हालिया विधानसभा चुनावों में हार के बाद बीजेपी को (BJP) मुसीबत झेलनी पड़ रही. वजह कि एनडीए के सहयोगी दल अब खुलकर आवाज उठाने लगे हैं. सहयोग दलों की ओर से बीजेपी से पिछली बार की तुलना में न केवल अधिक सीटों की मांग हो रही है, बल्कि अपने मान-सम्मान की भी दुहाई दी जा रही. कई स्तर से उभर रहीं असंतोष की इन आवाजों के बीच पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव ने 2019 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बीजेपी के प्लान- बी की तरफ संकेत किए हैं. यह ऐसा रोडमैप है, जिसके जरिए बीजेपी सहयोगी दलों की नाराजगी से हर नुकसान की भरपाई की कोशिश में है. पार्टी के वरिष्ठ नेता राम माधव की बातों से इस प्लान- बी के संकेत मिलते हैं. उनका यह बयान काबिलेगौर है," यह सच है कि उपेंद्र कुशवाहा जैसे कुछ छोटे सहयोगियों ने हमें छोड़ने का फैसला किया है, लेकिन हम नए सहयोगियों को अपने पाले में लाने पर काम कर रहे हैं. विशेष रूप से दक्षिण भारत और पूर्वी भारत में. "
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NDA के साथ इन दलों की नहीं निभी
बीजेपी कैंप में यूं ही नहीं चिंता है. पिछले कुछ महीनों के भीतर अलग-अलग राज्यों के तीन प्रमुख सहयोगियों के साथ बीजेपी की पटरी नहीं खाई. मार्च में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की तेलगू देशम पार्टी(टीडीपी) बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए से अलग हो गई. वहीं जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती से पटरी नहीं खाई तो बीजेपी ने अगस्त में समर्थन वापस ले लिया, जिससे सरकार गिरने से अब महबूबा बीजेपी से दूर जा चुकीं हैं. वहीं, हाल में बिहार में भी झटका लगा, जब वहां अपने स्वजातीय और ओबीसी मतदाताओं के बीच प्रभावशाली उपेंद्र कुशवाहा ने भी साथ छोड़ने का फैसला कर लिया. राम विलास पासवान और उनके बेटे चिराग पासवान की भी एनडीए से नाराजगी चल रही थी. मगर बीजेपी ने पिछले हफ्ते ही छह लोकसभा और एक राज्यसभा सीट का ऑफर देकर गिले-शिकवे दूर करने में सफलता हासिल की. मामला अभी थमा नहीं था कि यूपी में सहयोगी दल अपना दल ने भी असंतोष का इजहार कर दिया. अपना दल ने पार्टी की समस्याएं शीर्ष स्तर से दूर न होने की स्थिति में यूपी में सभी सरकारी कार्यक्रमों के बहिष्कार की चेतावनी दी है. हालांकि राम माधव ने एनडीए से जुड़ने वाले किसी नए संभावित दल का नाम नहीं लिया है.
बीजेपी के ये हो सकते हैं नए सहयोगी दल
अटकलें हैं कि तमिलनाडु की सत्ताधारी एआइएडीएमके केंद्र में बीजेपी की नई सहयोगी पार्टी हो सकती है. इन बातों को इसलिए भी बल मिला है, क्योंकि पिछले दिनों जब पीएम मोदी चेन्नई में एक कार्यक्रम में गए थे तो वहां सत्ताधारी दल के नेताओं की ओर से गर्मजोशी से स्वागत किया गया था. वहीं, राजनीति में उतरने वाले फिल्म अभिनेता रजनीकांत के भी बीजेपी के साथ आने की चर्चाएं तेज हैं. दक्षिण भारत के दूसरे सूबे तेलंगाान की बात करें तो यहां सत्ताधारी टीआरएस के मुखिया और मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव(केसीआर) बीजेपी और कांग्रेस से अलग तीसरे मोर्चे की वकालत करते हैं. मगर बीजेपी से भी उनकी नजदीकियां रहीं हैं. पीएम मोदी से कई बार मुलाकात कर चुके हैं.
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तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर और उनकी पार्टी टीआरएस पर कांग्रेस बीजेपी की बी पार्टी होने का इल्जाम लगाती रही है. पूर्वी भारत की बात करें तो ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक अब तक बीजेपी और कांग्रेस से समान दूरी बरतते रहे हैं. हालांकि, राज्यसभा के डिप्टी स्पीकर पद के चुनाव के दौरान उनकी पार्टी बीजद ने एनडीए उम्मीदवार हरिवंश नारायण सिंह को समर्थन दिया था. तब पीएम नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री पटनायक से बात कर समर्थन मांगा था. उनकी पार्टी के आठ वोट की बदौलत एनडीए राज्यसभा के उपसभापति पद के चुनाव में विजय पताका फहराने में सफल हुई थी. माना जा रहा है कि बीजेपी इन दलों को अपने साथ लाकर दूर जाने वाले दलों से होने वाले नुकसान की भरपाई करने की कोशिश में है.
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