किसी भी राज्य में चुनी हुई सरकार का ये अधिकार होता है कि वह किस अधिकारी को रहने या किसको कहा रखे। सोमवार को बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का तबादला किया। इसमें एक पुलिस अधिकारी पटना के आईजी कुंदन कृष्णन हैं, जिन्हें अब एटीएस का प्रमुख बनाया गया है।
कुंदन के तबादले के पीछे ये बताया गया है कि पटना के गांधी मैदान हादसे में सारे वरिष्ठ से लेकर नीचे के अधिकारियों को जब हटाया गया तब कुंदन की राजनीतिक पहुंच की वजह से ही उस वक्त उनका तबादला नहीं हुआ। लेकिन, विजयदशमी के दिन घटना के बाद मैंने देखा कि कुंदन कैसे गांधी मैदान से लेकर पीएमसीएच में अपने मातेहत अधिकारियों के साथ मोर्चाबंदी किए हुए थे।
घटना के वक्त उनकी वर्दी तक फट गई और जब सादे कपड़े में पीएमसीएच के इमर्जेंसी गेट पर भीड़ को अपने बॉडी गार्ड की मदद से रोके हुए थे, तब कई लोगों ने उनके साथ धक्का मुक्की तक की।
सामान्य हालात में अगर आप वरिष्ठ अधिकारी के साथ धक्का मुक्की करेंगे तो पुलिस तुरंत लाठीचार्ज कर देती है, लेकिन उस समय भीड़ नियंत्रण करना था, न की लाठी चार्ज करना।
बाद में बगल के एक कमरे में कुंदन ने वर्दी मंगा के कपड़े बदले और इमर्जेंसी वार्ड में जरूरी दवा न होने पर उन्होंने तीन हजार रुपये देकर दवा भी मंगाए।
उस शाम पटना के एसएसपी, डीएम, डीआईजी, पुलिस आयुक्त सब नदारद थे। सब पर कार्रवाई हुई लेकिन कुंदन तो मुस्तैद थे। हालांकि राज्य सरकार को लगा कि उनका तबादला न करना गलत संदेश देगा।
लेकिन मेरा मानना है कि तबादले के बाद बिहार में या यों कहें कि पूरे देश में शायद ही कोई अधिकारी भीड़ में अपने कपड़े फड़वाएगा, पैसे देकर दवा मंगाएगा और लोगों की गाली और मार खाकर लोगों की जान बचाने की कोशिश करेगा। मैं मानता हूं कि कुंदन कृष्णन बहुत लोकप्रिय अधिकारी नहीं रहे हैं, लेकिन उस शाम के काम के बदले पुरष्कार के बदले मांझी सरकार ने ये क्या किया?
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