मुंबई में कोरोनावायरस के कहर के बीच लाखों जरुरतमंदों का पेट भर रही सामाजिक संस्थाएं अब फंड की बड़ी क़िल्लत झेल रही हैं. कईयों ने अपने-अपने कम्यूनिटी किचन बंद कर दिए हैं क्योंकि बेरोज़गारी और आर्थिक तंगी के इस दौर में इनकी मदद के लिए कोई नहीं है. मनखुर्द, शिवाजी नगर और गोवंडी जैसी मुंबई की बस्तियों में करीब 100 दिनों से 12 कम्यूनिटी किचन के जरिए हज़ारों लोगों का पेट भर रहे टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) के छात्र संघ के महासचिव फहाद अहमद और उनकी टीम अब लोगों तक मदद नहीं पहुंचा पा रहे हैं, वजह है फंड की कमी. TISS छात्र फहाद अहमद बताते हैं, ‘प्रॉब्लम ये आ रही है की सिविल सोसायटी ऑर्गेनाइजेशन अपने नेट्वर्क पर चलती हैं, जिसका जितना बड़ा नेट्वर्क उतनी बड़ी फ़ंडिंग. सब लोगों ने मदद की, लेकिन अब सैचुरेशन पोईंट आ गया है. हमारे पोटेंशियल डोनर के पास फंड नहीं तो हम भी काम नहीं कर पा रहे. पिछले कई दिनों से पकाया हुआ खाना रुक गया''
मुंबई की सबसे घनी बस्ती धारावी में एनएसओ नाम की संस्था बीते 100 दिनों से लाखों को दो वक्त का भोजन बांट रही थी. अब अकाउंट में पैसे नहीं, जरूरतमंदों की मदद करें तो आख़िर कैसे? एनएसओ संस्था के ज़फ़र हारून ने बताया, 'रमज़ान ईद के बाद हमारे पास फ़ंडिंग कम होने लगी. काम धंधे सबके बंद हुए. लोगों ने मदद से इनकार कर दिया. फिर ये खाना बांटना हमने बंद कर दिया. क्योंकि हमारे पास सरकार या किसी नगरसेवक का सपोर्ट नहीं था.'
महाराष्ट्र की सत्ता में शामिल कांग्रेस के नगरसेवक बब्बू ख़ान धारावी में सबसे पहले कम्यूनिटी किचन शुरू करने वालों में शामिल हैं.लेकिन किचन चलाने के लिए अब पैसे नहीं! बब्बू खान ने कहा ‘'मैं भी एक छोटा कारोबारी हूँ अपने दम पर चला रहा था पर कब तक चलाऊँगा, कोई मदद नहीं मिली. पैसे ख़त्म हुए बंद कर दिया''
58 दिनों में क़रीब 35,000 लोगों तक खाना पहुंचा चुकी लेमूरिया फ़ाउंडेशन ने भी मदद बंद कर दी है. लेमूरिया संस्था की पनीरसेलवम ने बताया, ‘'अपनी तरफ़ से कितना डालेगें. स्पॉन्सर भी कोई मिला नहीं. स्पॉन्सर के पास गए भी नहीं. लॉकडाउन में सब तकलीफ़ में है किनसे पैसे लें''
हालाकि तंगी के दौर में भी कई मैदान में जुटे हैं. आरएसएस से जुड़े विशाल टिब्रेवाला मुंबई भर में संस्था की मदद से 17 कम्यूनिटी किचेन चलाकर 75 लाख मील बांट चुके हैं. मदद का सिलसिला जारी है. इधर मुंबई और भिवंडी में 5 कम्यूनिटी किचन चला रही, घर बचाओ, घर बनाओ संस्था की हालात भी ख़स्ता है. मांग है की सरकार इनकी मदद करें ताकि ज़मीनी तौर पर ये ज़रूरतमंदों तक मदद पहुचा सकें.
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