
प्रतीकात्मक फोटो.
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने रेलवे को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि रेल पटरियों का इस्तेमाल खुले में शौच एवं अपशिष्ट जल का निस्तारण करने के लिए नहीं किया जाए. एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि खानपान सेवा एवं स्वच्छता प्रबंधन के लिए रखी गई निजी एजेंसियों को निर्धारित स्थानों के अलावा अन्य जगहों पर कचरे को नहीं फेंकना चाहिए. पीठ ने कहा, ‘‘ यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि रेल पटरियों का इस्तेमाल आसपास में रहने वाले लोगों द्वारा खुले में शौच एवं अपशिष्ट जल का निस्तारण करने के लिए नहीं किया जाए.''
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पीठ ने 18 नवंबर के अपने आदेश में कहा, ‘‘स्वच्छता, जनस्वास्थ्य एवं स्वच्छ पर्यावरण के हित में यह जरूरी है कि रेलवे बोर्ड एक ऐसी आदर्श डिजाइन योजना/एसओपी का विकास सुनिश्चित करे ताकि स्टेशन अपशिष्ट प्रबंधन के सभी पहलुओं को समेटते हुए उपयुक्त पर्यावरण प्रबंधन योजना विकसित कर पाएं.''
एनजीटी ने कहा कि खतरनाक अपशिष्ट, तेल, कबाड़ आदि पैदा करने वाले इंजन रखरखाव क्षेत्र में अपशिष्ट प्रबंधन नियमावली के तहत राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा अधिकृत अपशिष्ट प्रसंस्करण या शोधन इकाई होनी चाहिए. अधिकरण ने कहा कि देश में 720 बड़े स्टेशनों में से केवल 11 ऐसे हैं, जिन्होंने जल कानून एवं वायु कानून के तहत ‘मंजूरी' के लिए आवेदन दिया है तथा केवल तीन ने ही पर्यावरण सुरक्षा कानून के अंतर्गत वैधानिक नियमावली के तहत ‘मंजूरी' के लिए आवेदन दिया है.
एनजीटी ने पहले रेलवे को कम से कम 36 स्टेशनों की पहचान कर उसे ‘इको स्मार्ट स्टेशन (पर्यावरणानुकूल)' के रूप में विकसित करने तथा प्लेटफॉर्म एवं रेल पटरियों पर स्वच्छता की खातिर कार्ययोजना सौंपने का निर्देश दिया था. अधिकरण ने कहा था कि ठोस अपशिष्ट निस्तारण, ठोस एवं प्लास्टिक अपशिष्ट फेंके जाने एवं मलत्याग आदि के संबंध में व्यक्तिगत जवाबदेही तय करने के प्रावधान वाली कार्यप्रणाली लागू करने एवं उनकी निगरानी करने की जरूरत है.
हरित अधिकरण वकील सलोनी सिंह और आरूष पठानिया की याचिका पर सुनवाई कर रहा था. याचिकाकर्ताओं ने रेलवे संपत्तियों, खासकर रेल पटरियों पर प्रदूषण रोकने का अनुरोध किया है.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)