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This Article is From Oct 19, 2016

महाराष्ट्र सरकार ने पालघर जिले के लिए ‘विशिष्ट आगंतुक’ कार खरीदी

महाराष्ट्र सरकार ने पालघर जिले के लिए ‘विशिष्ट आगंतुक’ कार खरीदी
पालघर जिला के लिए ‘विशिष्ट आगंतुक’ कार
मुंबई: मुंबई से सटा पालघर जिला अभी हाल ही में कुपोषण से छोटे बच्चों की मौत की वजह से सुर्खियों में आया था. आदिवासी बच्चों को पोषक आहार में कमी से लेकर आंगनवाड़ी सेविकाओं को समय से वेतन तक ना मिलने का खुलासा हुआ था, लेकिन राज्य सरकार को चिंता है पालकमंत्री और दूसरे राज्य अतिथियों के लिए कार की, जिसके लिए 40 लाख की रकम मंजूर भी हो चुकी है.

पालघर के कई बच्चों को देखकर आपको भी लगेगा कि शायद इनमें भूख से बिलखने की ताकत भी नहीं, लेकिन इनकी फिक्र चुनावी नुमाइश की चीज है. इन्हें पेटभर पौष्टिक खाना खिलाने में सरकारें तिजोरी की तरफ देखती हैं, लेकिन इन्हें देखने के लिए मंत्री जी के दौरे के लिए तिजोरी नहीं देखती इसे एक अंडा, एक गिलास दूध पिलाने में 15-20 रुपए खर्च होंगे लेकिन सरकार के लिए ये रकम बहुत बड़ी है.

हां, इन बच्चों के प्रति मंत्री जी पूरी संवेदना दिखा पाएं, संवेदना दिखाने के दौरान उन्हें तकलीफ ना हो इसलिए महाराष्ट्र सरकार दो इनोवा खरीदने जा रही है. ऑटोमैटिक खरीदी जा चुकी है, दूसरी आनेवाली है. 40 लाख रुपये इस काम के लिए चुटकियों में निकल गए. लेकिन, जिस पालघर जिले में भूख 254 बच्चों को मार चुका हो जहां आंगनवाड़ी सेविकाओं को 5000 के बजाए 200 रुपये महीने मिलने का आरोप हो वो भी सालाना ऐसे में ये नुमाइश आपराधिक लगती है.
     
पालघर में काम करने वाली आंगनवाड़ी सेविका सुमन देशमुख ने कहा, 'हमें अपना वेतन समय पर नहीं मिलता. कभी-कभी तो 5 से 6 महीने बाद पैसे मिलते हैं. सरकार एक बच्चे के भोजन के लिए 5 रुपये देती है, जबकि एक अंडे की कीमत ही 6 रुपये. अपनी जेब से ही पैसे खर्च करने पड़ते हैं. जबकि वंदना गांगुर्डे का कहना था कि 'अगर हम होटल में जाएं तो भरपेट भोजन के लिए कम से कम 80 रुपये खर्च हो जाते हैं, जबकि हमें गर्भवती और दूध पिलाने वाली महिलाओं को पैष्टिक भोजन देने के लिए सिर्फ 25 रुपये मिलते हैं, ये बड़ा ही मुश्किल है.'

सरकारी उपेक्षा का आलम यह है कि आदिवासी इलाकों मे ज्यादातर पद खाली पड़े हैं. वर्तमान में 13 चाइल्ड डेवलेपमेंट अफसर और 234 आंगनवाड़ी सेविकाओं की कमी है. सरकारी अस्पतालों में भी 12 मेडिकल सुपरिटेंडेंट की बजाय सिर्फ एक तिहाई से ही काम चलाना पड़ रहा है. सरकार की ये फिज़ूलखर्ची विपक्ष के निशाने पर है, एनसीपी प्रवक्ता नवाब मलिक ने कहा, 'आदिवासी विभाग में भ्रष्टाचार व्याप्त है. बच्चे भूख से मर रहे हैं, वहीं लाखों की गाड़ियां खरीदी जा रही हैं. ये बहुत शर्मनाक है इससे पता लगता है कि महाराष्ट्र सरकार के मन में आदिवसी, गरीब और दलितों के प्रति कैसी भावना है.'

भूख से लड़ने के मामले में दुनिया के 118 देशों में हिन्दुस्तान 97वें नंबर पर है, दलील पैसों की कमी की दी जाती है लेकिन 6 रुपये के अंडे के लिए पैसे कम पड़ें, 40 लाख की आलीशान गाड़ी के लिए खजाना खुल जाए तो समझना चाहिए कमी पैसे की नहीं प्राथमिकता की है.

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