पूर्व प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) का जन्म 26 सितम्बर, 1932 को हुआ था. वह 2004 से 2014 के बीच देश के प्रधानमंत्री पद पर रहे। सुलझे हुए अर्थशास्त्री डॉ.सिंह को तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव के कार्यकाल में वित्त मंत्री के रूप में किये गये आर्थिक सुधारों का श्रेय भी जाता है. पूर्व प्रधानमंत्री एक गरीब परिवार में पैदा हुए थे. अपने जीवन के शुरुआती 12 सालों तक वह गांव में ही रहे, जिस गांव में न बिजली थी, न स्कूल था, न अस्पताल था और न ही पाइपलाइन से आपूर्ति किया जानेवाला पानी ही था. सिंह के मीडिया सलाहकार के रूप में 2004 से 2008 तक काम कर चुके संजय बारू के मुताबिक, मनमोहन सिंह स्कूल जाने के लिए रोज मीलों चलते थे और रात में केरोसिन तेल की ढिबरी (बत्ती) की मंद रोशनी में पढ़ाई किया करते थे. एक बार जब उनसे उनकी कमजोर नजर को लेकर पूछा गया था तो उन्होंने कहा था कि वह मंद रोशनी में घंटों किताबें पढ़ा करते थे. उनका परिवार 1947 में विभाजन के दौरान भारत के अमृतसर आ गया. उन्होंने बहुत कम उम्र में ही अपनी मां को खो दिया और उनकी दादी ने उन्हें पाला-पोसा. उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से 1954 में अर्थशास्त्र में एमए की डिग्री हासिल की. अपने अकादमिक करियर में उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र ट्राइपोज पूरा किया, जहां वह 1957 में सेंट जॉन्स कॉलेज के सदस्य थे.
उसके बाद ऑक्सफोर्ड से अर्थशास्त्र में डाक्टरेट की डिग्री हासिल करने के बाद मनमोहन सिंह ने साल 1966-69 तक संयुक्त राष्ट्र में काम किया. 1969 से 1971 तक वह दिल्ली स्कूल ऑफ इकॉनामिक्स में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के शिक्षक थे. 1970 और 80 के दशक में उन्होंने सरकार में कई पदों पर अपनी सेवाएं दीं, जैसे मुख्य आर्थिक सलाहकार (1972-76), भारतीय रिजर्व बैंक के गर्वनर (1982-85) और योजना आयोग के प्रमुख (1985-87). साल 1991 के जून में प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव ने उन्हें वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी और वित्तमंत्री के रूप में उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था को उदार बनाने के लिए कई संरचनात्मक सुधार किए.
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हमेशा शांत-सामान्य और सहज दिखने वाले प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने एक बार कहा था कि वह नहीं चाहते कि लोग उनकी 'गरीबी की पृष्ठभूमि' पर तरस खाएं और इसे लेकर वह अपने उत्तराधिकारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कोई प्रतिस्पर्धा नहीं करना चाहते. उन्होंने यहां कहा, "मैं नहीं चाहता कि मेरी पृष्ठभूमि के बारे में जानकर देश मुझ पर तरस खाए. मैं नहीं समझता कि इस मामले में प्रधानमंत्री मोदीजी के साथ मैं किसी प्रतिस्पर्धा में हूं." गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पूछे गए एक सवाल जिसमें उनसे पूछा गया था कि वह अपनी गरीबी की पृष्ठभूमि के बारे में बात क्यों नहीं करते हैं, जिस तरह मोदी हमेशा बचपन में अपने परिवार की मदद के लिए गुजरात के रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने की बात करते हैं.
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