मौत की सजा के केसों को लेकर केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है. केंद्र ने अपनी अर्जी में कहा है कि मौत की सजा के मामलों में पीड़ितों को केंद्र में रखकर गाइडलाइन बनाई जानी चाहिए. केंद्र ने कहा है कि फिलहाल सुप्रीम कोर्ट की जो गाइडलाइन है वह फिलहाल ‘दोषी केंद्रित' है. इसके चलते दोषी कानून से खेलते हैं और मौत की सजा से बचते रहते हैं. केंद्र सरकार ने शत्रुघ्न चौहान मामले में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन पर ये अर्जी दी है.
केंद्र सरकार ने सन 2014 में शत्रुघ्न चौहान मामले में दी गई गाइडलाइन में संशोधन की मांग की है. केंद्र ने कहा है कि देश कुछ अपराधों का सामना कर रहा है जो मौत की सजा के साथ दंडनीय हैं. इस तरह के अपराधों में आतंकवाद, बलात्कार, हत्या आदि से संबंधित अपराध शामिल हैं. बलात्कार का अपराध न केवल देश के दंड संहिता में परिभाषित अपराध है, बल्कि किसी भी सभ्य समाज में सबसे भयानक और अनुचित अपराध है. बलात्कार का अपराध केवल एक व्यक्ति और समाज के खिलाफ अपराध नहीं है, बल्कि मानवता के खिलाफ अपराध है. बलात्कार के ऐसे जघन्य और भयावह अपराधों के विभिन्न उदाहरण हैं, जिसमें पीड़िता की हत्या के समान रूप से भयानक और जघन्य अपराध शामिल हैं जो राष्ट्र की सामूहिक अंतरात्मा को हिला देता है.
केंद्र ने कहा है कि शत्रुघ्न सिंह चौहान मामले में माननीय न्यायालय ने दिशानिर्देश दिए हैं और उक्त निर्देश इस माननीय न्यायालय द्वारा अनिवार्य रूप से दोषी के अधिकारों को ध्यान में रखते हुए जारी किए हैं. दोषियों के अधिकारों का ध्यान रखते हुए, पीड़ितों, उनके परिवारों और बड़े सार्वजनिक हित में दिशानिर्देशों का पालन करने के लिए यह अधिक महत्वपूर्ण और आवश्यक है कि वे दोषी पाए जाएं. इनसे ऐसे भयानक, क्रूर, घृणित, भयावह, भीषण और भयंकर अपराधों के दोषियों को कानून से साथ खेलने की इजाजत मिल गई है और सजा लंबी खिंच गई है.
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केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि अदालत पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद मौत के सजायाफ्ता के लिए क्यूरेटिव याचिका दाखिल करने के लिए समय निर्धारित करे. ये तय किया जाए कि अदालत द्वारा डेथ वारंट जारी करने के बाद सात दिनों के भीतर ही याचिका दायर की जा सकती है.
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केंद्र ने कहा है कि देश के सभी सक्षम न्यायालयों, राज्य सरकारों, जेल प्राधिकारियों को उनकी दया याचिका को खारिज करने के सात दिन के भीतर डेथ वारंट जारी करने और इसके सात दिनों के भीतर मौत की सजा देने का आदेश दिया जाए, भले ही उसके साथी दोषियों की पुनर्विचार/ क्यूरेटिव याचिका / दया याचिका लंबित हो.
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