यह ख़बर 21 जून, 2011 को प्रकाशित हुई थी

लोकपाल पर ड्राफ्टिंग समिति की बातचीत फेल

खास बातें

  • दो महीने में मसौदा समिति की नौ बैठकें होने के बाद भी दोनों पक्षों के बीच मूल मुद्दों पर सहमति नहीं बन पाई।
New Delhi:

लोकपाल विधेयक का आम सहमति वाला साझा मसौदा तैयार करने की सरकार और अन्ना हज़ारे पक्ष की कोशिशों मंगलवार को विफल साबित हुईं। संयुक्त मसौदा समिति की अंतिम बैठक के बाद गांधीवादी हज़ारे ने ऐलान किया कि वह सरकार को सबक सिखाने के लिये 16 अगस्त से फिर अनशन करेंगे। दो महीने में मसौदा समिति की नौ बैठकें होने के बाद भी दोनों पक्षों के बीच मूल मुद्दों पर सहमति नहीं बन पायी। सरकार ने जोर दिया कि वह ऐसी समानांतर सरकार बनने नहीं दे सकती जो किसी के प्रति भी जवाबदेह नहीं हो। सरकार के मसौदे में प्रधानमंत्री, उच्च न्यायपालिका और संसद के अंदर सांसदों के आचरण को लोकपाल के दायरे में लाने का कोई जिक्र नहीं है। बहरहाल, सरकार के मसौदे में लोकपाल को अर्ध-न्यायिक दर्जा देने, संपत्ति कुर्क का अधिकार देने, स्वतंत्र तरीके से अभियोजन चलाने और पुलिस जैसे पूर्ण अधिकारों के साथ जांच मशीनरी देने के प्रावधानों का उल्लेख है। मोइली ने कहा कि सरकार के मसौदे में यह प्रावधान किया गया है कि लोकपाल को नौकरशाहों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने, उनका तबादला करने या जांच लंबित रहने तक उन्हें निलंबित करने की सिफारिश करने के अधिकार होंगे। सरकार और हज़ारे पक्ष के बीच जिन छह मुद्दों पर गंभीर मतभेद हैं, वे हैं प्रधानमंत्री, उच्च न्यायपालिका और संसद के अंदर सांसदों के भ्रष्ट आचरण को इस स्वतंत्र जांच निकाय के दायरे में रखना, लोकपाल को अपना बजट तय करने के अधिकार देना, सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा को लोकपाल में शामिल करना और एक ही कानून के जरिये केंद्र में लोकपाल के साथ ही राज्यों में लोकायुक्त की स्थापना करना। इन छह मुद्दों के अलावा कल की बैठक में लोकपाल के चयन और उसे हटाने की प्रक्रिया के दो नये मुद्दों पर भी दोनों पक्षों के बीच मतभेद उभरे। हज़ारे पक्ष का जनलोकपाल विधेयक कहता है कि लोकपाल पूरी तरह स्वतंत्र हो और सरकार के अधीन बिल्कुल भी नहीं हो। हज़ारे पक्ष ने अपने मसौदे में प्रधानमंत्री, उच्च न्यायपालिका और संसद के भीतर सांसदों के आचरण को लोकपाल के दायरे में लाने के प्रावधान बताये हैं। समाज के सदस्यों के मसौदे में कहा गया है कि प्रधानमंत्री और उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत पर पहले सात सदस्यों की एक पीठ गौर करेगी और शिकायत को उचित पाये जाने पर ही जांच की सिफारिश करेगी। हज़ारे पक्ष का कहना है कि लोकपाल को पूरी तरह वित्तीय स्वायत्तता हो। सरकार का दावा है कि हज़ारे पक्ष ने अपने मसौदे में लोकपाल को सकल घरेलू उत्पाद का एक फीसदी बजट आवंटित करने के प्रावधान का जिक्र किया है। सरकार का मसौदा कहता है कि लोकपाल किसी भी नौकरशाह के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत मिलने पर पहले उसके पक्ष को सुनेगा और फिर प्राथमिक जांच शुरू करेगा। हज़ारे पक्ष इस प्रावधान के खिलाफ है। हज़ारे पक्ष का मसौदा कहता है कि पांच न्यायाधीशों की एक छानबीन समिति लोकपाल के प्रमुख पद के लिये चयन समिति को नाम सुझाये और चयन समिति में प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता, उच्चतम न्यायालय के दो न्यायाधीश, उच्च न्यायालयों के दो मुख्य न्यायाधीश, मुख्य चुनाव आयुक्त और नियंत्रक और महालेखा परीक्षक को रखा जाए। समाज के सदस्यों के जनलोकपाल विधेयक के अनुसार, सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा को लोकपाल में शामिल कर लिया जाये और लोकपाल को संयुक्त सचिव स्तर के अधीनस्थ नौकरशाहों के भ्रष्टाचार की भी जांच करने के अधिकार दिए जाएं।


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