परिचय : गणितज्ञ आनंद कुमार बिहार की राजधानी पटना में संचालित 'सुपर 30' के संस्थापक हैं, जो वर्ष 1997 से प्रत्येक वर्ष गरीब तबके के 30 बच्चों को दुनिया की सबसे कठिन प्रतियोगी परीक्षाओं में से एक - इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) की प्रवेश परीक्षा - के लिए कोचिंग देता है...
बिहार में नकल की हालिया तस्वीरें देखकर कहीं न कहीं ऐसा लगने लगता है, जो पूरी तरह जायज़ भी नहीं है, कि परीक्षाओं में सफल होने के लिए हर व्यक्ति नकल का ही सहारा लेता है। मैं आपको ऐसे सैकड़ों उदाहरण दे सकता हूं, जहां किशोरों ने तमाम दिक्कतों और कमियों का सामना करते हुए स्कूलों-कॉलेजों में सुविधाओं का अभाव झेलने के बावजूद बिना किसी गलत रास्ते पर चले कामयाबी हासिल की है। ऐसे कई छात्र मेरे कोचिंग इंस्टीट्यूट में आकर दाखिला लेते हैं, जो दृढ़ इच्छाशक्ति तथा कड़ी मेहनत का ज्वलंत उदाहरण हैं।
बिहार में बहुत पुरानी परंपरा रही है कि एक ही विशेष वर्ग है, जो पढ़ना चाहता है, और अपने बच्चों को बेहतरीन सुविधाएं देता है। गरीबों की हमेशा अनदेखी की गई है। इंग्लिश-मीडियम के बहुत-से प्राइवेट स्कूल खुल गए हैं। इन स्कूलों में कौन पढ़ने जा रहा है? सिर्फ वही, जो पैसा दे सकते हैं।
लेकिन जो बच्चे सरकारी स्कूलों में जा रहे हैं, उन्हें शिक्षक नहीं मिलते, क्लासरूम बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित हैं। मुझे लगता है, सरकार और समाज, दोनों को ही इसका हल ढूंढना होगा। प्रत्येक शिक्षक को ज़्यादा से ज़्यादा से सीखने की कोशिश करनी होगी, अपने स्कूल में रोज़ जाना होगा, और वास्तव में वहां पढ़ाना होगा। भले ही उनके लिए हालात आदर्श नहीं हैं, लेकिन उन्हें अपना काम करना चाहिए, और उन्हें समझना चाहिए कि उनका काम अन्य सामान्य कामों की तुलना में ज़्यादा महत्वपूर्ण है।
छात्रों और अभिभावकों को भी खुद से कहना होगा, "हम परीक्षा में कामयाब होने के लिए गलत तरीकों का सहारा नहीं लेंगे... हम कोशिश करेंगे कि सरकार शिक्षा में असमानता खत्म करे... हम शांतिपूर्वक विरोध करेंगे, लेकिन नकल नहीं करेंगे..." इसके अलावा नकल के साथ शर्मिंदगी का एक एहसास होना चाहिए, जो सिर्फ तभी न हो, जब कोई नकल करते हुए पकड़ा जाए। इसे इस तरह नहीं देखा जाना चाहिए - 'ये तो हर साल होता है...'
सरकार को शिक्षा की स्थिति पर जुबान हिलाने भर से ज़्यादा कुछ करना चाहिए। शिक्षकों की भर्ती करना और शिक्षक-छात्र अनुपात को बेहतर स्तर पर लाना तो ठीक है, लेकिन गुणवत्ता सुधारना भी ज़रूरी है।
हमें शिक्षकों की भर्ती को लेकर गंभीर होना होगा। यही वे लोग हैं, जिनके हाथों से हमारे देश का भविष्य तैयार होता है। मेरा मानना है कि शिक्षकों का वेतन अच्छा होना चाहिए। शिक्षकों को स्थायी नियुक्तियां दी जानी चाहिए, तथा उन्हें कॉन्ट्रेक्ट पर नहीं रखा जाना चाहिए। इन कदमों से सुनिश्चित किया जा सकेगा कि उनके मन में अपनी नौकरियों के प्रति लगाव बना रहे।
मैं यह भी चाहता हूं, पहले से काम कर रहे शिक्षकों को भी निकाला न जाए - इससे नैतिक बल कमज़ोर होता है, और असुरक्षा की भावना घर कर लेती है। लेकिन एक हल हो सकता है - सभी शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया जाए, उनके प्रमोशन तथा वेतनमान वृद्धि को उनके परफॉरमेंस से जोड़ दिया जाए। तब उन्हें क्लास में परफॉर्म करके दिखाना ही होगा, ताकि वे अपनी काबिलियत सिद्ध कर सकें।
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