CBI निदेशक के नाम पर सर्वसम्मति से नहीं हुआ फैसला, मल्लिकार्जुन खड़गे नहीं थे सहमत

ऋषि कुमार शुक्ला (Rishi Kumar Shukla) का चयन करने वाली तीन सदस्यीय हाई पावर कमेटी में सर्वसम्मति से फैसला नहीं हुआ.

CBI निदेशक के नाम पर सर्वसम्मति से नहीं हुआ फैसला, मल्लिकार्जुन खड़गे नहीं थे सहमत

ऋषि कुमार शुक्ला (Rishi Kumar Shukla) के नाम पर खड़गे सहमत नहीं थे.

खास बातें

  • नियुक्ति पर सर्वसम्मति से नहीं हुआ फैसला
  • नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे नहीं थे सहमत
  • उन्होंने जताई थी कई आपत्तियां
नई दिल्ली :

ऋषि कुमार शुक्ला (Rishi Kumar Shukla) को सीबीआई का नया निदेशक (New CBI Chief)  तो नियुक्त कर दिया गया है, लेकिन उनका चयन करने वाली तीन सदस्यीय हाई पावर कमेटी में सर्वसम्मति से फैसला नहीं हुआ. जानकारी के मुताबिक नेता विपक्ष और कमेटी के सदस्य मल्लिकार्जुन खड़गे ऋषि कुमार शुक्ला (Rishi Kumar Shukla) के नाम से सहमत नहीं थे. उन्होंने ने असंतुष्टि का पत्र भी दिया था. मल्लिकार्जुन खड़गे ने ऋषि कुमार शुक्ला की सीनियॉरिटी और इंटेग्रिटी पर सवाल उठाये थे. खड़गे का तर्क था कि शुक्ला को एंटी करप्शन मामलों में अनुभव की कमी है. उन्होंने सीबीआई निदेशक की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का हवाला भी दिया. जिसमें कहा गया है कि इस पद पर किसी IPS की नियुक्त Seniority, Integrity और करप्शन के मामलों की जांच के अनुभव के आधार पर होगी. आपको बता दें कि  हाई पावर कमेटी की अगुवाई पीएम मोदी कर रहे थे. इसमें मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, पीएम मोदी और नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे शामिल थे.

खड़गे ने पत्र में जावीद अहमद को बताया उपयुक्त
नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर सीबीआई निदेशक पद पर ऋषि कुमार शुक्ला की नियुक्ति पर सवाल खड़े किए हैं. खड़गे ने कहा है कि निदेशक पद पर जिन अफसरों के नामों पर विचार किया गया, उसमें ऋषि शुक्ला सबसे कम अनुभवी रहे. खड़गे के मुताबिक आईपीएस जावीद अहमद निदेशक पद के लिए ज्यादा उपयुक्त रहे. उन्होंने पत्र में लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक सीबीआई निदेशक पद पर नियुक्ति के लिए सीनियारिटी, इंटीग्रिटी और एंटी करप्शन मामलों की 100 महीने से ज्यादा की जांच मुख्य मानक थे. पत्र में यूपी काडर के 1984 बैच के आईपीएस जावीद अहमद सबसे ज्यादा अनुभवी रहे. कुल 303 महीने की जांच का उनके पास अनुभव रहा, जिसमें 160 महीने सिर्फ एंटी करप्शन मामले की जांच का रहा. वहीं दूसरे नंबर पर 1983 बैच के आईपीएस राजीव राय भटनागर रहे, जिनके पास कुल 170 महीने की जांच का अनुभव रहा. भटनागर के पास एंटी करप्शन केस की जांच का 25 महीने का अनुभव रहा. जबकि सीबीआई निदेशक बने ऋषि कुमार शुक्ला के पास कुल 117 महीने की जांच का अनुभव है, मगर भ्रष्टाचार के खिलाफ केस की जांच का एक भी महीने का अनुभव नहीं है. उनके नाम के आगे इस कॉलम में निल लिखा है. 
 

गौरतलब है कि ऋषि कुमार शुक्ला (Rishi Kumar Shukla  की नियुक्ति दो सालों के लिए की गई है. उन्हें काफी तेज-तर्रार अधिकारी माना जाता है. इससे पहले वे मध्य प्रदेश के डीजीपी समेत अन्य पदों पर भी रह चुके हैं. आपको बता दें कि सीबीआई प्रमुख का पद 10 जनवरी को आलोक वर्मा को इस पद से हटाये जाने के बाद से ही खाली पड़ा था. वर्मा का गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी राकेश अस्थाना से भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर झगड़ा चल रहा था. वर्मा और अस्थाना दोनों ने एक-दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये थे. वर्मा को सीबीआई निदेशक के पद से हटाए जाने के बाद उन्हें दमकल सेवा, नागरिक रक्षा और होम गार्ड्स का महानिदेशक बनाया गया था. यह सीबीआई प्रमुख की तुलना में कम महत्वपूर्ण पद था. 

वीडियो- ऋषि कुमार शुक्ला को बनाया गया सीबीआई का नया निदेशक

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