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This Article is From Aug 03, 2015

संसद में निंदा प्रस्‍ताव से किसी भी अधिकार का उल्‍लंघन नहीं होता : SC

संसद में निंदा प्रस्‍ताव से किसी भी अधिकार का उल्‍लंघन नहीं होता : SC
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
नई दिल्‍ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जस्टिस मार्कंडेय काटजू के खिलाफ संसद ने जो निंदा प्रस्ताव पास किया, प्रथम दृष्‍टया वो किसी भी तरह अभिव्यक्ति की आजादी का हनन नहीं लगता और न ही मानहानि या प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने का मामला।

सुप्रीम कोर्ट ने यह बात जस्टिस मार्कंडे काटजू की उस याचिका पर सुनवाई करते हुए कही, जिसमें संसद के दोनों सदनों ने उनके खिलाफ निंदा प्रस्ताव पास किया था। जस्टिस कटजू ने एक बयान में महात्मा गांधी को ब्रिटिश और सुभाष चंद्र बोस को जापानी एजेंट कहा था।

जस्टिस काटजू की याचिका पर सुनवाई कर रहे न्‍यायालय ने कहा, अगर कोई व्यक्ति अपने विचार, ब्लॉग किसी अन्य तरीके से सावर्जनिक करता है तो उसे दूसरों की असहमति के लिए भी तैयार रहना चाहिए। अगर कोई किसी के विचार से सहमत नहीं है तो उसकी निंदा भी कर सकता है। ऐसी निंदा करने का संसद को भी अधिकार है। निंदा प्रस्ताव से किसी भी तरह अधिकारों का उल्लंघन नहीं हो सकता, क्योंकि इससे न तो बोलने का अधिकार प्रभावित होता है और न ही ये दोबारा वही बात कहने से रोकता है। कोर्ट ने आगे कहा, यदि कोई किसी के बारे में कुछ भी कहता है तो उसे निंदा भी सहनी चाहिए। जिस प्रस्ताव से कोई कानून न बनता हो, उससे अधिकारों का हनन नहीं होता।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्‍ठ वकील फली एस नरीमन को एमिक्‍स क्यूरी भी बनाया। काटजू का कहना है कि प्रस्ताव पास करते वक्त सदनों ने उनका पक्ष नहीं सुना था, जो उनके मौलिक अधिकारों का हनन है और इससे उनकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची है।

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