अब राज्य के विश्वविद्यालय भी विदेशी संस्थानों से तालमेल के लिए दे सकते हैं अर्जी

अब राज्य के विश्वविद्यालय भी विदेशी संस्थानों से तालमेल के लिए दे सकते हैं अर्जी

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी (फाइल फोटो)

खास बातें

  • राज्य की यूनिवर्सिटी की अर्जी पर दो महीने में फैसला लेगा यूजीसी
  • सर्टिफिकेट में विदेशी संस्थान का भी हो सकता है नाम
  • फर्जीवाड़ा या झूठा इश्तिहार देने पर होगी कार्रवाई
नई दिल्ली:

भारत की स्टेट यूनिवर्सिटीज विदेशी संस्थानों के साथ समन्वय कर अलग-अलग विषयों में संयुक्त कोर्सेज़ चला सकें इसके लिए केंद्र सरकार ने यूजीसी के नियमों में थोड़ा बदलाव किया है। अब राज्य के विश्वविद्यालय यूजीसी में किसी भी विदेशी संस्थान के साथ समन्वय का एमओयू साइन करने की अर्जी दे सकते हैं। यूपीए-2 सरकार के वक्त बने नियम के हिसाब से यूजीसी में इस तरह के एमोयू के लिए अर्जी लगाने का अधिकार सिर्फ विदेशी संस्थानों के पास था, लेकिन अब राज्य के विश्वविद्यालय भी अर्जी लगा सकते हैं।
 
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा, "हमें ये ज्ञात हुआ है कि 2012 के इस रेगुलेशन के बावजूद यूजीसी के पास किसी भारतीय संस्थान के साथ समन्वय की अर्जी नहीं प्राप्त हुई है। हम ये समझते हैं कि आज इस बात की दरकार है कि भारत के संस्थान दुनिया के सर्वोच्च संस्थानों के साथ एकैडेमिक कॉलोब्रेशन करें। इसलिए यूजीसी ने यह निर्णय लिया है कि हम एक संयुक्त कॉलोब्रेशन को इजाज़त देंगे।"

इस समन्वय के लिए किसी भी राज्य की यूनिवर्सिटी यूजीसी में अर्जी देगी और यूजीसी को दो महीने के भीतर उस अर्जी पर स्पष्ट फैसला करना होगा। मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने बताया कि अगर किसी यूनिवर्सिटी का समन्वय किसी विदेशी संस्थान से हो जाता है तो फिर छात्र को ग्रेजुएट कोर्स के लिए 2 समेस्टर और पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स के लिये एक समेस्टर की पढ़ाई उस विदेशी संस्थान में करने का मौका मिलेगा।

अगर कोई विश्वविद्यालय फर्जीवाड़ा करता है और झूठा इश्तिहार देकर छात्रों को विदेशी संस्थान का लालच देता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश यूजीसी खुद राज्य सरकार से करेगा। इस तरह के समन्वय में डिग्री तो भारतीय विश्वविद्यालय देगा, लेकिन सर्टिफिकेट में विदेशी संस्थान का नाम भी हो सकता है।


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