फाइल फोटो
लखनऊ:
मुजफ्फरनगर दंगों की जांच करने वाली जस्टिस विष्णु सहाय कमीशन ने दंगों के लिए अखिलेश यादव सरकार को क्लीन चिट दे दी है, लेकिन इसके लिए प्रशासन, पुलिस और इंटेलिजेंस तीनों को जिम्मेदार माना है। दंगे भड़कने के लिए कुछ सियासी पार्टियों के नेताओं और अफवाहें फैलाने के लिए अखबारों और सोशल मीडिया को जिम्मेदार माना गया है।
ये रिपोर्ट विधानसभा में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पेश की। इस रिपोर्ट में दंगे कराने, भड़काने और उन्हें ना रोक पाने की दर्जन भर वजहें गिनाई गई हैं। मिसाल के लिए
-पहले से हो रहीं सांप्रदायिक घटनाएं
- शाहनवाज़, सचिन और गौरव की हत्या
- कवाल कांड में शामिल लोगों का छूटना
- खुफिया तंत्र की नाकामी
- जिला प्रशासन और पुलिस के गलत कदम
- सोशिल मीडिया पर तालिबानी वीडियो वायरल करना
- बहू-बेटी सम्मान बचाओ महापंचायत
- पंचायतों में सांप्रदायिक भाषण
- अखबारों, सोशल मीडिया में अफवाह
दंगों को लेकर एक झूठे स्टिंग के शिकार मंत्री आजम खान चाहते हैं कि रिपोर्ट में मीडिया के रोल पर और विस्तृत बातें शामिल होनी चाहिए थी। रिपोर्ट में बीजेपी एमएलए संगीत सोम पर फर्जी वीडियो शेयर कर दंगा भड़काने और दूसरे नेताओं पर भड़काऊ भाषण देने के इल्जाम हैं। दंगों के आरोपी बीजेपी एमएलए सुरेश राणा कहते हैं कि उनके खिलाफ इल्जाम झूठे हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक 7, सितम्बर 2013 को दंगों वाले दिन स्थानीय अभिसूचना इकाई के तत्कालीन निरीक्षक प्रबल प्रताप सिंह द्वारा मुजफ्फरनगर के मण्डौर में आयोजित महापंचायत में शामिल होने जा रहे लोगों की संख्या की सही खुफिया रिपोर्ट नहीं दे पाने, महापंचायत की रिकार्डिंग ना किए जाने तथा तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सुभाष चन्द्र दुबे की ढिलाई और नाकामी के कारण मुजफ्फरनगर में दंगे हुए जिनकी आग सहारनपुर, शामली, बागपत तथा मेरठ तक फैली।
700 पन्नों की इस रिपोर्ट में तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के निलम्बन और विभागीय जांच की कार्यवाही से सहमति व्यक्त करते हुए उस वक्त मुजफ्फनगर के जिलाधिकारी रहे कौशल राज शर्मा को भी जिम्मेदार मानते हुए उनसे नगला मण्डौर में आयोजित महापंचायत के मद्देनजर कानून-व्यवस्था बनाये रखने के लिए की गई व्यवस्थाओं तथा महापंचायत की वीडियोग्राफी ना कराये जाने के बिंदुओं पर स्पष्टीकरण मांगा गया है।
रिपोर्ट में मीडिया को भी कठघरे में खड़ा किया गया है। आयोग का मानना है कि मीडिया ने दंगों से सम्बन्धित घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर रिपोर्टिंग की और अफवाहें भी फैलाईं। कुछ खबरों ने तो दंगों को भड़काया भी।
मुजफ्फरनगर में सितम्बर 2013 को हुए साम्प्रदायिक दंगों में कम से कम 62 लोग मारे गए थे तथा सैकड़ों अन्य घायल हो गए थे। इन दंगों की आग शामली, सहारनपुर, बागपत तथा मेरठ तक फैल गई थी। सरकार ने दंगों से पहले हुए कवाल काण्ड से लेकर 9 सितम्बर, 2013 तक घटित घटनाओं की जांच के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश विष्णु सहाय की अध्यक्षता में एकल सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया था। (इनपुट भाषा से)
ये रिपोर्ट विधानसभा में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पेश की। इस रिपोर्ट में दंगे कराने, भड़काने और उन्हें ना रोक पाने की दर्जन भर वजहें गिनाई गई हैं। मिसाल के लिए
-पहले से हो रहीं सांप्रदायिक घटनाएं
- शाहनवाज़, सचिन और गौरव की हत्या
- कवाल कांड में शामिल लोगों का छूटना
- खुफिया तंत्र की नाकामी
- जिला प्रशासन और पुलिस के गलत कदम
- सोशिल मीडिया पर तालिबानी वीडियो वायरल करना
- बहू-बेटी सम्मान बचाओ महापंचायत
- पंचायतों में सांप्रदायिक भाषण
- अखबारों, सोशल मीडिया में अफवाह
दंगों को लेकर एक झूठे स्टिंग के शिकार मंत्री आजम खान चाहते हैं कि रिपोर्ट में मीडिया के रोल पर और विस्तृत बातें शामिल होनी चाहिए थी। रिपोर्ट में बीजेपी एमएलए संगीत सोम पर फर्जी वीडियो शेयर कर दंगा भड़काने और दूसरे नेताओं पर भड़काऊ भाषण देने के इल्जाम हैं। दंगों के आरोपी बीजेपी एमएलए सुरेश राणा कहते हैं कि उनके खिलाफ इल्जाम झूठे हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक 7, सितम्बर 2013 को दंगों वाले दिन स्थानीय अभिसूचना इकाई के तत्कालीन निरीक्षक प्रबल प्रताप सिंह द्वारा मुजफ्फरनगर के मण्डौर में आयोजित महापंचायत में शामिल होने जा रहे लोगों की संख्या की सही खुफिया रिपोर्ट नहीं दे पाने, महापंचायत की रिकार्डिंग ना किए जाने तथा तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सुभाष चन्द्र दुबे की ढिलाई और नाकामी के कारण मुजफ्फरनगर में दंगे हुए जिनकी आग सहारनपुर, शामली, बागपत तथा मेरठ तक फैली।
700 पन्नों की इस रिपोर्ट में तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के निलम्बन और विभागीय जांच की कार्यवाही से सहमति व्यक्त करते हुए उस वक्त मुजफ्फनगर के जिलाधिकारी रहे कौशल राज शर्मा को भी जिम्मेदार मानते हुए उनसे नगला मण्डौर में आयोजित महापंचायत के मद्देनजर कानून-व्यवस्था बनाये रखने के लिए की गई व्यवस्थाओं तथा महापंचायत की वीडियोग्राफी ना कराये जाने के बिंदुओं पर स्पष्टीकरण मांगा गया है।
रिपोर्ट में मीडिया को भी कठघरे में खड़ा किया गया है। आयोग का मानना है कि मीडिया ने दंगों से सम्बन्धित घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर रिपोर्टिंग की और अफवाहें भी फैलाईं। कुछ खबरों ने तो दंगों को भड़काया भी।
मुजफ्फरनगर में सितम्बर 2013 को हुए साम्प्रदायिक दंगों में कम से कम 62 लोग मारे गए थे तथा सैकड़ों अन्य घायल हो गए थे। इन दंगों की आग शामली, सहारनपुर, बागपत तथा मेरठ तक फैल गई थी। सरकार ने दंगों से पहले हुए कवाल काण्ड से लेकर 9 सितम्बर, 2013 तक घटित घटनाओं की जांच के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश विष्णु सहाय की अध्यक्षता में एकल सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया था। (इनपुट भाषा से)
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