मछली पकड़ने समुद्र में जाते महाराष्ट्र के मछुआरे
मुंबई:
जब भी समंदर में सुरक्षा की बात उठती है तो सबसे पहले जो ठिकाना जेहन में आता है वह है बधवार पार्क। 26/11 मुंबई हमले के आतंकी बधवार पार्क पर ही अपनी डिंगी से उतर कर शहर में घूसे थे और अपने नापाक मंसूबों को अंजाम दिया था।
समंदर के रास्ते फिर कोई आतंकी शहर में ना घूस पाए, इसलिए पिछले सात सालों में कई सुरक्षा उपाय योजनाएं लागू की जा चुकी हैं। अब एक नई टोकन योजना लागू की गई है, लेकिन ये योजना शुरू होते ही विवादों में घिर गई है। मछुआरों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है।
मत्स्य विभाग की तरफ से लागू इस टोकन योजना के तहत मछुआरों को हर बार समंदर में जाने से पहले अपना नाम और पुरा ब्योरा फॉर्म में भर कर देना है और लौट कर आने के बाद फिर से सुरक्षा गार्ड को सूचित करना है।
मत्स्य विभाग के आयुक्त मधुकर गायकवाड का कहना है कि ये समुद्री सुरक्षा का हिस्सा है और इससे हमारे पास समंदर में कितने मछुआरे हैं और कितने लौट आए हैं, इसकी जानकारी उपलब्ध रहेगी जो बहुत ही अहम है। मधुकर गायकवाड के मुताबिक तमिलनाडू और गुजरात मे ये टोकन योजना पहले से लागू है।
हालांकि मछुआरे इससे सहमत नहीं है। मछुआरों के नेता दामोदर तांडेल का कहना है कि ये सुरक्षा के नाम पर छोटे मछुआरों को परेशान करने का तुगलकी फरमान ज्यादा है। तांडेल का आरोप है कि ससून डाक जैसे बडी़ जेट्टियों पर जहां बड़े-बड़े मछुआरे हैं, वहां टोकन व्यवस्था नहीं लागू की गई है। और समंदर में सुरक्षा का काम मत्स्य विभाग का नही है। वो नेवी, कोस्टगार्ड, कस्टम और पुलिस का है।
मछुआरों के मुताबिक हमें अचानक से मछली मारने के लिए समंदर में जाना पड़ता है। लेकिन टोकन वाला फार्म भरने के चक्कर में ही काफी समय लग जाता है। दूसरे मछली पकड़ कर आने के बाद हम सुरक्षा गार्ड को जानकारी देने में अपना समय गवाएंगे तो पकड़ी गई मछली बाजार कब ले जाएंगे?
वह कहते हैं, कभी-कभी एक साथ कई नाव निकलती हैं, या लौट कर आती हैं। अकेला सुरक्षा गार्ड टोकन की प्रक्रिया पुरी करने में घंटों लगाएगा तो हमारी तो मछलियां ही मर जाएंगी।
आपको बता दें कि मुंबई और महाराष्ट्र के 720 किलोमिटर लंबे समंदर किनारे पर कुल 173 लैंडिग प्वाइंट हैं, लेकिन अभी सिर्फ 91 प्लाईंट पर ही टोकन व्यवस्था लागू की गई है। मत्स्य विभाग के पास कुल 23 हजार मछुआरों की नाव रजिस्टर हैं। जाहिर है इतनी बड़ी संख्या में नावों पर नजर रखना टेढ़ी खीर है।
समुद्री सुरक्षा के नाम पर पिछले सात वर्षों में समंदर में सुरक्षा के अनेकों उपाय किए जा चुके हैं। समंदर में गस्त बढ़ाने से लेकर किनारों पर निगरानी के लिए सुरक्षा टॉवर, मछुआरों के बॉयोमैट्रिक कार्ड, हर जिलों की नाव के अलग कलर कोड और अब ये नया टोकन सिस्टम। लेकिन ये सब कितना कारगर है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि समंदर में गस्त के लिए तैनात 450 पुलिस सिपाहियों में से करीब 230 को तैरना ही नहीं आता।
समंदर के रास्ते फिर कोई आतंकी शहर में ना घूस पाए, इसलिए पिछले सात सालों में कई सुरक्षा उपाय योजनाएं लागू की जा चुकी हैं। अब एक नई टोकन योजना लागू की गई है, लेकिन ये योजना शुरू होते ही विवादों में घिर गई है। मछुआरों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है।
मत्स्य विभाग की तरफ से लागू इस टोकन योजना के तहत मछुआरों को हर बार समंदर में जाने से पहले अपना नाम और पुरा ब्योरा फॉर्म में भर कर देना है और लौट कर आने के बाद फिर से सुरक्षा गार्ड को सूचित करना है।
मत्स्य विभाग के आयुक्त मधुकर गायकवाड का कहना है कि ये समुद्री सुरक्षा का हिस्सा है और इससे हमारे पास समंदर में कितने मछुआरे हैं और कितने लौट आए हैं, इसकी जानकारी उपलब्ध रहेगी जो बहुत ही अहम है। मधुकर गायकवाड के मुताबिक तमिलनाडू और गुजरात मे ये टोकन योजना पहले से लागू है।
हालांकि मछुआरे इससे सहमत नहीं है। मछुआरों के नेता दामोदर तांडेल का कहना है कि ये सुरक्षा के नाम पर छोटे मछुआरों को परेशान करने का तुगलकी फरमान ज्यादा है। तांडेल का आरोप है कि ससून डाक जैसे बडी़ जेट्टियों पर जहां बड़े-बड़े मछुआरे हैं, वहां टोकन व्यवस्था नहीं लागू की गई है। और समंदर में सुरक्षा का काम मत्स्य विभाग का नही है। वो नेवी, कोस्टगार्ड, कस्टम और पुलिस का है।
मछुआरों के मुताबिक हमें अचानक से मछली मारने के लिए समंदर में जाना पड़ता है। लेकिन टोकन वाला फार्म भरने के चक्कर में ही काफी समय लग जाता है। दूसरे मछली पकड़ कर आने के बाद हम सुरक्षा गार्ड को जानकारी देने में अपना समय गवाएंगे तो पकड़ी गई मछली बाजार कब ले जाएंगे?
वह कहते हैं, कभी-कभी एक साथ कई नाव निकलती हैं, या लौट कर आती हैं। अकेला सुरक्षा गार्ड टोकन की प्रक्रिया पुरी करने में घंटों लगाएगा तो हमारी तो मछलियां ही मर जाएंगी।
आपको बता दें कि मुंबई और महाराष्ट्र के 720 किलोमिटर लंबे समंदर किनारे पर कुल 173 लैंडिग प्वाइंट हैं, लेकिन अभी सिर्फ 91 प्लाईंट पर ही टोकन व्यवस्था लागू की गई है। मत्स्य विभाग के पास कुल 23 हजार मछुआरों की नाव रजिस्टर हैं। जाहिर है इतनी बड़ी संख्या में नावों पर नजर रखना टेढ़ी खीर है।
समुद्री सुरक्षा के नाम पर पिछले सात वर्षों में समंदर में सुरक्षा के अनेकों उपाय किए जा चुके हैं। समंदर में गस्त बढ़ाने से लेकर किनारों पर निगरानी के लिए सुरक्षा टॉवर, मछुआरों के बॉयोमैट्रिक कार्ड, हर जिलों की नाव के अलग कलर कोड और अब ये नया टोकन सिस्टम। लेकिन ये सब कितना कारगर है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि समंदर में गस्त के लिए तैनात 450 पुलिस सिपाहियों में से करीब 230 को तैरना ही नहीं आता।
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