सचिव स्तर की बातचीत रद्द कर दी थी। मंशा बदली हुई सरकार का बदला हुआ रवैया और बदली हुई नीति दिखाने की थी। अपनी मज़बूती दिखाने की थी। अब अगर फिर बातचीत से पहले अज़ीज़ हुर्रियत से मुलाक़ात करते हैं तो भारत के पास चुप रहने जैसा कोई विकल्प नहीं बचेगा। भारत चुप रहा तो इसे भारत की कमज़ोरी मानी जाएगी। फिर सवाल ये भी उठेगा कि यही करना था तो पिछली बार इतनी हायतौबा क्यों मचाई। बातचीत क्यों तोड़ी।
सूत्र बताते हैं कि उधमपुर और गुरदासपुर जैसे सीमापार आतंकवाद के मामलों और सीज़फ़ायर के लगातार उल्लंघन की वारदात के बावजूद भारत बातचीत करने जा रहा है यही अपने आप में बड़ी बात है। लेकिन एनएसए बातचीत के पहले हुर्रियत से अज़ीज़ की मुलाक़ात हो, भारत इतना नहीं सह सकता। फिर मोदी सरकार को भी पहले की सरकारों की तरह 'सॉफ्ट' मान लिए जाने का भी ख़तरा है।
उधर, पाकिस्तान उच्चायोग के सूत्र बताते हैं कि अज़ीज़ हुर्रियत मुलाक़ात का वक़्त अभी तय नहीं है। ये एनएसए बातचीत से पहले भी हो सकती है और बाद में भी। वे ये भी कहते हैं कि अभी दोनों एनएसए की मुलाक़ात का वक़्त भी तय नहीं है। इस दिशा में काम चल रहा है।
जो भी हो पाकिस्तान ने एक बार फिर अपना पुराना रवैया दिखा दिया है। 23 अगस्त को भारत और पाकिस्तान के राष्टीय सुरक्षा सलाहकारों की बातचीत के पहले पाकिस्तान ने अपना कश्मीर कार्ड खेल दिया है।
पाकिस्तान उच्चायोग ने अलगाववादी हुर्रियत नेताओं को सरताज अज़ीज़ से मुलाक़ात और बात का न्योता भेज दिया है। पाकिस्तानी एनएसए अज़ीज़ हुर्रियत नेताओं से 23 अगस्त को ही मिलेंगे। हुर्रियत नेता मीर वाइज़ उमर फ़ारूक़ कहते हैं कि इसे मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिए। हमारी मुलाक़ात से बातचीत पर कोई फर्क नहीं पड़ने जा रहा है।
पिछले साल अगस्त में दोनों देशों के विदेश सचिवों की इस्लामाबाद में मुलाक़ात से पहले पाकिस्तान उच्चायुक्त ने दिल्ली में हुर्रियत नेताओं से बात की थी। इसके बाद भारत ने बातचीत रोक दी थी। इस बार भी अज़ीज़-हुर्रियत मुलाक़ात की बात से भारत नाराज़ है पर वो बातचीत रद्द नहीं करने जा रहा।
सूत्रों के मुताबिक़ सरकार को
- पाकिस्तान का ये क़दम उकसावे की कोशिश लगती है
- पाकिस्तान चाहता है कि भारत बातचीत तोड़े ताकि दुनिया में उसकी बदनामी हो
- पाकिस्तान में एक तबक़ा बातचीत रोकना चाहता है
- तभी सीमापार से आतंकी हमले और सीज़फ़ायर उल्लंघन के बाद हुर्रियत का न्योता सामने आया है
- लेकिन भारत इन सबकी बजाय बातचीत पर ध्यान लगाएगा
- सूत्र ये भी बताते हैं कि हुर्रियत को न्योता जाने को लेकर भारत उचित समय पर उचित जवाब देगा।
इस बीच पाकिस्तान से बातचीत पर बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा ने पहले ही सवाल उठा दिए हैं। यशवंत सिन्हा का कहना है कि अटल जी के टाइम से बीजेपी की नीति थी कि बातचीत और आतंकवाद साथ-साथ नहीं चल सकते। पर पता नहीं क्यों ये बातचीत की जा रही है। क्या नतीजा निकलेगा जब अब तक नहीं निकला है।
पाकिस्तान की तरफ़ ये बार बार युद्धविराम तोड़े जाने और सीमापार से आतंकी हमलों के बीच कांग्रेस बीजेपी सरकार को घेरने में जुटी है। अब उसे और मौक़ा मिल गया है।
कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता आनन्द शर्मा कहते हैं कि प्रधानमंत्री के पास पाकिस्तान को लेकर कोई रोडमैप नहीं है। बातचीत क्यों शुरू कर रहे हैं देश को नहीं बताया।
पाकिस्तान से जब भी कोई राजनेता या अधिकारी बातचीत के लिए भारत आता है वो हुर्रियत से ज़रूर मिलता है। लेकिन मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को ये पसंद नहीं।
उफ़ा के साझा बयान में कश्मीर शब्द का ज़िक्र न होने से नवाज़ सरकार से घर में बड़े सवाल पूछे गए। NSA के बीच बातचीत का मुद्दा आतंकवाद है, लेकिन पाकिस्तान कश्मीर को भी सुर्ख़ियों में रखना चाहता है। अब अज़ीज़ हुर्रियत से पहले मिलने का वक़्त रखते हैं या फिर मुलाक़ात शाम को दावत पर ही रखते हैं, भारत की इस पर ख़ास निगाह होगी।
इसके पीछे दलील ये है कि पिछले साल अगस्त में हुर्रियत से पाक उच्चायुक्त की मुलाक़ात के बाद ही भारत ने विदेश सचिव स्तर की बातचीत रद्द कर दी थी। मंशा बदली हुई सरकार का बदला हुआ रवैया और बदली हुई नीति दिखाने की थी। अपनी मज़बूती दिखाने की थी। अब अगर फिर बातचीत से पहले अज़ीज़ हुर्रियत से मुलाक़ात करते हैं तो भारत के पास चुप रहने जैसा कोई विकल्प नहीं बचेगा। भारत चुप रहा तो इसे भारत की कमज़ोरी मानी जाएगी। फिर सवाल ये भी उठेगा कि यही करना था तो पिछली बार इतनी हायतौबा क्यों मचाई। बातचीत क्यों तोड़ी।
सूत्र बताते हैं कि उधमपुर और गुरदासपुर जैसे सीमापार आतंकवाद के मामलों और सीज़फ़ायर के लगातार उल्लंघन की वारदात के बावजूद भारत बातचीत करने जा रहा है यही अपने आप में बड़ी बात है। लेकिन एनएसए बातचीत के पहले हुर्रियत से अज़ीज़ की मुलाक़ात हो, भारत इतना नहीं सह सकता। फिर मोदी सरकार को भी पहले की सरकारों की तरह 'सॉफ्ट' मान लिए जाने का भी ख़तरा है।
उधर, पाकिस्तान उच्चायोग के सूत्र बताते हैं कि अज़ीज़ हुर्रियत मुलाक़ात का वक़्त अभी तय नहीं है। ये एनएसए बातचीत से पहले भी हो सकती है और बाद में भी। वे ये भी कहते हैं कि अभी दोनों एनएसए की मुलाक़ात का वक़्त भी तय नहीं है। इस दिशा में काम चल रहा है।
जो भी हो पाकिस्तान ने एक बार फिर अपना पुराना रवैया दिखा दिया है। 23 अगस्त को भारत और पाकिस्तान के राष्टीय सुरक्षा सलाहकारों की बातचीत के पहले पाकिस्तान ने अपना कश्मीर कार्ड खेल दिया है।
पाकिस्तान उच्चायोग ने अलगाववादी हुर्रियत नेताओं को सरताज अज़ीज़ से मुलाक़ात और बात का न्योता भेज दिया है। पाकिस्तानी एनएसए अज़ीज़ हुर्रियत नेताओं से 23 अगस्त को ही मिलेंगे। हुर्रियत नेता मीर वाइज़ उमर फ़ारूक़ कहते हैं कि इसे मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिए। हमारी मुलाक़ात से बातचीत पर कोई फर्क नहीं पड़ने जा रहा है।
पिछले साल अगस्त में दोनों देशों के विदेश सचिवों की इस्लामाबाद में मुलाक़ात से पहले पाकिस्तान उच्चायुक्त ने दिल्ली में हुर्रियत नेताओं से बात की थी। इसके बाद भारत ने बातचीत रोक दी थी। इस बार भी अज़ीज़-हुर्रियत मुलाक़ात की बात से भारत नाराज़ है पर वो बातचीत रद्द नहीं करने जा रहा।
सूत्रों के मुताबिक़ सरकार को
- पाकिस्तान का ये क़दम उकसावे की कोशिश लगती है
- पाकिस्तान चाहता है कि भारत बातचीत तोड़े ताकि दुनिया में उसकी बदनामी हो
- पाकिस्तान में एक तबक़ा बातचीत रोकना चाहता है
- तभी सीमापार से आतंकी हमले और सीज़फ़ायर उल्लंघन के बाद हुर्रियत का न्योता सामने आया है
- लेकिन भारत इन सबकी बजाय बातचीत पर ध्यान लगाएगा
- सूत्र ये भी बताते हैं कि हुर्रियत को न्योता जाने को लेकर भारत उचित समय पर उचित जवाब देगा।
इस बीच पाकिस्तान से बातचीत पर बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा ने पहले ही सवाल उठा दिए हैं। यशवंत सिन्हा का कहना है कि अटल जी के टाइम से बीजेपी की नीति थी कि बातचीत और आतंकवाद साथ-साथ नहीं चल सकते। पर पता नहीं क्यों ये बातचीत की जा रही है। क्या नतीजा निकलेगा जब अब तक नहीं निकला है।
पाकिस्तान की तरफ़ ये बार बार युद्धविराम तोड़े जाने और सीमापार से आतंकी हमलों के बीच कांग्रेस बीजेपी सरकार को घेरने में जुटी है। अब उसे और मौक़ा मिल गया है।
कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता आनन्द शर्मा कहते हैं कि प्रधानमंत्री के पास पाकिस्तान को लेकर कोई रोडमैप नहीं है। बातचीत क्यों शुरू कर रहे हैं देश को नहीं बताया।
पाकिस्तान से जब भी कोई राजनेता या अधिकारी बातचीत के लिए भारत आता है वो हुर्रियत से ज़रूर मिलता है। लेकिन मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को ये पसंद नहीं।
उफ़ा के साझा बयान में कश्मीर शब्द का ज़िक्र न होने से नवाज़ सरकार से घर में बड़े सवाल पूछे गए। NSA के बीच बातचीत का मुद्दा आतंकवाद है, लेकिन पाकिस्तान कश्मीर को भी सुर्ख़ियों में रखना चाहता है। अब अज़ीज़ हुर्रियत से पहले मिलने का वक़्त रखते हैं या फिर मुलाक़ात शाम को दावत पर ही रखते हैं, भारत की इस पर ख़ास निगाह होगी।
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