वायुसेना में 'सुपरसोनिक युग' की शुरुआत करने वाले और सटीक निशाना साधने की क्षमता के चलते 1971 के भारत-पाक युद्ध की दिशा बदल देने वाले मिग-21 एफएल लड़ाकू जेट विमान बुधवार से इतिहास का हिस्सा बन गया।
वायुसेना प्रमुख एनएके ब्राउन ने मिग-21 लड़ाकू विमानों के पहले स्वरूप को विदाई देने के बाद कहा, मेरे मन में मिग-21 के लिए अत्यधिक पेशेवर सम्मान है। मौजूदा दिनों के विमानों में मिग-21 की दक्षता के मेल वाला कोई विमान नहीं है।
पश्चिम मेदिनीपुर में कलाईकुंडा वायुसैनिक केंद्र में सबसे युवा ऑपरेशनल कंवर्सन यूनिट पायलट फ्लाइट लेफ्टिनेंट एल नागराजन ने मिग-21 एफएल के फॉर्म 700 (किसी विमान का डॉक्यूमेंट लॉग) को वायुसेना प्रमुख के सुपुर्द किया। इसके साथ प्रतीकात्मक तौर पर वायुसेना के इतिहास की एक लंबी कहानी पर पर्दा गिर गया।
ब्राउन ने कहा कि विमान अपनी अभूतपूर्व लड़ाकू क्षमता के कारण लंबी अवधि तक वायुसेना के लड़ाकू दस्ते का आधारस्तंभ बना रहा। एयर चीफ मार्शल ब्राउन ने कहा, 1980 और 90 के दशक में वायुसेना के लड़ाकू विमानों में तकरीबन 60 प्रतिशत ये विमान थे। मौजूदा समय में वायुसेना के करीब 90 प्रतिशत पायलट मिग-21 विमानों के एक या अन्य प्रकार में उड़ान भर चुके हैं। मसलन एफएल-77, जो आज बेड़े से बाहर हो गया। उन्होंने कहा कि मिग-21 के सभी स्वरूप बेड़े से बाहर हो जाएंगे।
कलाईकुंडा वायुसैनिक केंद्र से संचालित हो रहे कुल 15 मिग-21 एफएल विमानों को बुधवार को विदाई दे दी गई। रस्मी समारोह में चार विमानों ने उड़ान भरी।
1971 के युद्ध में मिग-21 विमानों को लेकर उड़ान भर रहे वायुसेना के पायलटों द्वारा ढाका में गर्वनर्स हाउस पर किया गया सटीक हमला निर्णायक साबित हुआ था। इसके चलते शत्रु खेमे को समर्पण के लिए बाध्य होना पड़ा। करगिल के संघर्ष में भी विमान को तैनात किया गया था।
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