नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने यमुना को प्रदूषण से बचाने के लिए आज कई निर्देश जारी किए, जिसमें नदी में कूड़ा या धार्मिक सामग्री डालने वाले व्यक्ति पर पांच हजार रुपये का जुर्माना भी शामिल है।
अधिकरण के अध्यक्ष न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने यमुना में निर्माण सामग्री फेंकने पर प्रतिबंध लगाते हुए ऐसा करने वाले पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाने का निर्देश दिया है।
इसके साथ ही 'मैली से निर्मल यमुना पुनरुद्धार योजना 2017' के तहत रियल एस्टेट डेवलपर्स को बाढ़ के दायरे में आने वाले मैदानी क्षेत्र पर किसी तरह का निर्माण कार्य करने से भी रोक लगा दी है।
न्यायाधिकरण ने दिल्ली में यमुना के तटों तथा बरसाती पानी के नालों को दुरुस्त करने के बारे में उसके द्वारा गठित दो समितियों की सिफारिशों को अपनी मंजूरी दी। यमुना की बाढ़ से प्रभावित होने वाले क्षेत्रों पर अवैध निर्माण पर संज्ञान लेते हुए पीठ ने रियल एस्टेट डेवलपर्स को इन क्षेत्रों में किसी तरह का निर्माण कार्य करने से रोक दिया।
न्यायाधिकरण ने 'यमुना जिये' अभियान के मनोज कुमार मिश्र की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया। इस याचिका में यमुना में मलबा डालने पर पाबंदी और साफ-सफाई सुनिश्चित करने की मांग की गई। मनोज ने कहा कि वह फैसले से संतुष्ट हैं और अधिकरण द्वारा हर तीन महीने में क्रियान्वयन की समीक्षा की बात काबिलेतारीफ कदम है।
जनवरी 2013 को एनजीटी ने यमुना में निर्माण सामग्री सहित अन्य मलबा डालने पर पाबंदी लगाई थी और दिल्ली तथा उत्तर प्रदेश को मलबा तुरंत हटाने का निर्देश दिया था।
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