पूर्व उपप्रधानमंत्री तथा बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
संसद का शीतकालीन सत्र समाप्ति के करीब पहुंच गया है, और शुक्रवार को ही खत्म होने जा रहा है, लेकिन नोटबंदी के चलते राज्यसभा और लोकसभा से पूरे सत्र के दौरान सिर्फ हंगामा ही सुर्खियों में रहा है... इस बात से न सिर्फ देश की जनता को दुःख होता है, बल्कि देश के सबसे वरिष्ठ नेताओं में शुमार होने वाले लालकृष्ण आडवाणी भी इससे काफी गुस्से में हैं, जिसे वह पिछले कुछ दिनों में कई बार ज़ाहिर कर चुके हैं...
संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही के लगातार बाधित होने को लेकर पूर्व उपप्रधानमंत्री ने गुरुवार को एक बार फिर गुस्से का इज़हार करते हुए कहा, "यदि शुक्रवार को लोकसभा नोटबंदी के मुद्दे पर चर्चा किए बिना अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गई तो संसद हार जाएगी और हम सबकी बहुत बदनामी होगी..." यही नहीं, इसके बाद उन्होंने यहां तक कहा कि उनका मन करता है कि वह इस्तीफा दे दें.
वैसे, वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद से ही अक्सर शांत रहने वाले लालकृष्ण आडवाणी पिछले लगभग 10 दिन में कई बार इस बात को लेकर नाराज़गी ज़ाहिर कर चुके हैं कि संसद में कोई कामकाज या चर्चा नहीं हो पा रही है. इससे पहले, 7 दिसंबर को भी उन्हें यह कहते सुना गया था कि स्पीकर या संसदीय कार्यमंत्री सदन को नहीं चला पा रहे हैं.
हालांकि अगले दिन उन्होंने लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन से मुलाकात कर सफाई दी कि पिछले दिन संसद की कार्यवाही में गतिरोध के खत्म नहीं होने को लेकर उनके द्वारा जताई गई नाराज़गी स्पीकर या संसदीय कार्यमंत्री के खिलाफ नहीं थी. उन्होंने कहा था कि इस तरह की मीडिया रिपोर्ट गलत हैं.
उन्होंने लोकसभा स्पीकर को बताया था कि वह उन सांसदों के खिलाफ कार्रवाई चाहते थे, जो सदन की कार्यवाही को बाधित कर रहे हैं. लालकृष्ण आडवाणी ने बताया था कि 7 दिसंबर की रात को उन्होंने केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार को भी फोन किया था और यही बातें कही थीं. उन्होंने कहा था कि वह चाहते थे कि हंगामा करने वाले सांसदों का वेतन काट लेना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा था कि हंगामा करने वाले सांसदों को बाहर कर देना चाहिए.
संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही के लगातार बाधित होने को लेकर पूर्व उपप्रधानमंत्री ने गुरुवार को एक बार फिर गुस्से का इज़हार करते हुए कहा, "यदि शुक्रवार को लोकसभा नोटबंदी के मुद्दे पर चर्चा किए बिना अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गई तो संसद हार जाएगी और हम सबकी बहुत बदनामी होगी..." यही नहीं, इसके बाद उन्होंने यहां तक कहा कि उनका मन करता है कि वह इस्तीफा दे दें.
वैसे, वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद से ही अक्सर शांत रहने वाले लालकृष्ण आडवाणी पिछले लगभग 10 दिन में कई बार इस बात को लेकर नाराज़गी ज़ाहिर कर चुके हैं कि संसद में कोई कामकाज या चर्चा नहीं हो पा रही है. इससे पहले, 7 दिसंबर को भी उन्हें यह कहते सुना गया था कि स्पीकर या संसदीय कार्यमंत्री सदन को नहीं चला पा रहे हैं.
हालांकि अगले दिन उन्होंने लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन से मुलाकात कर सफाई दी कि पिछले दिन संसद की कार्यवाही में गतिरोध के खत्म नहीं होने को लेकर उनके द्वारा जताई गई नाराज़गी स्पीकर या संसदीय कार्यमंत्री के खिलाफ नहीं थी. उन्होंने कहा था कि इस तरह की मीडिया रिपोर्ट गलत हैं.
उन्होंने लोकसभा स्पीकर को बताया था कि वह उन सांसदों के खिलाफ कार्रवाई चाहते थे, जो सदन की कार्यवाही को बाधित कर रहे हैं. लालकृष्ण आडवाणी ने बताया था कि 7 दिसंबर की रात को उन्होंने केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार को भी फोन किया था और यही बातें कही थीं. उन्होंने कहा था कि वह चाहते थे कि हंगामा करने वाले सांसदों का वेतन काट लेना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा था कि हंगामा करने वाले सांसदों को बाहर कर देना चाहिए.
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