संजीव चतुर्वेदी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
एम्स के डिप्टी सेक्रेटरी संजीव चतुर्वेदी को मैग्सायसाय पुरस्कार में करीब 20 लाख रुपया मिला था। उन्होंने इस धनराशि को एम्स को दान देने की घोषणा की थी, लेकिन दो महीने यह चेक स्वास्थ्य मंत्रालय में घूमने के बाद उनके पास वापस आ गया।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसे लेने से इनकार कर दिया। अब उन्होंने इस राशि को प्रधानमंत्री राहत कोष में दान दे दिया है, लेकिन जिस तरह स्वास्थ्य मंत्रालय ने उनकी मदद को ठुकराया है इसके चलते वह बहुत आहत महसूस कर रहे हैं।
इसके बाबत एक पत्र उन्होंने प्रधानमंत्री को भी लिखा है। उन्होंने प्रधानमंत्री से भी मिलने का वक्त मांगा है। एम्स प्रशासन ने इस मामले में खामोशी अख्तियार कर रखी है।
एम्स प्रशासन ने रकम जमा नहीं करवायी
उन्होंने प्रधानमंत्री को लिखे अपने पत्र में कहा है, ‘‘हालांकि, इस तारीख तक एम्स प्रशासन ने यह रकम जमा नहीं कराई है और यह विषय तुच्छ आधारों पर कथित तौर पर लंबित रखा गया है।’’ उन्होंने कहा है, ‘‘दुर्भावना और अनिच्छा इस बात से पूरी तरह से जाहिर होती है कि किसी अन्य निजी दानदाता के अन्य मामले में यह विषय स्वास्थ्य मंत्रालय को नहीं भेजा जाता और चंदे को फौरन ही संस्थान के खाते में जमा कर दिया जाता जबकि मेरे मामले में मेरी विश्वसनीयता और कोष के स्रोत के पूरी तरह से जानते हुए भी मामले को जानबूझ कर स्वास्थ्य मंत्रालय के पास भेज दिया गया।
चतुर्वेदी ने कहा कि स्वास्थ्य सचिव से उनकी मुलाकातों से भी इस मामले में कोई नतीजा नहीं निकला और अब भी इस रकम को जमा करने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय से कोई स्पष्ट निर्देश नहीं है।
अपमानजनक और भेदभावपूर्ण व्यवहार
उन्होंने पत्र में कहा है, यह पूरी तरह से अपमानजनक और भेदभावपूर्ण व्यवहार है। जिक्र किए गए परिस्थितियों में मैंने पुरस्कार की पूरी राशि प्रधानमंत्री राहत कोष के खाते में दान करने का फैसला किया है क्योंकि मैं स्वास्थ्य मंत्रालय एम्स के साथ इस विशुद्ध मानवीय मुद्दे पर कोई तकरार नहीं चाहता और इसलिए रकम बगैर किसी देर के जरूरतमंद लोगों के कल्याण के लिए इस्तेमाल किया जाए।
(इनपुट्स भाषा से भी)
स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसे लेने से इनकार कर दिया। अब उन्होंने इस राशि को प्रधानमंत्री राहत कोष में दान दे दिया है, लेकिन जिस तरह स्वास्थ्य मंत्रालय ने उनकी मदद को ठुकराया है इसके चलते वह बहुत आहत महसूस कर रहे हैं।
इसके बाबत एक पत्र उन्होंने प्रधानमंत्री को भी लिखा है। उन्होंने प्रधानमंत्री से भी मिलने का वक्त मांगा है। एम्स प्रशासन ने इस मामले में खामोशी अख्तियार कर रखी है।
एम्स प्रशासन ने रकम जमा नहीं करवायी
उन्होंने प्रधानमंत्री को लिखे अपने पत्र में कहा है, ‘‘हालांकि, इस तारीख तक एम्स प्रशासन ने यह रकम जमा नहीं कराई है और यह विषय तुच्छ आधारों पर कथित तौर पर लंबित रखा गया है।’’ उन्होंने कहा है, ‘‘दुर्भावना और अनिच्छा इस बात से पूरी तरह से जाहिर होती है कि किसी अन्य निजी दानदाता के अन्य मामले में यह विषय स्वास्थ्य मंत्रालय को नहीं भेजा जाता और चंदे को फौरन ही संस्थान के खाते में जमा कर दिया जाता जबकि मेरे मामले में मेरी विश्वसनीयता और कोष के स्रोत के पूरी तरह से जानते हुए भी मामले को जानबूझ कर स्वास्थ्य मंत्रालय के पास भेज दिया गया।
चतुर्वेदी ने कहा कि स्वास्थ्य सचिव से उनकी मुलाकातों से भी इस मामले में कोई नतीजा नहीं निकला और अब भी इस रकम को जमा करने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय से कोई स्पष्ट निर्देश नहीं है।
अपमानजनक और भेदभावपूर्ण व्यवहार
उन्होंने पत्र में कहा है, यह पूरी तरह से अपमानजनक और भेदभावपूर्ण व्यवहार है। जिक्र किए गए परिस्थितियों में मैंने पुरस्कार की पूरी राशि प्रधानमंत्री राहत कोष के खाते में दान करने का फैसला किया है क्योंकि मैं स्वास्थ्य मंत्रालय एम्स के साथ इस विशुद्ध मानवीय मुद्दे पर कोई तकरार नहीं चाहता और इसलिए रकम बगैर किसी देर के जरूरतमंद लोगों के कल्याण के लिए इस्तेमाल किया जाए।
(इनपुट्स भाषा से भी)
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