प्रतीकात्मक तस्वीर.
नई दिल्ली:
दिल्ली में अभी एक किसान आंदोलन निपटा नहीं कि एक औरआंदोलन की आहट सुनाई देने लगी है. खबर है कि मध्य प्रदेश से 25 हजार किसानों(Farmer) ने दिल्ली के लिए कूच किया है. हाथ में झंडा और कंधे पर झोला टांगे हुए किसान आगरा-मुंबई मार्ग से दिल्ली की ओर रवाना हुए हैं. पहले दिन किसान सत्याग्रही 19 किमी की दूरी तय कर मुरैना जिले की सीमा में दाखिल हुए.भूमि अधिकार की मांग को लेकर देशभर के भूमिहीन गांधी जयंती पर मेला मैदान में जमा हुए थे. दो दिन तक वहीं डेरा डाले रहे. फिर गुरुवार को उन्होंने दिल्ली की ओर कूच किया. खास बात है कि किसानों के इस मार्च में जो दो प्रमुख हस्तियां पहुंचीं, उनका बीजेपी से गहरा नाता रहा है. मार्च में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे यशवंत सिन्हा(Yashwant Sinha) और संघ विचारक गोविंदाचार्य ने हिस्सा लेकर समर्थन दिया है. भूमि अधिकारों की मांग को लेकर किसानों के इस मुहिम में एकता परिषद के संस्थापक पी.वी. राजगोपाल, गांधीवादी सुब्बा राव सहित अनेक प्रमुख लोगों ने हिस्सेदारी निभाई. सभी ने सत्याग्रहियों के साथ कदमताल कर मांगों को लेकर आवाज बुलंद की.
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एकता परिषद और सहयोगी संगठनों के आह्वान पर यह आंदोलन शुरू बताया जाता है. इसे जनांदोलन-2018 नाम दिया गया है. कुल पांच सूत्रीय मांगों को लेकर किसानों का यह आंदोलन है. उनकी मांग है कि आवासीय कृषि भूमि अधिकार कानून, महिला कृषक हकदारी कानून (woman Farmers Right Act), जमीन के लंबित प्रकरणों के निराकरण के लिए न्यायालयों का गठन किया जाए. राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति की घोषणा और उसका क्रियान्वयन, वनाधिकार कानून 2006 व पंचायत अधिनियम 1996 के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए राष्ट्रीय और राज्यस्तर पर निगरानी समिति बनाई जाए.
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एकता परिषद से मिली जानकारी के अनुसार, पहले दिन सत्याग्रही 19 किलोमीटर चले और यात्रा मुरैना जिले में सुसेराकोठी और बुरवां गांव के बीच पहुंच गई है.मार्च में शामिल यशवंत सिन्हा ने सरकार की नीतियों पर सवाल खड़े किए. उन्होंने गुरुवार को यहां भी सरकार की कार्यशैली और उसके उद्योगपति-परस्त होने को लेकर हमला बोला.आंदोलन की अगुवाई पी.वी. राजगोपाल, जलपुरुष राजेंद्र सिंह, गांधीवादी सुब्बा राव व अन्य कर रहे हैं. मेला मैदान में जमा हुए सामाजिक कार्यकर्ता और समाज का वंचित तबका जल, जंगल और जमीन की लड़ाई को लेकर सड़क पर उतरे हैं और दिल्ली की ओर बढ़ चले हैं. इन सामाजिक कार्यकर्ताओं के आंदोलन से आने वाले दिनों में राज्य और केंद्र सरकार की मुसीबतें बढ़ सकती हैं.वहीं इस सत्याग्रह का समर्थन करने 6 अक्टूबर को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी मुरैना पहुंचने वाले हैं. एक तरफ भाजपा के खिलाफ समाजसेवियों की लामबंदी तो दूसरी ओर कांग्रेस का साथ नए राजनीतिक समीकरणों को जन्म देने वाला है. (इनपुट-IANS से)
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