नई दिल्ली : पूर्व केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन ने शुक्रवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा देने के साथ-साथ पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी पर गंभीर आरोप लगाए। जयंती ये सभी आरोप इससे पहले एक खत में भी लगा चुकी हैं, जो उन्होंने अब तक अपनी पार्टी रही कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखा था। आइए पढ़ते हैं, उस चिट्ठी के कुछ अंश...
मैडम, मैं यह चिट्ठी बहुत भारी दिल से लिख रही हूं। बीते 11 महीनों में मैंने बहुत गहरी मानसिक यातना झेली है, और मुझ पर लगातार हमले होते रहे हैं, मीडिया में मुझे गलत ढंग से बदनाम किया गया है, और सार्वजनिक जीवन में अपमानित किया जा रहा है। ...मैं हैरान हूं कि इस क्रूरता के साथ मुझे अपमानित किए जाने की वजह क्या है?
मैं यह बात रिकॉर्ड पर लाना चाहूंगी कि मैं वन और पर्यावरण राज्यमंत्री के तौर पर अपना काम कर रही थी कि अचानक 20 दिसंबर, 2013 को मुझे डॉ मनमोहन सिंह ने अपने ऑफिस बुलाया। जब मैं पहुंची तो वह खड़े हो गए, वह मायूस और तनाव से भरे दिख रहे थे और उन्होंने ठीक यही शब्द कहे, 'जयंती, मुझे कांग्रेस अध्यक्ष ने बताया है कि पार्टी के कार्य के लिए आपकी सेवाओं की ज़रूरत है।' मैं हैरान थी, और मैंने कहा, 'तो सर, मुझे क्या करना चाहिए?' उन्होंने जवाब दिया, 'वह तुम्हारा इस्तीफा चाहती हैं।'
मैं स्तब्ध रह गई और मैंने पूछा, 'इस्तीफा, लेकिन कब? उन्होंने जवाब दिया, 'आज।' बिना किसी संदेह के, और आप पर पूरा भरोसा करते हुए, मैंने एक शब्द नहीं कहा और मुस्कुराते हुए कहा कि मैं पार्टी अध्यक्ष की इच्छा का सम्मान करूंगी।'
अगले दिन मीडिया की सुर्ख़ियों में मेरा इस्तीफा था और सारी शुरुआती रिपोर्ट्स ठीक ही बता रही थीं कि मैं पार्टी का काम करने के लिए हटी हूं, लेकिन दोपहर तक, मुझे पता चला कि राहुल गांधी के दफ्तर से लोग मीडिया को फोन कर बता रहे हैं कि मेरा इस्तीफा पार्टी के काम के लिए नहीं है। जिस दिन मैंने इस्तीफा दिया, उसी दिन राहुल गांधी ने फिक्की में उद्योगपतियों के बीच भाषण दिया, जहां उन्होंने पर्यावरण की मंजूरी में देरी और उद्योगों पर उसके बुरे असर को लेकर कुछ अनचाही टिप्पणियां कीं और उन्हें यकीन दिलाया कि पार्टी और सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि उद्योगों की राह में कोई रुकावट और देरी न आए।
इसके बाद जो शुरू हुआ, वह मेरे खिलाफ मीडिया में बदनीयत और उन्मादी प्रचार था, जो मेरे खिलाफ पार्टी के ही कुछ लोग चला रहे थे। मैंने अपने हटाए जाने और फिक्की के उनके भाषण को लेकर राहुल गांधी को एक जज़्बाती संदेश भेजा और पूछा कि आखिर मैंने क्या गलती की है कि मेरे साथ ये यह सलूक हो रहा है। मैंने कहा कि मुझसे जवाब तो मांगा जाना चाहिए था। मैंने उनसे मिलने का समय मांगा। उन्होंने कहा कि वह उस समय कुछ व्यस्त चल रहे हैं, लेकिन बाद में मिलेंगे। कई अनुरोधों के बावजूद, वह दिन आज तक नहीं आया है।
जनवरी, 2014 में मैं आपसे मिली और मैंने आपसे इस दुष्प्रचार के बारे में बताया। आपने बताया कि चुनाव आ रहे हैं और मेरी ज़रूरत पार्टी के काम के लिए है, लेकिन तब से आज तक मुझे पार्टी का कोई काम नहीं दिया गया, और कई अनुरोधों के बावजूद, आपसे मिलने का मौका नहीं दिया गया। बल्कि जनवरी में ही, मैं तब हताश और हैरान हो गई, जब मुझे कांग्रेस मीडिया सेल के प्रमुख अजय माकन का फोन आया कि मुझे पार्टी प्रवक्ताओं की सूची से हटा दिया गया है और यह फैसला ऊपर से लिया गया है।
राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के अध्यक्ष के तौर पर, आपने मुझे पर्यावरण मंत्रालय की परियोजनाओं और जनजातीय लोगों के अधिकारों के संरक्षण को लेकर कई चिट्ठियां लिखीं और मैं आपको बताती रही कि पर्यावरण बचाने का पूरा खयाल रखा जा रहा है। कुछ अहम हिस्सों में पर्यावरणीय ज़रूरतों का खयाल रखने के लिए मुझे राहुल गांधी की ओर से बिल्कुल खास अनुरोध मिले और मैंने उनका ध्यान रखा।
राहुल गांधी खुद ओडिशा के नियामगिरि गए थे और उन्होंने खुद को सिपाही बताते हुए कहा था कि उनके हितों को वेदांता के हाथों से सुरक्षित रखा जाएगा। इस मामले में उनके विचार उनके दफ्तर से मुझे भेजे गए और मैंने अपने सहयोगियों के भारी दबाव के बावजूद आदिवासियों के हितों का पूरा ध्यान रखते हुए वेदांता को मंज़ूरी नहीं दी। शुक्र है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी मेरे फैसले को सही ठहराया। ऐसा ही अडानी के मामले में हुआ, जहां मुझे कैबिनेट के बाहर और भीतर काफी आलोचना झेलनी पड़ी।
मेरे बाद मंत्री बनाए गए मोइली ने मेरे आदेश रोक दिए। हटाए जाने से कुछ दिन पहले मैंने कुछ कानूनी नुक्तों से अडानी की फाइल फिर देखनी चाही। मुझे बताया गया कि फाइल खो गई है। वह कम्यूटर सेक्शन के वॉशरूम में पड़ी मिली। साफ तौर पर मेरे मंत्रालय का कोई अफसर उसे मेरे पास भेजना नहीं चाहता था।
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