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This Article is From Jun 28, 2016

मॉनसून के बावजूद मनरेगा मजदूरों के लिए काम का सूखा

मॉनसून के बावजूद मनरेगा मजदूरों के लिए काम का सूखा
सांकेतिक तस्वीर
नई दिल्ली: मॉनसून से पहले देश के कई इलाकों में भारी सूखा पड़ा, लेकिन अब मॉनसून जब देशभर में पहुंच रहा है, तब भी इन इलाकों में मज़दूरी करने वालों को काम के सूखे का सामना करना पड़ रहा है। सरकार की ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि 2015-16 में मनरेगा के तहत 100 दिन से ज़्यादा रोज़गार पाने वाले परिवारों की संख्या 6 फीसदी से भी कम है।

महाराष्ट्र के सूखा पीड़ित नांदेड़ ज़िले के बलसोंड गांव के शेख इस्माइल और उनका परिवार लंबे समय से आर्थिक तनाव झेल रहा है। ये परिवार महात्मा गांधी नरेगा योजना के तहत काम मांग-मांगकर थक गया है। शेख ने एनडीटीवी से कहा कि हर रोज़ उन्हें काम की तलाश में भटकना पड़ता है और परिवार चलाना मुश्किल होता जा रहा है।

इनकी समस्या भी कम नहीं
इसी गांव की इंदु कांबले की कहानी भी मिलती-जुलती है। सास-ससुर बीमार हैं, पति को मनरेगा में काम मिला नहीं... मजबूर होकर उन्हें गांव से बाहर काम की तलाश में निकलना पड़ा है।

दरअसल ये समस्या महाराष्ट्र तक सीमित नहीं है। देशभर में मनरेगा के तहत काम न मिलने की शिकायत करने वालों की सूची लंबी है। मंगलवार को मनरेगा पर जारी सरकार की रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले एक साल में देश के सूखा पीड़ित इलाकों में 100 दिन से ज़्यादा रोज़गार पाने वाले परिवारों की संख्या सिर्फ 5.9% है। जबकि सभी सूखा पीड़ित इलाकों में केन्द्र सरकार ने मनरेगा के तहत पिछले साल ही 100 से बढ़ाकर 150 दिन तक रोज़गार देने को मंज़ूरी दी थी।

बीरेंद्र सिंह ने माना ग्राम पंचायत स्तर पर है समस्या
एनडीटीवी ने जब केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री बीरेन्द्र सिंह से इस बारे में पूछा तो उन्होंने माना कि ग्राम पंचायत स्तर पर ये समस्या है। उन्होंने कहा कि रोज़गार के अवसर पैदा करने की ज़िम्मेदारी ग्राम पंचायत की है।

दरअसल मनरेगा पर अपनी ताज़ा रिपोर्ट में सरकार ने माना है कि इसको लागू करने में 12 तरह की समस्याएं हैं। इनमें भुगतान में देरी, फंड्स की कमी, मॉनिटरिंग और पारदर्शिता की कमी जैसी चुनौतियां शामिल हैं।

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