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This Article is From Jan 03, 2021

एक हाथ में कुदाल, दूजे में कॉपी-किताब, गन्ना मजदूरों के बच्चों के लिए खेत में ही खुली पाठशाला

एक आंकड़े के मुताबिक, केवल महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त बीड जिले से 5 लाख मजदूर पश्चिमी महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु में मजदूरी करने जाते हैं.

एक हाथ में कुदाल, दूजे में कॉपी-किताब, गन्ना मजदूरों के बच्चों के लिए खेत में ही खुली पाठशाला
हर साल दिवाली के बाद लाखों की तादाद में विदर्भ और मराठवाड़ा से लोग पश्चिमी महाराष्ट्र के गन्ना खेतों में मजदूरी करने आते हैं.
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महाराष्ट्र के गन्ना खेतों के बीच खुली पाठशाला, ताकि बच्चे थाम सकें पेंसिल
गन्ना मजदूर के बच्चों के लिए खेत में स्कूल की शुरुआत
पलायन की वजस से हर साल अधूरी रह जाती है गन्ना मजदूर के बच्चों की पढ़ाई
सांगली, महाराष्ट्र:

गन्ना खेतों में काम करने वाले लाखों मज़दूरों के बच्चे हर साल पलायन की वजह से पढ़ाई नहीं कर पाते हैं लेकिन अब महाराष्ट्र (Maharashtra) के सांगली जिले में इन बच्चों के लिए खेतों में ही स्कूल की शुरुआत की गई है, ताकि इनकी पढ़ाई अधूरी ना रह जाए. हर साल दिवाली के बाद लाखों की तादाद में विदर्भ और मराठवाड़ा से लोग पश्चिमी महाराष्ट्र के गन्ना खेतों में मजदूरी करने आते हैं और करीब 6 महीने वो इन्हीं खेतों में रहते हैं. आमतौर पर जोड़े में आने वाले मज़दूर अपने साथ अपने बच्चों को भी लेकर आते हैं जो इन्हीं खेतों में रहते हैं.

अपने गांवों में काम नहीं होने की वजह से लोग हर साल इसी तरह पलायन करने को मजबूर हैं जिसका ख़मियाज़ा उन मजदूर परिवार को बच्चों को भी भुगतना पड़ता है, जिनकी पढ़ाई अधूरी रह जाती है. ऐसे में अब सांगली जिले में इन बच्चों को पढ़ाने के लिए खेत में ही स्कूल खोले जा रहे हैं, ताकि इनकी पढ़ाई अधूरी ना रह जाए.

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महिला एवं बाल कल्याण विभाग, आटपाडी की सभापति भूमिका बेरगल ने कहा, बच्चों को प्राथमिक शिक्षा देने के लिए हम आंगनवाड़ी सेविकाओं की मदद ले रहे हैं. खेत में ही पेड़ के नीचे इन बच्चों को पढ़ाई के साथ स्वच्छता और दूसरी चीजों की जानकारी दी जा रही है.

बेरगल ने कहा कि अगर बच्चे पढ़ाई करेंगे तो भविष्य में वो बेहतर नौकरी कर सकेंगे, जिससे वो अपना और अपने परिवार का बेहतर ख्याल रख सकेंगे. प्रशासन की इस कोशिश से मजदूर भी काफी खुश नजर आ रहे हैं. एक गन्ना मजदूर ने कहा, हमारे बच्चों को पेड़ के नीचे पढ़ाने के लिए किताबें और खाने पीने की वस्तुएं दी जा रही हैं. यह देखकर बहुत अच्छा लग रहा है कि कोई तो मजदूरों के बारे में भी सोच रहा है, कोई सोच रहा है कि यह इतने दूर से बहुत कुछ त्याग कर हमारे जिले में काम करने आते हैं.. यह देखकर अच्छा लगा.

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एक आंकड़े के मुताबिक, केवल महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त बीड जिले से 5 लाख मजदूर पश्चिमी महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु में मजदूरी करने जाते हैं.

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