नई दिल्ली:
लोकपाल विधेयक पर मंगलवार को लोकसभा में चली गर्मागर्म बहस के दौरान विपक्षी दलों ने इस विधेयक में खामियां निकालीं और इसे वापस लेने की मांग की। यहां तक कि सत्ताधारी गठबंधन में शामिल कुछ दलों ने भी इसे कमजोर विधेयक करार दिया। हालांकि प्रधानमंत्री ने सदस्यों से दलगत राजनीति से ऊपर उठकर विधेयक को पारित कराने का आग्रह किया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मंगलवार को लोकसभा में कहा, "मैं संसद के अपने सभी सहयोगियों से आग्रह करता हूं कि वे इस मौके पर विधेयक को पारित कराने के लिए दलगत राजनीति से ऊपर उठें।" उन्होंने कहा कि लोकपाल विधेयक पर अंतिम फैसला संसद करेगी। उन्होंने जोर देकर कहा कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) लोकपाल से स्वतंत्र होनी चाहिए। प्रधानमंत्री ने विधेयक को संसद की भावना के अनुरूप बताया। उन्होंने कहा कि सभी नौकरशाहों और राजनीतिज्ञों को 'भ्रष्ट' अथवा 'बेईमान' बताना गलत है। प्रधानमंत्री ने कहा कि जहां तक सीबीआई के कामकाज को लोकपाल के दायरे में लाने की बात है, सरकार का मानना है कि इससे संसद के बाहर एक और कार्यकारी ढांचा उत्पन्न हो जाएगा जो किसी के प्रति जवाबदेह नहीं होगा। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने लोकपाल विधेयक में कई खामियां बताईं। पार्टी ने कहा कि देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मजबूत व प्रभावी कानून होना चाहिए लेकिन सरकार की ओर से पेश विधेयक में ऐसा कुछ भी नहीं है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज ने लोकपाल विधेयक पर चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा, "यह साफतौर पर असंवैधानिक विधेयक है, जो त्रुटिपूर्ण है और हमारे संविधान की मूल भावना से छेड़छाड़ करता है।" उनकी आपत्ति विधेयक में आरक्षण का प्रावधान शामिल किए जाने पर भी थी। उन्होंने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को एक स्वतंत्र लोकपाल के तहत लाकर उसे सरकार के नियंत्रण से स्वतंत्र करने की मांग की। स्वराज ने कहा कि प्रधानमंत्री को भी लोकपाल के दायरे में लाना चाहिए लेकिन पूरी सुरक्षा के साथ ताकि कोई भी उन्हें नुकसान पहुंचाने की हिम्मत न कर सके। उन्होंने कहा कि यदि सरकार ये बदलाव करती है तब तो उनकी पार्टी इस विधेयक का समर्थन करेगी। उन्होंने कहा, "यदि ये बदलाव नहीं किए जा सकते तो मैं आपसे हाथ जोड़कर अनुरोध करती हूं कि इस विधेयक को वापस लें और अगले सत्र में एक ताजा विधेयक लेकर आएं।" मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेता बासुदेव आचार्य ने कहा, "सरकार की ओर से पेश इस लोकपाल विधेयक में कई खामियां हैं। हम एक सशक्त, प्रभावी और विश्वनीय लोकपाल चाहते हैं। इसके अनुसार हमें एक कानून बनाना चाहिए।" उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या है जिसका भारत सामना कर रहा है और मौजूदा लोकपाल विधेयक से हमें प्रभावी लोकपाल मिलने की उम्मीद नहीं है। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि भाजपा नहीं चाहती कि लोकपाल विधेयक संसद में पारित हो, जिससे कि वह आगामी पांच राज्यों के चुनावों में इसे एक मुद्दा बना सके। उन्होंने कहा, "विधेयक यदि पारित हो जाता है तो यह स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा और नहीं होता है तो देश की जनता आपको कभी माफ नहीं करेगी।" जनता दल (युनाइटेड) के शरद यादव ने कहा कि अन्ना हजारे के नेतृत्व में सामाजिक संगठन द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन का असली रूप सामने आ गया है। उन्होंने कहा कि इस आंदोलन में दलित या पिछड़ा वर्ग का एक भी व्यक्ति शामिल नहीं है। उन्होंने प्रत्येक सांसद को भ्रष्ट बताए जाने के प्रयास का भी विरोध किया। समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने सरकार से लोकपाल विधेयक को प्रभावी बनाने के लिए विपक्षी पार्टियों द्वारा प्रस्तावित संशोधनों को स्वीकार करने की अपील की। मुलायम ने सरकार द्वारा पेश विधेयक को कमजोर बताया। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के लालू प्रसाद ने केंद्र सरकार से इस विधेयक को वापस लेने की मांग की। उन्होंने कहा कि विधेयक को ठीक तरीके से तैयार नहीं किया गया है और उसे वापस स्थायी समिति के पास भेज देना चाहिए। तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी ने कहा, "यह विधेयक संविधान के संघीय ढांचे पर अतिक्रमण करता है। राज्य विधानमंडलों को नजरअंदाज न किया जाए। यह प्रस्ताव खतरनाक साबित होगा। हम सभी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे हैं।" राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) ने कहा कि वह चाहती है कि प्रधानमंत्री पद को लोकपाल के दायरे से बाहर रखा जाए। राकांपा सांसद सुप्रिया सुले ने कहा, "हम शिव सेना के रुख से सहमत हैं। हम नहीं चाहते कि प्रधानमंत्री को किसी के प्रति उत्तरदायी बनाया जाए। मुझे अपने देश के नेता पर गर्व है।" सरकार के विधेयक को 'स्वस्थ शिशु' बताते हुए सुले ने कहा, "लोकपाल हमारी सभी समस्याओं को हल नहीं कर सकता लेकिन यह सही दिशा में उठाया गया एक कदम है।"