मराठी साहित्यकार भालचंद्र नेमाड़े को 50वां ज्ञानपीठ पुरस्कार

नई दिल्ली:

मराठी के मशहूर साहित्यकार भालचंद्र नेमाड़े को 50वां ज्ञानपीठ पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की गई। नेमाड़े देश का सर्वोच्च साहित्य सम्मान पाने वाले 55वें साहित्यकार हैं। इससे पहले पांच दफा संयुक्त रूप से यह पुरस्कार प्रदान किया गया था।

ज्ञानपीठ की ओर से आज जारी विज्ञप्ति में कहा गया कि ज्ञानपीठ पुरस्कारों के स्वर्ण जयंती वर्ष में मराठी भाषा के लब्ध प्रतिष्ठित साहित्य साधक भालचंद्र नेमाड़े को वर्ष 2014 का 50वां ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया जाएगा।

ज्ञानपीठ पुरस्कार चयन समिति के चैयरमैन और प्रसिद्ध आलोचक नामवर सिंह की अध्यक्षता में हुई समिति की बैठक में उन्हें इस पुरस्कार के लिए चुना गया।

पद्मश्री से सम्मानित नेमाड़े को उपन्यासकार, कवि, आलोचक और शिक्षाविद् के तौर पर जाना जाता है। वह 60 के दशक के लघु पत्रिका आंदोलन के प्रमुख हस्ताक्षर थे।

ज्ञानपीठ के निदेशक लीलाधर मंडलोई ने बताया कि नेमाड़े भारतीय भाषाओं के ऐसे साहित्यकारों में शामिल हैं, जिन्होंने तीन पीढ़ियों को प्रभावित किया है। मराठी साहित्य में उनकी प्रमुख कृतियों में साल 1968 में प्रकाशित उपन्यास 'कोसला' और साल 2010 में प्रकाशित वृहद उपन्यास 'हिन्दू : जगण्याची समृद्ध अडगल' शामिल हैं।

उन्होंने बताया कि नेमाड़े को आलोचनात्मक कृति 'टीका स्वयंवर' के लिए वर्ष 1990 में साहित्य साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था। मंडलोई ने बताया कि ज्ञानपीठ पुरस्कार के रूप में 11 लाख रुपये, प्रशस्ति पत्र, वाग्देवी की प्रतिमा प्रदान की जाएगी।

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गौरतलब है कि पहले ज्ञानपीठ पुरस्कार से 1965 में मलयालम के लेखक जी शंकर कुरूप को सम्मानित किया गया था। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित होने वाले नेमाड़े मराठी के चौथे साहित्यकार हैं। इससे पहले वीएस खांडेकर, वीवीएस कुसुमाग्रज और विंदा करंदीकर इस सम्मान से सम्मानित हो चुके हैं।