बेंगुलुरु:
कर्नाटक में बेंगलुरु से 71 किमी दूर टुमकुर जिले के एक प्राथमिक अस्पताल प्रशासन की बड़ी लापरवाही का मामला सामने आया है. लाचार पिता को अपनी 20 वर्षीय बेटी के शव को मोपेड पर ले जाना पड़ा क्योंकि अस्पताल की ओर से एंबुलेंस की व्यवस्था नहीं की गई. प्राप्त जानकारी के मुताबिक, रत्नम्मा नामा को प्राथमिक सेवा केंद्र में रविवार सुबह तेज बुखार और सांस लेने में तकलीफ होने के कारण भर्ती कराया गया था. उसके मजदूर पिता थिमप्पा ने आरोप लगाया किया कि डॉक्टर के इंतजार में बेटी ने दम तोड़ दिया.
रविवार का दिन होने के कारण थिमप्पा को बेटी को 20 किमी. दूर पास के बड़े अस्पताल में जाने को कहा गया. एंबुलेस की कोई व्यवस्था भी नहीं थी और उपचार में देरी हो जाने कारण रत्नम्मा की मौत हो गई. बाद में वे बाइक से मृत बेटी को वापस गांव लाने को मजबूर हुए.
थिमप्पा का कहना है कि उसे अस्पताल से बहुत जल्दी लौटना पड़ा क्योंकि उसे बताया गया था कि अगर मौत की खबर पुलिस को हो जाएगी तो उन्हें पोस्टमार्टम के लिए रुकना होगा. लड़की की मां गोवरामा टी ने आरोप लगाते हुए कहा, "वहां एंबुलेंस की कोई व्यवस्था नहीं थी और हर कोई हमसे वहां से लाश हटाने के लिए कह रहा था. हमें समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें. हमारे पास पैसा भी नहीं था इसलिए हम उसे मोपेड से घर ले आए."
वहीं, कर्नाटक सरकार दावा कार रही है कि एंबुलेंस की पर्याप्त व्यवस्था किए जाने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं. हालांकि सरकार ने स्वीकार किया है कि ग्रामीण इलाकों में एंबुलेंस पर्याप्त संख्या में नहीं हैं. सरकार ने यह भी स्वीकार किया कि डॉक्टर मरीजों का इलाज करने से इनकार कर रहे हैं.
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "मैं इस मामले को दिखवाऊंगा...यदि डॉक्टरों की ओर से कोई लापरवाही की गई है तो हम कार्रवाई करेंगे."
बता दें कि पिछले साल अगस्त माह में ओडिशा के कालाहांडी में दाना मांझी का मामला सामने आया था जो लगातार छह घंटे तक अपनी पत्नी का शव कंधे पर लादे 10 किलोमीटर तक पैदल चलने के लिए मजबूर हुआ था.
पिछले महीने, ओडिशा के अंगुल जिले में गति धीबर अपनी पांच साल की बेटी का शव लेकर अस्पताल से ले जाने को मजबूर हुए थे और एक किलोमीटर तक उन्हें ऐसी कोई मदद नहीं मिली. बेटी का शव कंधे पर लादे लगातार एक घंटे तक पैदल चलते हुए धीबर को रास्ते में कई लोगों ने देखा, अपने मोबाइल फोन पर रिकॉर्ड किया था.
रविवार का दिन होने के कारण थिमप्पा को बेटी को 20 किमी. दूर पास के बड़े अस्पताल में जाने को कहा गया. एंबुलेस की कोई व्यवस्था भी नहीं थी और उपचार में देरी हो जाने कारण रत्नम्मा की मौत हो गई. बाद में वे बाइक से मृत बेटी को वापस गांव लाने को मजबूर हुए.
थिमप्पा का कहना है कि उसे अस्पताल से बहुत जल्दी लौटना पड़ा क्योंकि उसे बताया गया था कि अगर मौत की खबर पुलिस को हो जाएगी तो उन्हें पोस्टमार्टम के लिए रुकना होगा. लड़की की मां गोवरामा टी ने आरोप लगाते हुए कहा, "वहां एंबुलेंस की कोई व्यवस्था नहीं थी और हर कोई हमसे वहां से लाश हटाने के लिए कह रहा था. हमें समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें. हमारे पास पैसा भी नहीं था इसलिए हम उसे मोपेड से घर ले आए."
वहीं, कर्नाटक सरकार दावा कार रही है कि एंबुलेंस की पर्याप्त व्यवस्था किए जाने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं. हालांकि सरकार ने स्वीकार किया है कि ग्रामीण इलाकों में एंबुलेंस पर्याप्त संख्या में नहीं हैं. सरकार ने यह भी स्वीकार किया कि डॉक्टर मरीजों का इलाज करने से इनकार कर रहे हैं.
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "मैं इस मामले को दिखवाऊंगा...यदि डॉक्टरों की ओर से कोई लापरवाही की गई है तो हम कार्रवाई करेंगे."
बता दें कि पिछले साल अगस्त माह में ओडिशा के कालाहांडी में दाना मांझी का मामला सामने आया था जो लगातार छह घंटे तक अपनी पत्नी का शव कंधे पर लादे 10 किलोमीटर तक पैदल चलने के लिए मजबूर हुआ था.
पिछले महीने, ओडिशा के अंगुल जिले में गति धीबर अपनी पांच साल की बेटी का शव लेकर अस्पताल से ले जाने को मजबूर हुए थे और एक किलोमीटर तक उन्हें ऐसी कोई मदद नहीं मिली. बेटी का शव कंधे पर लादे लगातार एक घंटे तक पैदल चलते हुए धीबर को रास्ते में कई लोगों ने देखा, अपने मोबाइल फोन पर रिकॉर्ड किया था.
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मोपेड पर बेटी का शव, Father Carried Dead Daughter On Moped, दाना माझी, Dana Majhi, कर्नाटक समाचार, Karnatka News