कर्नाटक में टीपू सुल्तान की जयंती मनाने के राज्य सरकार के ऐलान को लेकर राज्य सरकार और मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी में ठन गई है।
दरअसल टीपू सुलतान पर लिखी एक किताब का विमोचन करते हुए कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि टीपू सुलतान सभी वर्गों को साथ लेकर चलते थे, अगर उन्होंने मस्जिदों के लिए राशि दी, तो मंदिर भी बनवाए। वह अंग्रेज़ों से आखरी दम तक लड़ते रहे इस लिए उनके सम्मान में राज्य सरकार टीपू सुलतान जयंती मनाएगी।'
बीजेपी को सिद्धारमैया की यह पहल पसंद नहीं आ रही। पार्टी के राज्य इकाई के प्रवक्ता एस प्रकाश का कहना है कि टीपू सुलतान अंग्रेज़ों से अपनी सत्ता के लिए लड़ रहे थे, न की भारत की आज़ादी के लिए।
वह कहते हैं, 'कर्नाटक के उडुप्पी और केरल के मालाबार इलाके में टीपू सुलतान ने जबरन धर्म परिवर्तन करवाया और यह मामला हमेशा चर्चा में इन इलाक़ो में रहता है। ऐसे में हमारी पार्टी सरकार की इस पहल का विरोध करती है।'
दरअसल दक्षिण कर्नाटक मे विवादस्पद घर वापसी कार्यक्रम की योजना की चर्चा चल रही है। ऐसे में सिद्धारमैया ने सोंच समझ कर टीपू सुलतान जयंती मनाने का दांव खेला है। सवाल यह भी उठता है कि टीपू सुलतान का जन्मदिन 20 नवंबर है, तो फिर दिसंबर में अचानक सिद्धारमैया को टीपू की याद क्यों आई।
राज्य में स्कूली किताबों से अवैज्ञानिक बातों को हटाकर नए सिरे से उन्हें छपवाने को लेकर बीजेपी पहले से ही सिद्धारमैया से खार खाए बैठी थी। बीजेपी पर अपने शासनकाल में स्कूली किताबों के भगवाकरण का आरोप लगा था, क्योंकि पाठ्य पुस्तकों में द्रोणाचार्य को पहला टेस्ट ट्यूब बेबी बताया गया, जबकि रामायणकाल के पुष्पक विमान का हवाला देते हुए यह साबित करने की कोशिश की गई की भारत में यह तकनीक राइट बंधुओं की विमान तकनीक की खोज से पहले से थी।
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