
नई दिल्ली:
एक वक्त था, जब भारतीय प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के बारे में देशी-विदेशी पत्र-पत्रिकाएं सिर्फ प्रशंसा प्रकाशित किया करती थीं, लेकिन पिछले कुछ महीनों में नामी विदेशी पत्र-पत्रिकाओं ने उन्हें 'नाकाम', 'फिसड्डी', 'कठपुतली' और 'सोनिया का पालतू' तक कह डाला, और अमेरिकी पत्रिका 'टाइम' और ब्रिटिश समाचारपत्र 'द इन्डिपेन्डेन्ट' के बाद अब अमेरिका के प्रमुख समाचारपत्र 'द वॉशिंगटन पोस्ट' ने भी कहा है कि 'चुप्पी साधे रहने वाले' भारतीय प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह 'दुखद व्यक्तित्व' हैं और उन पर इतिहास में 'नाकामयाब' के रूप में दर्ज होने का खतरा मंडरा रहा है...
साइमन डेन्येर (Simon Denyer) द्वारा लिखे गए और बुधवार के अंक में प्रकाशित इस आलेख में समाचारपत्र ने कहा है कि भले ही भारत को ताकतवर, समृद्ध और आधुनिक बनाने में प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह का योगदान महत्वपूर्ण माना जाता रहा है, लेकिन आलोचकों के अनुसार, सदा शांत रहते हुए मीठा बोलने वाले 79-वर्षीय प्रधानमंत्री की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बनी सम्माननीय, शिष्ट, बुद्धिजीवी और टेक्नोक्रैट की छवि अब धीरे-धीरे पूरी तरह बदल गई है... अब उनकी छवि ऐसे 'अप्रभावी' और 'बात से पलटने वाले' नौकरशाह की हो गई है, जो बेहद भ्रष्ट सरकार का मुखिया है...
समाचारपत्र लिखता है कि भारत के आर्थिक सुधारों के आर्किटेक्ट कहे जाने वाले मनमोहन अमेरिका से भारतीय संबंधों में सुधार के भी महत्वपूर्ण कारक रहे हैं, और राष्ट्रपति बराक ओबामा का स्टाफ मनमोहन से उनकी मित्रता के बारे में गाता नहीं थकता है, लेकिन भारत में कोल ब्लॉक आवंटन में हुए कथित घोटाले के चलते पिछले दो सप्ताह से मनमोहन के इस्तीफे की मांग को लेकर संसद का कामकाज ठप है...
समाचारपत्र के अनुसार मनमोहन की छवि में इस नाटकीय गिरावट के लिए प्रधानमंत्री के रूप में उनका दूसरा कार्यकाल जिम्मेदार है, जिसके दौरान न सिर्फ देश में बड़े-बड़े घोटाले सामने आए, बल्कि देश की आर्थिक स्थिति में ठीक नहीं रही... समाचारपत्र ने राजनैतिक इतिहासकार रामचंद्र गुहा के हवाले से लिखा है, "वह (मनमोहन सिंह) हमारे इतिहास में एक दुखद व्यक्तित्व बन गए हैं..." यहां सबसे उल्लेखनीय तथ्य यह है कि मनमोहन सिंह की विशिष्टतम विशेषताएं - कभी भ्रष्ट नहीं होने वाला, और आर्थिक मामलों का ज्ञान - ही उनकी छवि के बिगड़ने में सबसे महत्वपूर्ण रही हैं...
पत्र ने लिखा कि उनके पद पर रहते हुए आर्थिक सुधार थम गए, आर्थिक वृद्धि नीचे गिरने लगी, और रुपया लुढ़कता चला गया... लेकिन उनके लिए सबसे खराब यह आरोप रहा है कि उन्हीं के कैबिनेट साथी अपनी जेबें भरते रहे, और वह (मनमोहन) चुप्पी साधे बैठे रहे...
इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री के पहले कार्यकाल के दौरान उनके मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू के हवाले से 'द वॉशिंगटन पोस्ट' ने लिखा है कि इस दौरान उन्होंने (मनमोहन ने) अपनी सम्मानित छवि को मज़ाक का विषय बना लिया और यह उनके जीवन का सबसे खराब दौर रहा...
इस बीच, केंद्र सरकार ने 'द वाशिंगटन पोस्ट' में प्रधानमंत्री के बारे में छपे इस आलेख पर नाराज़गी जताई है... केंद्रीय मंत्री अंबिका सोनी ने कहा है कि इसके खिलाफ विरोध दर्ज कराया जाएगा और अखबार से कहा जाएगा कि वह अपने आलेख के लिए माफी मांगे। उधर, एक अन्य ख़बर के मुताबिक 'द वाशिंगटन पोस्ट' ने भी एकतरफा आलेख प्रकाशित करने के लिए माफी मांग ली है...
साइमन डेन्येर (Simon Denyer) द्वारा लिखे गए और बुधवार के अंक में प्रकाशित इस आलेख में समाचारपत्र ने कहा है कि भले ही भारत को ताकतवर, समृद्ध और आधुनिक बनाने में प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह का योगदान महत्वपूर्ण माना जाता रहा है, लेकिन आलोचकों के अनुसार, सदा शांत रहते हुए मीठा बोलने वाले 79-वर्षीय प्रधानमंत्री की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बनी सम्माननीय, शिष्ट, बुद्धिजीवी और टेक्नोक्रैट की छवि अब धीरे-धीरे पूरी तरह बदल गई है... अब उनकी छवि ऐसे 'अप्रभावी' और 'बात से पलटने वाले' नौकरशाह की हो गई है, जो बेहद भ्रष्ट सरकार का मुखिया है...
समाचारपत्र लिखता है कि भारत के आर्थिक सुधारों के आर्किटेक्ट कहे जाने वाले मनमोहन अमेरिका से भारतीय संबंधों में सुधार के भी महत्वपूर्ण कारक रहे हैं, और राष्ट्रपति बराक ओबामा का स्टाफ मनमोहन से उनकी मित्रता के बारे में गाता नहीं थकता है, लेकिन भारत में कोल ब्लॉक आवंटन में हुए कथित घोटाले के चलते पिछले दो सप्ताह से मनमोहन के इस्तीफे की मांग को लेकर संसद का कामकाज ठप है...
समाचारपत्र के अनुसार मनमोहन की छवि में इस नाटकीय गिरावट के लिए प्रधानमंत्री के रूप में उनका दूसरा कार्यकाल जिम्मेदार है, जिसके दौरान न सिर्फ देश में बड़े-बड़े घोटाले सामने आए, बल्कि देश की आर्थिक स्थिति में ठीक नहीं रही... समाचारपत्र ने राजनैतिक इतिहासकार रामचंद्र गुहा के हवाले से लिखा है, "वह (मनमोहन सिंह) हमारे इतिहास में एक दुखद व्यक्तित्व बन गए हैं..." यहां सबसे उल्लेखनीय तथ्य यह है कि मनमोहन सिंह की विशिष्टतम विशेषताएं - कभी भ्रष्ट नहीं होने वाला, और आर्थिक मामलों का ज्ञान - ही उनकी छवि के बिगड़ने में सबसे महत्वपूर्ण रही हैं...
______________________________________________________________________
यह भी अवश्य पढ़ें...
समाचार : पीएम की क्षमता पर 'टाइम' ने उठाए सवाल, बताया 'अंडरअचीवर'
समाचार वीडियो में : पीएम की क्षमता पर 'टाइम' ने उठाए सवाल, बताया 'अंडरअचीवर'
विशेष चर्चा : 'टाइम' के पीएम पर सवाल पर उठा बवाल...
समाचार : ब्रिटिश अख़बार ने मनमोहन को 'पालतू' कहा, फिर 'कठपुतली', फिर 'अंडरअचीवर'
समाचार वीडियो में : अब 'द इन्डिपेन्डेन्ट' ने मनमोहन को 'पालतू' कहा, फिर 'कठपुतली', फिर 'अंडरअचीवर'
विशेष चर्चा : पालतू, कठपुतली या अंडरअचीवर पीएम?
______________________________________________________________________
पत्र ने गुहा के हवाले से यह भी लिखा है कि मनमोहन सिंह अपने भीतर के डर (timidity), गद्दी सुरक्षित होने के एहसास से उपजे नाकारापन (complacency), और अपने सामने हो रही गलतियों और गुनाहों पर पर्दा डालने की कोशिशों (intellectual dishonesty) की वजह से खुद के लिए खतरनाक स्तर तक लाचार हो गए हैं...यह भी अवश्य पढ़ें...
समाचार : पीएम की क्षमता पर 'टाइम' ने उठाए सवाल, बताया 'अंडरअचीवर'
समाचार वीडियो में : पीएम की क्षमता पर 'टाइम' ने उठाए सवाल, बताया 'अंडरअचीवर'
विशेष चर्चा : 'टाइम' के पीएम पर सवाल पर उठा बवाल...
समाचार : ब्रिटिश अख़बार ने मनमोहन को 'पालतू' कहा, फिर 'कठपुतली', फिर 'अंडरअचीवर'
समाचार वीडियो में : अब 'द इन्डिपेन्डेन्ट' ने मनमोहन को 'पालतू' कहा, फिर 'कठपुतली', फिर 'अंडरअचीवर'
विशेष चर्चा : पालतू, कठपुतली या अंडरअचीवर पीएम?
______________________________________________________________________
पत्र ने लिखा कि उनके पद पर रहते हुए आर्थिक सुधार थम गए, आर्थिक वृद्धि नीचे गिरने लगी, और रुपया लुढ़कता चला गया... लेकिन उनके लिए सबसे खराब यह आरोप रहा है कि उन्हीं के कैबिनेट साथी अपनी जेबें भरते रहे, और वह (मनमोहन) चुप्पी साधे बैठे रहे...
इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री के पहले कार्यकाल के दौरान उनके मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू के हवाले से 'द वॉशिंगटन पोस्ट' ने लिखा है कि इस दौरान उन्होंने (मनमोहन ने) अपनी सम्मानित छवि को मज़ाक का विषय बना लिया और यह उनके जीवन का सबसे खराब दौर रहा...
इस बीच, केंद्र सरकार ने 'द वाशिंगटन पोस्ट' में प्रधानमंत्री के बारे में छपे इस आलेख पर नाराज़गी जताई है... केंद्रीय मंत्री अंबिका सोनी ने कहा है कि इसके खिलाफ विरोध दर्ज कराया जाएगा और अखबार से कहा जाएगा कि वह अपने आलेख के लिए माफी मांगे। उधर, एक अन्य ख़बर के मुताबिक 'द वाशिंगटन पोस्ट' ने भी एकतरफा आलेख प्रकाशित करने के लिए माफी मांग ली है...
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
मनमोहन सिंह की आलोचना, मनमोहन नाकामयाब, Manmohan Singh Tragic Figure, Washington Post On Manmohan Singh, The Washington Post, Washington Post Critisises Manmohan Singh, Prime Minister, PM Manmohan Singh, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, द वॉशिंगटन पोस्ट, द वाशिंगटन पोस्ट