गुवाहटी हाई कोर्ट ने असम में एक विदेशी ट्रिब्यूनल के आदेश को खारिज कर दिया है और जॉयदेव घोष नाम के शख्स को डिटेंशन सेंटर से मुक्त कर दिया है. साथ ही न्यायाधिकरण से कहा कि वह उसके नागरिकता के दावे पर नए सिरे से सुनवाई करे. उच्च न्यायालय ने कहा कि उसे एक आखिरी मौका मिलना चाहिए क्योंकि वह ट्रिब्यूनल में हुई सुनवाई में शामिल नहीं हो सकता था. 50 वर्षीय घोष को सिलचर जेल के डिटेंशन कैंप से गुरुवार को जमानत पर रिहा कर दिया है. वह करीब एक साल तक हिरासत में रहा. घोष ने कहा कि न्यायाधिकरण में जब नागरिकता के उसके दावे पर सुनवाई चल रही थी तो वह हाजिर नहीं रह सका क्योंकि उसका एकलौता बेटा कैंसर से जूझ रहा था. जिसकी मौत हो गई.
जॉयदेव घोष ने सिलचर में संवाददाताओं को बताया, "उस समय में मेरा बेटा ब्लड कैंसर से जूझ रहा था. एक पिता के रूप में मैं उसे आखिरी दम तक बचाने की कोशिश करता रहा. लेकिन मैं उसे नहीं बचा सका. इस वजह से मैं न्यायाधिकरण की सुनवाई में शामिल नहीं हो सका. मैं गरीब आदमी हूं. मैं एक दुकान में काम करता था. मेरी आमदनी बहुत कम थी, जिसे मैं अपने बीमार बेटे के इलाज खर्च करता था, इसलिे मेरे लिए वकील करना और सुनवाई में हिस्सा लेने आसान नहीं थी. मैंने पिछले लोकसभा चुनाव में मतदान किया था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दोबारा चुनाव जीतते हुए देखा. इसके कुछ दिन बाद पुलिस ने मुझे पकड़ा लिया. मुझे पुलिस स्टेशन में पता चला कि बिना मेरी बात सुने मुझे विदेशी नागरिक घोषित कर दिया गया है."
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असम के करीमगंज जिले में बदरपुर इलाके में रहने वाले घोष को अगस्त 2018 में विदेशी घोषित किया गया था. इससे पहले असम बॉर्डर पुलिस ने 2016 में उसके विदेशी होने का संदेह जताया था और मामले को विदेशियों के लिए न्यायाधिकरण के पास भेजा गया था.
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न्यााधिकरण के रिकॉर्ड के मुताबिक, घोष 24 अगस्त 2017 को पहली सुनवाई में पेश हुआ था. इसके बाद उनका वकील न्यायाधिकरण से एक के बाद एक नई तारीखों की मांग करता रहा. बाद में न्यायाधिकरण ने उसे विदेशी घोषित कर दिया. घोष को मई 2019 में गिरफ्तार किया गया था और डिटेंशन कैंप में भेज दिया था.
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