कोरोना के चलते अब स्टेट लेवल पहलवान को करनी पड़ रही खेती...

कोरोना (Coronavirus) के कारण महाराष्ट्र में पिछले दो सालों से कुश्ती की प्रतियोगिता बंद है जिसका असर पहलवानों (Coronavirus affect on Wrestling) पर पड़ा है. पहले की तरह ना ही वो प्रैक्टिस कर पा रहे हैं, और स्टेट और नेशनल लेवल पर खेल चुके खिलाड़ी अब 300 रुपये के दिहाड़ी पर खेती करने को मजबूर हैं.

मुंबई:

कोरोना (Coronavirus) के कारण महाराष्ट्र में पिछले दो सालों से कुश्ती की प्रतियोगिता बंद है जिसका असर पहलवानों (Coronavirus affect on Wrestling) पर पड़ा है. पहले की तरह ना ही वो प्रैक्टिस कर पा रहे हैं, और स्टेट और नेशनल लेवल पर खेल चुके खिलाड़ी अब 300 रुपये के दिहाड़ी पर खेती करने को मजबूर हैं. भारतीय कुश्ती महासंघ और खेलो इंडिया जैसे प्रतियोगिताओं में कांस्य पदक जीतने वालीं संजना बागड़ी यूं तो पहलवान हैं और कुश्ती खेलती हैं. लेकिन पिछले दो सालों से महाराष्ट्र में होने वाली सभी कुश्ती के प्रतियोगिताएं बंद हैं, जिसकी वजह से अब संजना घर चलाने के लिए 300 रुपये दिहाड़ी पर खेती करने को मजबूर हैं. एक पहलवान को तंदुरुस्त रखने के लिए भी खास खानपान का ध्यान रखना पड़ता है लेकिन वो भी कर पाना अब मुश्किल है.

संजना बागड़ी कहती हैं, 'कोरोना के वजह से ना ही कोई स्पर्धा हो रही है और ना ही प्रैक्टिस. परेशानी बढ़ गई है. हम पहले की तरह खुराक भी नहीं रख पा रहे हैं. मेरे जैसे कई और लोग हैं, पहलवानों के लिए कुछ किया जाना चाहिए, बहुत गरीब परिवार से आते हैं. कई लोग जो पहलवान थे वो अब खेतों में काम कर रहे हैं.'

संजना का परिवार सांगली जिले के मेराज तालुके के तुंग गांव से आता है. पिता मछुआरे हैं लेकिन फिलहाल बाज़ार बंद है और पैसे खत्म हो रहे हैं. पश्चिमी महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर कुश्ती खेली जाती है, लेकिन अब सबकुछ बंद है. परिवारवाले बताते हैं कि संजना की तरह कई खिलाड़ी हैं जो इस तरह काम करने को मजबूर हैं.

संजना की दादी कस्तूरी बागड़ी कहती हैं, 'इसने बड़े मन लगाकर पूरी ताकत से कुश्ती में मेहनत की और हम भी चाहते थे कि उसे इसमें ही सफलता मिले. और अब जब यह खेतों में काम करती है तो बहुत बुरा लगता है. सरकार की ओर से कोई मदद मिले इसकी हम माँग करते हैं.'

संजना के पिता खंडू बागड़ी कहते हैं, 'ओलिम्पिक 2024 में होने वाले स्पर्धा के लिए हम तैयारी कर रहे हैं और देखेंगे जो होगा वो होगा. उसके खर्चे के लिए अब गांव में जहां खेतों में काम मिलता है वो उसे करती है.'

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भारत में एक खिलाड़ी जब बड़े स्तर पर पदक जीतता है, तो उसकी तारीफ की जाती है और उसे नवाजा जाता है. लेकिन अगर इसी तरह का समर्थन इन खिलाड़ियों को तब मिले जब इन्हें इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है, तो शायद संजना को अपना खेल छोड़कर इस तरह मजबूरन खेतों में काम नहीं करना पड़ता. (सांगली से साथ में रॉबिन्सन डेविड)