प्रतीकात्मक फोटो
मुंबई:
स्वाइन फ्लू इस पूरे साल महाराष्ट्र और मुम्बई के लिए एक बड़ी चुनौती रहा है। जनवरी से लेकर अगस्त तक इसके 2000 से ज्यादा मामले राज्य भर में सामने आए हैं। मुम्बई में अब तक इसके चलते 44 लोगों की मौत हो चुकी है। बीएमसी का दावा है कि इससे निपटने के उसने कोई कसर नही छोड़ी है पर हकीकत कुछ और ही है।
स्वाइन फ्लू के बढ़ते मामले काफी गंभीर मसला है। पिछले एक हफ्ते में ही स्वाइन फ्लू से ग्रस्त 215 लोगों के मामले सिर्फ मुंबई में सामने आए हैं। बीएमसी का कहना है कि वह इसका सामना करने के लिए पूरी तरह से तैयार है। डॉ पद्मजा केसकर, एग्जीक्यूटिव हेल्थ ऑफिसर ने लोगों से अपील की है कि एच1 एन1 के मरीज को घर में अलग रखा जाए। उसे बाकी लोगों के संपर्क में न आने दिया जाए। मरीज सार्वजनिक जगहों पर न जाएं। अस्पतालों में सभी तैयारियां कर ली गई हैं, सभी दवाइयां उपलब्ध हैं। डॉक्टर और वार्ड से लेकर सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं।
लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। एक ओर तो मरीज को घर में भी बाकी सदस्यों के संपर्क में न आने की सलाह दी जाती है, वहीं दूसरी ओर मरीजों को अस्पतालों में जनरल वार्ड में बाकी मरीजों के साथ रखा जाता है। शहर के सबसे बड़े म्युनिसिपल अस्पतालों का नजारा डराने वाला है। इस संक्रामक बीमारी के मरीजों को बाकी मरीजों के साथ ही रखा जा रहा है। आइसोलेशन के नाम पर एक अलग बेड दिया जाता है और ज्यादा हुआ तो उसे एक पर्दा लगाकर बाकी मरीजों से अलग कर दिया जाता है।
स्वाइन फ्लू के मरीजों के लिए अलग वार्ड शायद सिर्फ कागजों पर ही है। संक्रामक बीमारियों के विशेषज्ञ डॉ ओम श्रीवास्तव ने कहा है कि एच1 एन1 से संक्रमित मरीजों को बाकी मरीजों से अलग रखना जरूरी है। डॉ पद्मजा केसकर से स्वाइन फ्लू के मरीजों के लिए अलग वार्ड या आइसोलेशन का सवाल किया गया तो जवाब मिला 'आइसोलेशन की क्या बात है, ट्रेन में देखा है न आपने कि लोग कैसे चिपक-चिपक कर सफर करते हैं।'
स्वाइन फ्लू फैलने वाली संक्रामक बीमारी है। कहने को तो इन मरीजों का इलाज करने वाले डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ को एन 95 मास्क लगाने चाहिए, लेकिन ऐसा कुछ भी दिखाई नहीं देता। डॉक्टर, नर्स, वार्ड में भर्ती बाकी मरीज और उनके रिश्तेदार भी इन मरीजों के संपर्क में रहते हैं। बीमारी के इलाज और रोकथाम के बीएमसी दावे तो बहुत कर रही है पर अस्पतालों के वार्ड की हकीकत अलग है।
स्वाइन फ्लू के बढ़ते मामले काफी गंभीर मसला है। पिछले एक हफ्ते में ही स्वाइन फ्लू से ग्रस्त 215 लोगों के मामले सिर्फ मुंबई में सामने आए हैं। बीएमसी का कहना है कि वह इसका सामना करने के लिए पूरी तरह से तैयार है। डॉ पद्मजा केसकर, एग्जीक्यूटिव हेल्थ ऑफिसर ने लोगों से अपील की है कि एच1 एन1 के मरीज को घर में अलग रखा जाए। उसे बाकी लोगों के संपर्क में न आने दिया जाए। मरीज सार्वजनिक जगहों पर न जाएं। अस्पतालों में सभी तैयारियां कर ली गई हैं, सभी दवाइयां उपलब्ध हैं। डॉक्टर और वार्ड से लेकर सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं।
लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। एक ओर तो मरीज को घर में भी बाकी सदस्यों के संपर्क में न आने की सलाह दी जाती है, वहीं दूसरी ओर मरीजों को अस्पतालों में जनरल वार्ड में बाकी मरीजों के साथ रखा जाता है। शहर के सबसे बड़े म्युनिसिपल अस्पतालों का नजारा डराने वाला है। इस संक्रामक बीमारी के मरीजों को बाकी मरीजों के साथ ही रखा जा रहा है। आइसोलेशन के नाम पर एक अलग बेड दिया जाता है और ज्यादा हुआ तो उसे एक पर्दा लगाकर बाकी मरीजों से अलग कर दिया जाता है।
स्वाइन फ्लू के मरीजों के लिए अलग वार्ड शायद सिर्फ कागजों पर ही है। संक्रामक बीमारियों के विशेषज्ञ डॉ ओम श्रीवास्तव ने कहा है कि एच1 एन1 से संक्रमित मरीजों को बाकी मरीजों से अलग रखना जरूरी है। डॉ पद्मजा केसकर से स्वाइन फ्लू के मरीजों के लिए अलग वार्ड या आइसोलेशन का सवाल किया गया तो जवाब मिला 'आइसोलेशन की क्या बात है, ट्रेन में देखा है न आपने कि लोग कैसे चिपक-चिपक कर सफर करते हैं।'
स्वाइन फ्लू फैलने वाली संक्रामक बीमारी है। कहने को तो इन मरीजों का इलाज करने वाले डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ को एन 95 मास्क लगाने चाहिए, लेकिन ऐसा कुछ भी दिखाई नहीं देता। डॉक्टर, नर्स, वार्ड में भर्ती बाकी मरीज और उनके रिश्तेदार भी इन मरीजों के संपर्क में रहते हैं। बीमारी के इलाज और रोकथाम के बीएमसी दावे तो बहुत कर रही है पर अस्पतालों के वार्ड की हकीकत अलग है।