कोरोना का कहर : छोटे कारोबारी बर्बादी की कगार पर, दूसरों को रोजगार देने वाले ढूंढ़ रहे हैं खुद के लिए काम

मुबंई की आर्थिक गतिविधियों का एक केंद्र रही धारावी का ज्यादातर बिजनेस संकट में है. यहां पहले एक अरब डॉलर का कारोबार होता था. यहां की गारमेंट एसोसिएशन के मुताबिक दो लॉकडाउन के बाद अब बस कुछ ही यूनिटें चालू हैं.

मुंबई:

कोरोना महामारी और लॉकडाउन की वजह से छोटे और मझोले कारोबारियों को काफी नुकसान हुआ था. कोरोना की दूसरी लहर ने तो उनको बर्बादी की कगार पर खड़ा कर दिया. कई लोग ऐसे हैं, जो पहले दूसरों को रोजगार देते थे, अब वे खुद दूसरी जगह नौकरी या काम मांगने को मजबूर हो गए हैं. उधर सरकार भी कुछ बहुत ज्यादा ऐसे लोगों के काम आती नहीं दिख रही है.

मोहम्मद शाहिद अपने छोटे भाई के साथ मुंबई के धारावी में कपड़े बनाने की एक छोटी यूनिट चलाते हैं. महामारी और लॉकडाउन के बीच उनका कारोबार ठप हो गया. अपनी कहानी बताते हुए मोहम्मद शाहिद की आंखों में आंसू आ गए. वो अपनी यूनिट में पैंट और शर्ट तैयार करते हैं. एक समय में 35 लोग उनके यहां काम करते थे. हर महीने करीब 1.5 लाख रुपए की बचत होती थी. लेकिन पहले नोटबंदी, फिर जीएसटी और अब महामारी ने सब बर्बाद कर दिया. उन पर अब कर्ज का बोझ है और अब दो ही लोग यूनिट में काम करने वाले हैं, जिनमें से एक उनके पिता ही हैं.

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कपड़ा कारोबारी शाहिद के भाई खालिद ने बताया, 'हम लोग महीने में 1.5 लाख रुपए बचा लेते थे. अब ऐसा टाइम आ गया कि अब उतना देना पड़ रहा है. बच कुछ नहीं रहा है. लॉकडाउन में हमने कारिगरों को महीने-महीने भर का खर्चा दिया है, क्योंकि यह स्पष्ट नहीं था कि लॉकडाउन कितने दिनों का लगेगा.' उनकी कपड़ा यूनिट अब बंद होने की कगार पर है. खालिद कहते हैं कि उन्हें जल्द ही कोई नौकरी ढूंढ़नी पड़ेगी.

मुबंई की आर्थिक गतिविधियों का एक केंद्र रही धारावी का ज्यादातर बिजनेस संकट में है. यहां पहले एक अरब डॉलर का कारोबार होता था. यहां की गारमेंट एसोसिएशन के मुताबिक दो लॉकडाउन के बाद अब बस कुछ ही यूनिटें चालू हैं.

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धारावी मार्केट एसोसिएशन के महासचिव कलीम अंसारी का कहना है, पूरी धारावी में 600 से 700 कारखाने थे, दो बार लॉकडाउन के बाद जिसमें से करीब 65 फीसदी कारखाने बंद हो चुके हैं. जिस तीसरी लहर की बात जा रही है, अगर उसकी वजह से लॉकडाउन लगाया जाता है तो जो 35 फीसदी यूनिट जो ऑपरेशनल हैं, वो भी बंद हो जाएंगे. जिससे यहां की हालात और ज्यादा खराब हो सकती है.

वसीम अंसारी धारावी की अपनी यूनिट में जींस और ट्रैक पैंट बनाते थे, इस फैक्ट्री को बनाने में उन्हें सात साल लगे थे. लेकिन महामारी के एक ही साल ने इसे बंद करने पर मजबूर कर दिया. कुछ समय पहले तक 17 कारीगर उनके साथ काम करते थे. लेकिन लॉकडाउन की वजह से वसीम अपने लिए ही काम खोज रहे हैं. 

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वसीम का कहना है, 'कर्जा बहुत ज्यादा है. अभी कोशिश तो कर रहे हैं कारखाना चालू करने की. लेकिन खर्चे के लिए आखिरी में हमें नौकरी करनी पड़ेगी.'

ना केवल धारावी बल्कि पूरे देश में ही लघु और मझोले उद्योग संकट में है. पिछले महीने लॉकल सर्किल के एक सर्वे के मुताबिक 59 फीसदी स्टार्ट, लघु-मझोले उद्योग या तो बंद होने की कगार पर हैं या फिर उनका कारोबार काफी घट गया है या फिर उन्हें बेचने की नौबत आ गई है. छोटे कारोबारियों के समर्थन के मुद्दे पर महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि वो जो कर सकते थे उन्होंने किया और हमें महामारी के दौरान छोटे उद्योगों के लिए केंद्र सरकार की लोन स्कीम की पड़ताल करनी चाहिए.

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महाराष्ट्र सरकार में मंत्री नवाब मलिक ने कहा, 'केंद्र सरकार चार लाख करोड़ के लोन का ऐलान कर चुकी है. राज्य सरकार के बजट के मुताबिक, जितना भी संभव था उन सभी लोगों के लिए हमने योजना बनाई.'

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लेकिन वसीम, शाहिद और खालिद जो पहले ही लोन ले चुके हैं., जिसे चुकाना मुश्किल हो रहा है. एक और लोन लेना उनके लिए समस्या का हल नहीं है.