प्रतीकात्मक फोटो
जयपुर:
कोटा में कोचिंग ले रहे छात्रों में खुदकुशी की बढ़ती घटनाएं सबके लिए चिंता का विषय बनती जा रही हैं। इस बारे में कोचिंग संस्थानों ने मिलजुलकर एक हेल्पलाइन चालू करने की बात राखी थी, लेकिन अब तक यह काम हो नहीं पाया है। हाल ही में मेडिकल की पढ़ाई कर रही एक छात्रा ने आत्महत्या कर ली। उसके माता-पिता ने कोचिंग संस्थानों से गुहार लगाई कि भले ही पैसा ज्यादा ले लो, लेकिन बच्चों की पढ़ाई के साथ-साथ उनकी काउंसलिंग का भी ध्यान रखो।
मेडिकल प्रवेश में असफलता के कारण खुदकुशी
18 साल की अंजलि आनंद, कोटा के एलन इंस्टीट्यूट से प्री मेडिकल टेस्ट की तैयारी कर रही थी। खुदकुशी से पहले उसने एक चिट्ठी अपने मां-पिता के नाम लिखी कि पढ़ाई करने के बावजूद उसे उम्मीद नहीं है कि वह मेडिकल का एग्जाम पास कर पाएगी। अंजलि के माता-पिता मुरादाबाद के निवासी हैं। पिता एलआईसी के एजेंट हैं।
ज्यादा पैसे ले लो, लेकिन बच्चों को जान देने से रोको...
अपनी बच्ची का शव लेने के लिए आए पिता अशोक कुमार ने छात्रों के लिए मनोवैज्ञानिक मदद की गुहार लगाई। उन्होंने कहा कि "जो डॉक्टर, इंजीनियर बनाने के लिए भेज रहा है वह कर्ज लेकर आ रहा है, जमीन बेचकर आ रहा है। वह अपने बच्चों का सपना पूरा कर रहा है। लेकिन जब इस तरह से डेथ हो जाती है तो जमीन और घर बिक जाता है लेकिन अब बच्चा कहां से लाएगा। मेरी गुहार है कि सभी इंस्टीट्यूट वाले मनोवैज्ञानिकों की फैकल्टी भी रखें। "
शुरू नहीं हो पाई हेल्पलाइन
खुदकुशी की लगातार बढ़ती घटनाओं के बावजूद कोचिंग संस्थानों की हेल्पलाइन चालू नहीं हो पाई है। प्रशासन भी अब तक ऐसी आत्महत्याओं को रोकने के लिए काउंसिलिंग को लेकर कोई नियम नहीं बना पाया है। कोटा के पुलिस अधीक्षक सवाई सिंह ने कहा कि प्रशासन नियम तय कर रहा है। उन्होंने कहा "प्रशासन एक पालिसी तय करेगा। कोचिंग सेंटरों या संचालकों पर कुछ नियम लागू किए जाएंगे। अगर विद्यार्थी आत्महत्या की तरफ अग्रसर होते हैं तो उन्हें समय पर साइकेट्रिस्ट या मेडिकल एक्सपर्ट की सुविधा मिले।"
प्रशासन कब ठोस कदम उठाएगा और कोचिंग संस्थान सफलता की दौड़ में रेस से बाहर हो रहे विद्यार्थियों की तरफ मुड़कर देखेंगे या नहीं यह सबसे बड़ा सवाल है। एक बात साफ है कि प्रेशर इतना ज्यादा है कि आईआईटी शहर के बजाय कोटा धीरे-धीरे सुसाइड शहर बन रहा है। हर साल आईआईटी के लिए प्रवेश परीक्षा करीब 14 लाख बच्चे देते हैं। सिलेक्शन होता है सिर्फ दस हजार का। मेडिकल में पिछले साल 5 लाख से ज्यादा कैंडिडेट्स ने एग्जाम दिया। इसमें से लगभग छियालीस हजार ही क्वालीफाई कर पाए। सवाल है असफल बच्चे तनाव का सामना कैसे करें?
मेडिकल प्रवेश में असफलता के कारण खुदकुशी
18 साल की अंजलि आनंद, कोटा के एलन इंस्टीट्यूट से प्री मेडिकल टेस्ट की तैयारी कर रही थी। खुदकुशी से पहले उसने एक चिट्ठी अपने मां-पिता के नाम लिखी कि पढ़ाई करने के बावजूद उसे उम्मीद नहीं है कि वह मेडिकल का एग्जाम पास कर पाएगी। अंजलि के माता-पिता मुरादाबाद के निवासी हैं। पिता एलआईसी के एजेंट हैं।
ज्यादा पैसे ले लो, लेकिन बच्चों को जान देने से रोको...
अपनी बच्ची का शव लेने के लिए आए पिता अशोक कुमार ने छात्रों के लिए मनोवैज्ञानिक मदद की गुहार लगाई। उन्होंने कहा कि "जो डॉक्टर, इंजीनियर बनाने के लिए भेज रहा है वह कर्ज लेकर आ रहा है, जमीन बेचकर आ रहा है। वह अपने बच्चों का सपना पूरा कर रहा है। लेकिन जब इस तरह से डेथ हो जाती है तो जमीन और घर बिक जाता है लेकिन अब बच्चा कहां से लाएगा। मेरी गुहार है कि सभी इंस्टीट्यूट वाले मनोवैज्ञानिकों की फैकल्टी भी रखें। "
शुरू नहीं हो पाई हेल्पलाइन
खुदकुशी की लगातार बढ़ती घटनाओं के बावजूद कोचिंग संस्थानों की हेल्पलाइन चालू नहीं हो पाई है। प्रशासन भी अब तक ऐसी आत्महत्याओं को रोकने के लिए काउंसिलिंग को लेकर कोई नियम नहीं बना पाया है। कोटा के पुलिस अधीक्षक सवाई सिंह ने कहा कि प्रशासन नियम तय कर रहा है। उन्होंने कहा "प्रशासन एक पालिसी तय करेगा। कोचिंग सेंटरों या संचालकों पर कुछ नियम लागू किए जाएंगे। अगर विद्यार्थी आत्महत्या की तरफ अग्रसर होते हैं तो उन्हें समय पर साइकेट्रिस्ट या मेडिकल एक्सपर्ट की सुविधा मिले।"
प्रशासन कब ठोस कदम उठाएगा और कोचिंग संस्थान सफलता की दौड़ में रेस से बाहर हो रहे विद्यार्थियों की तरफ मुड़कर देखेंगे या नहीं यह सबसे बड़ा सवाल है। एक बात साफ है कि प्रेशर इतना ज्यादा है कि आईआईटी शहर के बजाय कोटा धीरे-धीरे सुसाइड शहर बन रहा है। हर साल आईआईटी के लिए प्रवेश परीक्षा करीब 14 लाख बच्चे देते हैं। सिलेक्शन होता है सिर्फ दस हजार का। मेडिकल में पिछले साल 5 लाख से ज्यादा कैंडिडेट्स ने एग्जाम दिया। इसमें से लगभग छियालीस हजार ही क्वालीफाई कर पाए। सवाल है असफल बच्चे तनाव का सामना कैसे करें?
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