नई दिल्ली : भारत के पहले मंगलयान ने मंगल की कक्षा में 6 महीने पूरे कर सफलता का इतिहास रच दिया है। मंगलयान के 6 महीनों के सफल सफ़र ने दुनिया में भारत का मान बढ़ाया है।
24 सिंतबर 2014 को रोबोटिक मिशन मंगल की कक्षा में पहुंचा। वो एक ऐतिहासिक पल था। इसके साथ ही भारत दुनिया का ऐसा पहला देश बन गया जिसने मंगल मिशन की पहली कोशिश में ही कामयाबी हासिल की। इसकी लागत भी दूसरे ग्रह में भेजे गए दुनिया के किसी भी स्पेस मिशन के मुक़ाबले बहुत कम थी, सिर्फ़ 450 करोड़ रुपये।
मंगलयान अब भी पूरी मज़बूती से काम कर रहा है। इसमें लगे सभी पांचों उपकरण सही तरह से काम कर रहे हैं और इसमें 37 किलो ईंधन अब भी बाकी है। मंगल की कक्षा में चक्कर लगाने के लिए हर साल 2 किलो ईंधन की ज़रूरत पड़ती है इसलिए ये मंगल की कक्षा में सालों चक्कर लगाता रहेगा।
मंगलयान को बनाने वाले इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन यानी इसरो ने अपना काम को बख़ूबी अंज़ाम दिया है। इसकी मदद से मंगल से जुड़े पर्याप्त आंकड़े हासिल किए जा चुके हैं जिनका विश्लेषण हो रहा है। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि हाई रेडिएशन वाले वातावरण और लंबे ग्रहण का सामना करते हुए ये कब तक काम कर पाएगा?
आपको बता दें कि प्रतिष्ठित 'टाइम' पत्रिका ने भारत के 'मंगलयान' को 2014 के सर्वश्रेष्ठ आविष्कारों में शामिल किया है और इसे प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक ऐसी उपलब्धि बताया है, जो भारत को अंतर-ग्रहीय अभियानों में पांव पसारने का मौका प्रदान करेगी। 'टाइम' ने मंगलयान को 'द सुपरमार्ट स्पेसक्राफ्ट' की संज्ञा दी है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) ने 24 सितंबर 2014 को मंगलयान को मंगल की कक्षा में प्रवेश कराया था और इसी के साथ भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया था, जो मंगल तक पहुंचे हैं।
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