धार जिले के खापरखेड़ा में रंजना हीरालाल गोरे के घर में पानी भर गया है, लेकिन वे घर से बाहर नहीं निकलना चाहती थीं. निकलतीं भी कैसे...जहां उन्होंने अपनी जिंदगी बिताई उस घर को सरदार सरोवर ने खुद में समा लिया. परिवार कहता है, उनके परिवार को अभी तक पुनर्वास अनुदान नहीं दिया गया है. ऐसे में जाएं तो जाएं कहां?
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मेधा पाटकर अपने व्रत से उठीं तो अस्पताल पहुंचीं. वे वहां अपने इलाज के लिए नहीं बल्कि 40 साल के प्रवीण से मिलने पहुंची. कसरावद पुल से प्रवीण ने नर्मदा में छलांग लगा दी थी, क्योंकि उनका घर पानी में डूब गया. नाविकों ने उनकी जान बचाई.
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नर्मदा के लगातार बढ़ रहे जलस्तर को देखते हुए टापू में तब्दील राजघाट में गांव वालों ने प्रशासन से कहा कि पहले मवेशियों को बचाओ. प्रशासन ने कम गहराई वाले रास्ते से मवेशियों को बड़वानी की तरफ रवाना करने का दावा किया लेकिन वे डूब के बाहर के खेतों में पहुंच गए. गांव वालों को पता लगा तो हंगामा खड़ा हो गया.
ऐतिहासिक राजघाट का एक और दृश्य, सरदार सरोवर का बैक वाटर तेजी से बढ़ रहा है अभी गांव में लगभग 30 परिवार रह रहे हैं. लेकिन घर, पेड़ पौधों के साथ लोगों के अरमान भी नर्मदा में डूब गए. इन डूब प्रभावितों को खेती की जमीन ओर रहने के प्लाट गुजरात में दिए गए हैं. जब डूब प्रभावितों ने बारिश में वहां का हाल जाना तो मालूम पड़ा कि वहां उन्हें मिली जमीन हर साल बरसात में पानी में डूब जाती है. यही नहीं खेती में मिली जमीन खारी है, जिसमें फसल उगाना बेहद मुश्किल है.
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कुछ ऐसे भी हैं जो बेसहारा हैं, छत भी छिन गई, समझ नहीं पा रहे, करें तो क्या करें. भावना सोलंकी कहती हैं, पानी घरों में पहुंच गया है सरकार हमारे पर ध्यान नहीं दे रही है. हम बैठे हैं यहां टापू में हैं. प्लॉट नहीं दिया. वहीं वैशाली के दो छोटे-छोटे बच्चे हैं. कुछ दिन पहले पति की मौत हो गई. टापू बने गांव में बैठी हैं. वे बिलखते हुए पूछती हैं उनका और उनके बच्चों का क्या होगा?
हालांकि प्रशासन कहता है कि सब दुरुस्त है. बड़वानी कलेक्टर अमित तोमर ने कहा राजघाट में कोई विशेष विवाद नहीं है. हमने आश्वस्त किया है, उनके दावे का निराकरण करेंगे.
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इस सबके बीच निसरपुर का दस फीसदी हिस्सा ही डूबने से बचा है. गांव डूब रहे हैं, तो बड़ी वजह गुजरात की जल्दबाजी भी है जिसे 30 सितंबर तक डैम में 135 मीटर और 15 अक्तूबर तक 138.68 मीटर पानी भरना था. लेकिन गुजरात ने सारे नियम ताक पर रखते हुए 26 दिन पहले ही डैम को 135.12 मीटर तक भर दिया.
इससे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ नाराज हैं. उन्होंने इस मामले में दूसरी बार केन्द्र सरकार को खत लिखा है. जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा ने बताया कि 'मुख्यमंत्री ने लिखा है, फोन पर चर्चा भी की है लेकिन गुजरात ने प्रतिक्रिया नहीं दी है. मैं फिर सरकार से मांग करता हूं कि लगातार पानी गिर रहा है बरसात हो रही है, ऊंचाई कम होना चाहिए. '
निश्चित तौर पर लोग परेशान कर रहे हैं, मुख्यमंत्री दौरा कर सकते हैं. मुख्यमंत्री पता नहीं कब आएं, लेकिन जांगरवा के कुंवर सिंह पानी में ही खड़े हैं. खेती के बदले जमीन नहीं मिली, अब किसी के आश्ववासन पर उन्हें भरोसा नहीं है.
शिवराज सिंह की सरकार ने कहा था कि सिर्फ 76 गांव डूब प्रभावित होंगे लेकिन न उनके नाम बताए और न ही प्रभावितों को पूरी जानकारी दी थी. नर्मदा बचाओ आंदोलन ने प्रभावित गांवों की संख्या 178 बताई, जिसे अब राज्य सरकार ने मान लिया है. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि बढ़ते जलस्तर और कम होते वक्त में इन्हें राहत मिलेगी तो कब?
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