भ्रष्टाचार के विरोध में तैयार किया गया लोकपाल बिल एक बार फिर अगले हफ्ते राज्य सभा में पेश किया जा सकता है। सूत्रों के हवाले से खबर है कि सरकार बिल में कुछ बदलाव करने को राजी हो गई है।
                                            
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                                                                                नई दिल्ली: 
                                        भ्रष्टाचार के विरोध में तैयार किया गया लोकपाल बिल एक बार फिर अगले हफ्ते राज्य सभा में पेश किया जा सकता है। सूत्रों के हवाले से खबर है कि सरकार बिल में कुछ बदलाव करने को राजी हो गई है। सरकार की ओर से किए जाने वाले बदलावों में तृणमूल कांग्रेस द्वारा दिए गए सुझावों को शामिल किया जा रहा है।
बता दें कि तृणमूल कांग्रेस ने बिल के कुछ हिस्सों पर यह कहकर आपत्ति जताई थी कि इससे राज्यों के अधिकार क्षेत्र का हनन होता है। लोकपाल बिल के तहत केंद्र में एक लोकपाल और सात सदस्य होंगे और बिल यह भी कहता है कि राज्यों को भी इसी तर्ज पर लोकायुक्त बनाने होंगे। तृणमूल, भाजपा और तमाम अन्य दलों को राज्यों को निर्देशित करने वाला उपबंध पसंद नहीं आया था। उनका मानना था कि यह उपबंध देश के संघीय ढांचे का हृांस करता है। इन लोगों का कहना है कि केंद्र सरकार को यह आदेश नहीं देना चाहिए बल्कि यह राज्य पर छोड़ दिया जाना चाहिए कि वह कैसा लोकायुक्त तैयार करें।
गौरतलब है कि सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे और उनके सहयोगियों ने पिछले साल अपने आंदोलन में कहा था कि यदि राज्यों को इस बिल में शामिल नहीं किया गया तब यह बिल बेकार साबित होगा। इस बिल के समर्थन के लिए सरकार ने तमाम राजनीतिक दलों से बातचीत आरंभ कर दी है।
                                                                        
                                    
                                बता दें कि तृणमूल कांग्रेस ने बिल के कुछ हिस्सों पर यह कहकर आपत्ति जताई थी कि इससे राज्यों के अधिकार क्षेत्र का हनन होता है। लोकपाल बिल के तहत केंद्र में एक लोकपाल और सात सदस्य होंगे और बिल यह भी कहता है कि राज्यों को भी इसी तर्ज पर लोकायुक्त बनाने होंगे। तृणमूल, भाजपा और तमाम अन्य दलों को राज्यों को निर्देशित करने वाला उपबंध पसंद नहीं आया था। उनका मानना था कि यह उपबंध देश के संघीय ढांचे का हृांस करता है। इन लोगों का कहना है कि केंद्र सरकार को यह आदेश नहीं देना चाहिए बल्कि यह राज्य पर छोड़ दिया जाना चाहिए कि वह कैसा लोकायुक्त तैयार करें।
गौरतलब है कि सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे और उनके सहयोगियों ने पिछले साल अपने आंदोलन में कहा था कि यदि राज्यों को इस बिल में शामिल नहीं किया गया तब यह बिल बेकार साबित होगा। इस बिल के समर्थन के लिए सरकार ने तमाम राजनीतिक दलों से बातचीत आरंभ कर दी है।
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