कोरोना महामारी पर ब्रेक लगाने के लिए लंबे समय तक महाराष्ट्र में लगे लॉकडाउन ने लोगों की आर्थिक स्थिति को गहरा झटका दिया है. इस संकट की स्थिति में लोगों को बच्चों की स्कूल फीस भरने में समस्या आ रही है. इसे देखते हुए सरकार ने हाल ही में साल 2021-22 के लिए स्कूल की फीस में 15 फीसदी कटौती का ऐलान किया है. गौर करने वाली बात यह है कि क्या सरकार के इस ऐलान से वाकई परिजनों को राहत मिली है. क्या स्कूल प्रशासन सरकार के इन निर्णयों को मानेंगे? हकीकत जानने के लिए एनडीटीवी ने बच्चों के परिजनों से उनका मत जाना है.
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मुंबई के मलाड इलाके में रहने वाले मुरुगन पिल्लई महिलाओं का हेयर बैंड बनाने का काम करते हैं. इनके दो बच्चे हैं, जो ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं. हर एक बच्चे की महीने की फीस करीब 2800 रुपए है. लॉकडाउन और कोरोना की वजह से हालत खराब है. पहले यह एक झुग्गी में रहते थे, जिसे तोड़कर इमारत बनाया जा रहा है. बिल्डर ने इमारत बनने तक किराया देने का वादा किया था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. पैसे नहीं होने के वजह से यह एक अधूरी बनी इमारत में रहने को मजबूर हैं. इन्होंने इस साल अपने बच्चों का स्कूल फीस नहीं भरा है. पिल्लई का कहना है कि जब घर चलाने के पैसे नहीं हैं, तो फीस कैसे भरें. इनका मानना है कि सरकार की ओर से 15 फीसदी फीस कटौती से इन्हें कोई फायदा नहीं होगा. मुरुगन पिल्लई ने कहा कि हम ऐसा नहीं चाहते हैं कि फीस पूरी तरह से माफ की जाए, लेकिन 50 फीसदी तो माफ किया जाना चाहिए ताकि हमारा जीवन चल सके. 50 फीसदी फीस भरने के लिए भी गहने को गिरवी रखा हुआ है.
वैशाली सय्यद की बेटी कक्षा 8 में पढ़ती हैं. स्कूल ने कुछ समय पहले ही फीस बढ़ाया था. अब अगर उसमें से 15 फीसदी कम भी किया जाता है, तब भी परिवारवालों को ज़्यादा फायदा नहीं होगा. वैशाली सय्यद ने कहा कि जब बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई करते हैं, तो पहले ही शुरू हो जाता है कि फीस भरो, फीस भरो. स्कूल मैनेजमेंट को समझना चाहिए कि लोगों के पास रोजगार नहीं है.
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महाराष्ट्र इंग्लिश स्कूल ट्रस्टी एसोसिएशन के अध्यक्ष संजय पाटिल ने सरकार के इस फैसले को गलत बताया है. उन्होंने कहा कि स्कूल कैसे चलाएं अगर सबकी फीस माफ करते हैं. सरकार हमारी मदद नहीं करती है. सरकार ने 3 सालों से हमारे RTE के पैसे भी नहीं दिए, ऊपर से इस साल जो 17,676 रुपये मिलते, उसे अब 8 हज़ार कर दिया गया है. हमारे स्कूलों के खिलाफ ज़्यादती हुई है और हम कोर्ट जाएंगे.
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