नई दिल्ली : विपक्ष के बायकॉट के बीच भूमि अधिग्रहण विधेयक लोकसभा में पास हो गया, हालांकि सरकार की सहयोगी शिवसेना ने ग़ैर-हाज़िर रह कर सरकार को गहरा झटका ज़रूर दे दिया। बिल को पास कराने के लिए सरकार को नौ संशोधन पेश करने पड़े। अब बिल राज्यसभा में जाएगा, लेकिन वहां सरकार का बहुमत नहीं है, लिहाज़ा आगे का रास्ता भी आसान नहीं।
भूमि अधिग्रहण बिल से पहले सरकार भूमि अध्यादेश लाई थी, जिसमें कई बड़े बदलाव किए गए थे। सरकार की दलील थी कि कई बड़े प्रोजेक्ट भूमि अधिग्रहण पर विवाद की वजह से अटके हैं लिहाज़ा उसे अध्यादेश लाना पड़ा, लेकिन एनडीटीवी की जांच बताती है कि सिर्फ़ दस फीसदी प्रोजेक्ट ही ऐसे थे, जो भूमि विवादों की वजह से अटके थे। एनडीटीवी पर इस बात का खुलासा होते ही कि सिर्फ 10 फीसदी सरकारी बड़े प्रोजेक्ट जमीन की वजह से अटके हैं। बाकी 90 फीसदी परियोजनाओं के फंसे होने के कारण दूसरे हैं। वहीं जो सात परियोजनाएं जमीन अधिग्रहण की वजह से अटकीं, उनमें से छह सड़क परियोजना हैं।
हकिकत में, सितंबर 2013 के वक्त सिर्फ 12 परियोजनाएं ही जमीन के मसले पर अटकी हुई थी। इनमें से चार (दो सड़क एवं दो ऊर्जा परियोजना) परियोजनाओं में बीते साल थोड़ी प्रगति देखी गई। ये सारे तथ्य बीते साल भूमि अधिग्रहण रुकने के सरकार के दावे पर सवाल खड़े करती है।
इस बाबत हमने बीजेपी प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव से बात की तो उन्होंने कहा, 'मैं ऐसी किसी भी लिस्ट के बारे में नहीं जानता।'
विपक्ष ने सरकार पर लोगों को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए हमले शुरू कर दिए हैं। कांग्रेस की नेता रेणुका चौधरी ये लोग लोगों को गुमराह कर रहे हैं। मीडिया पब्लिसिटी का इस्तेमाल कर रहे हैं। झूठ फैलाने की कोशिश हो रही है।
कांग्रेस ही नहीं बिल पर थोड़ा नरम रुख दिखा चुकी समाजवादी पार्टी ने भी सरकार पर बड़े घराने के दबाव में काम करने का आरोप लगाया। समाजवादी पार्टी के नेता रामगोपाल यादव ने कहा कि सरकार शपथ के पहले ही दिन से कॉरपोरेट जगत को फायदा पहुंचाने में लगी है।
दरअसल, विपक्ष अब इस बात को लेकर हमलावर है कि जब आंकड़े जमीन अधिग्रहण के चलते बड़ी परियोजनाओं के रुके होने की दलील खारिज करते हैं तो फिर सरकार ने कानून मे बदलाव किस आधार पर किए।
जेडीयू नेता अली अनवर ने बताया कि सरकार गलत बयानी कर कॉरपोरेट को फायदा पहुंचाने में लगी है।
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