शुमेला चाहती हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को इस मामले की जांच करानी चाहिए...
नई दिल्ली:
उत्तर प्रदेश में नेशनल लेवल की नेटबॉल प्लेयर शुमेला जावेद को उसके पति ने फोन पर तीन बार 'तलाक' कहकर डायवोर्स दे दिया. शुमेला का कसूर सिर्फ इतना था कि उसने एक बच्ची को जन्म दिया था. न्यूज एजेंसी एएनआई की रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है. लखनऊ से 380 किलोमीटर दूर अमरोहा की शुमेला फिलहाल अपने माता-पिता के घर रह रही हैं और चाहती हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को इस मामले की जांच करानी चाहिए.
आगरा से एक और मामले में, एक महिला को दो लड़कियों को जन्म देने पर तलाक दे दिया गया.
उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर की 22 वर्षीय आफरीन इसी साल जनवरी की एक सर्द शाम में सोशल मीडिया पर ख्यालों की दुनिया में खोई हुई थी. फेसबुक पर प्यार, जिंदगी, कविताओं आदि से जुड़ी पोस्ट देखने के दौरान अचानक ही एक पोस्ट ने उसे हिलाकर रख दिया. यह पोस्ट उसके पति की ओर से था, जिसने लिखा- ‘तलाक, तलाक, तलाक’. एक ही दिन बाद, उसके मोबाइल में संदेश आया, जिसमें लिखा था- ‘तलाक, तलाक, तलाक.’ उसके पति ने अपना इरादा स्पष्ट तौर पर बता दिया था.
मुस्लिम पुरुषों द्वारा शादी की समाप्ति के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले माध्यमों ने ट्रिपल तलाक के अभ्यास पर बहस खड़ी कर दी थी. यह मुद्दा पिछले साल फरवरी में उस समय सामने आया, जब तीन तलाक की एक पीड़िता शायरा बानो ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर करके तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला की प्रथा पर रोक लगाने का अनुरोध किया. निकाह हलाला के तहत यदि तलाकशुदा मुस्लिम महिला अपने पहले पति के पास लौटना चाहती है, तो उसे दोबारा शादी करनी होती है, उसे मुकम्मल करना होता है और फिर इसे तोड़कर पहले पति के पास जाना होता है.
देश भर की हजारों मुस्लिम महिलाओं ने तब से दबाव समूह बना लिए हैं और इस प्रथा को खत्म करने की मांग लेकर हस्ताक्षर अभियानों का नेतृत्व कर चुकी हैं.
ऑल इंडिया मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड का दावा है कि शरीयत तीन तलाक की प्रथा को वैध बताती है. इसके तहत एक मुस्लिम पति अपनी पत्नी को महज तीन बार ‘तलाक’ शब्द बोलकर तलाक दे सकता है. तलाक दो तरीकों से हो सकता है. ‘तलाक-उल-सुन्नत’ के तहत ‘इद्दत’ नामक तीन माह की अवधि होती है. यह अवधि तलाक कहे जाने और कानूनी अलगाव के बीच की अवधि है. ‘तलाक-ए-बिदात’ एक पुरूष को एक ही बार में ऐसा कर देने की अनुमति देता है.
कई अन्य लोगों की तरह आफरीन ने भी मुस्लिम पसर्नल लॉ के विवादित प्रावधानों का फायदा उठाने वाले अपने पति के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराने का साहस जुटाया. तीन तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला पर बहस बढ़ने के दौरान, देशभर में ये महिलाएं सिर्फ लॉ बोर्ड से ही नहीं बल्कि अपने भीतर भी एक लड़ाई लड़ रही हैं. अपने भीतर की लड़ाई तलाक से जुड़े उस दंश से उबरने की है, जिसने उन्हें अंदर तक तोड़ रखा है.
एक मामला 24 वर्षीय रूबीना का है, जिसने अपने परिवार की आर्थिक मदद के लिए वर्ष 2015 में अपनी उम्र से दोगुनी उम्र के एक अमीर व्यक्ति से शादी कर ली, लेकिन शादी के कुछ ही समय बाद, उसने रूबीना को तलाक देने की धमकी देना शुरू कर दिया.
यह विवाद 1980 के दशक के शाह बानो मामले की भी याद दिलाता है. मुस्लिम महिलाओं के सामाजिक न्याय और समानता के संघर्ष में यह एक अहम कदम था, लेकिन इसका अंत निराशाजनक रहा. वर्ष 1985 में, उच्चतम न्यायालय ने बानो के पक्ष में फैसला सुनाया था, जिसने तलाक देने वाले अपने पति से गुजारे-भत्ते की मांग की थी, लेकिन रूढ़िवादी मुस्लिम समूहों की नाराजगी के बाद तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने एक अधिनियम के जरिए आदेश को कमजोर कर दिया. मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) कानून, 1986 ने महिलाओं को तलाक के बाद सिर्फ इद्दत (लगभग तीन माह) की अवधि में गुजारा भत्ता पाने का अधिकार दिया है. इसके बाद उसके रिश्तेदारों या वक्फ बोर्ड को उसकी देखभाल करनी होती है.
(इनपुट भाष्ाा से भी)
Amroha: Shyumla Javed,national netball champion says her husband gave #TripleTalaq after she gave birth to a girl pic.twitter.com/odiIHmZvQs
— ANI UP (@ANINewsUP) April 23, 2017
आगरा से एक और मामले में, एक महिला को दो लड़कियों को जन्म देने पर तलाक दे दिया गया.
उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर की 22 वर्षीय आफरीन इसी साल जनवरी की एक सर्द शाम में सोशल मीडिया पर ख्यालों की दुनिया में खोई हुई थी. फेसबुक पर प्यार, जिंदगी, कविताओं आदि से जुड़ी पोस्ट देखने के दौरान अचानक ही एक पोस्ट ने उसे हिलाकर रख दिया. यह पोस्ट उसके पति की ओर से था, जिसने लिखा- ‘तलाक, तलाक, तलाक’. एक ही दिन बाद, उसके मोबाइल में संदेश आया, जिसमें लिखा था- ‘तलाक, तलाक, तलाक.’ उसके पति ने अपना इरादा स्पष्ट तौर पर बता दिया था.
मुस्लिम पुरुषों द्वारा शादी की समाप्ति के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले माध्यमों ने ट्रिपल तलाक के अभ्यास पर बहस खड़ी कर दी थी. यह मुद्दा पिछले साल फरवरी में उस समय सामने आया, जब तीन तलाक की एक पीड़िता शायरा बानो ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर करके तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला की प्रथा पर रोक लगाने का अनुरोध किया. निकाह हलाला के तहत यदि तलाकशुदा मुस्लिम महिला अपने पहले पति के पास लौटना चाहती है, तो उसे दोबारा शादी करनी होती है, उसे मुकम्मल करना होता है और फिर इसे तोड़कर पहले पति के पास जाना होता है.
देश भर की हजारों मुस्लिम महिलाओं ने तब से दबाव समूह बना लिए हैं और इस प्रथा को खत्म करने की मांग लेकर हस्ताक्षर अभियानों का नेतृत्व कर चुकी हैं.
ऑल इंडिया मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड का दावा है कि शरीयत तीन तलाक की प्रथा को वैध बताती है. इसके तहत एक मुस्लिम पति अपनी पत्नी को महज तीन बार ‘तलाक’ शब्द बोलकर तलाक दे सकता है. तलाक दो तरीकों से हो सकता है. ‘तलाक-उल-सुन्नत’ के तहत ‘इद्दत’ नामक तीन माह की अवधि होती है. यह अवधि तलाक कहे जाने और कानूनी अलगाव के बीच की अवधि है. ‘तलाक-ए-बिदात’ एक पुरूष को एक ही बार में ऐसा कर देने की अनुमति देता है.
कई अन्य लोगों की तरह आफरीन ने भी मुस्लिम पसर्नल लॉ के विवादित प्रावधानों का फायदा उठाने वाले अपने पति के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराने का साहस जुटाया. तीन तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला पर बहस बढ़ने के दौरान, देशभर में ये महिलाएं सिर्फ लॉ बोर्ड से ही नहीं बल्कि अपने भीतर भी एक लड़ाई लड़ रही हैं. अपने भीतर की लड़ाई तलाक से जुड़े उस दंश से उबरने की है, जिसने उन्हें अंदर तक तोड़ रखा है.
एक मामला 24 वर्षीय रूबीना का है, जिसने अपने परिवार की आर्थिक मदद के लिए वर्ष 2015 में अपनी उम्र से दोगुनी उम्र के एक अमीर व्यक्ति से शादी कर ली, लेकिन शादी के कुछ ही समय बाद, उसने रूबीना को तलाक देने की धमकी देना शुरू कर दिया.
यह विवाद 1980 के दशक के शाह बानो मामले की भी याद दिलाता है. मुस्लिम महिलाओं के सामाजिक न्याय और समानता के संघर्ष में यह एक अहम कदम था, लेकिन इसका अंत निराशाजनक रहा. वर्ष 1985 में, उच्चतम न्यायालय ने बानो के पक्ष में फैसला सुनाया था, जिसने तलाक देने वाले अपने पति से गुजारे-भत्ते की मांग की थी, लेकिन रूढ़िवादी मुस्लिम समूहों की नाराजगी के बाद तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने एक अधिनियम के जरिए आदेश को कमजोर कर दिया. मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) कानून, 1986 ने महिलाओं को तलाक के बाद सिर्फ इद्दत (लगभग तीन माह) की अवधि में गुजारा भत्ता पाने का अधिकार दिया है. इसके बाद उसके रिश्तेदारों या वक्फ बोर्ड को उसकी देखभाल करनी होती है.
(इनपुट भाष्ाा से भी)
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